दुनिया में वाद की कमी नहीं है - क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद। इस तरह के बहुत सारे निकृष्ट वाद हैं; लेकिन कुछ उत्तम वाद भी हैं या यूं कहिए कि विचारात्मक वाद हैं जैसे समाजवाद, साम्यवाद, गांधीवाद, पूंजीवाद और फिर इन्हीं वाद के बीच में उत्पन्न हुआ और पनपा आतंकवाद। अपने किसी वाद को दूसरों पर थोपने या मनवाने के लिए जिस हठधर्मी और बल का प्रयोग किया जाता है यही तो है आतंकवाद। आतंक क्या है, अपने सामने वाले को डराना, भय या दहशत में डालना। शब्दकोषों में आतंक की जो परिभाषा दी गई है वह है भय और दहशत। जो हर युग में रही है, अपने-अपने रूप में। आज मैं अपने देश में फैले आतंकवाद पर विचार करने बैठा हूं। अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा किया, उसे गुलाम बनाया और भारत का सब कुछ लूटकर अपने देश पहुंचाया और जब अंग्रेजों के इस लूट का विरोध हुआ तो विरोध करने वालों को ब्रिटिश साम्राज्य ने आतंकवादी और उनके द्वारा किये जा रहे कार्य को आतंक की संज्ञा दिया। हमारे देश की लड़ाई ने साम्राज्यवाद को समाप्त किया लेकिन समाप्त हुए साम्राज्य ने देश को खण्डित आजादी दिया। उसके लिए हम दोषी किसी को भी माने