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Showing posts from May 8, 2010

लो क सं घ र्ष !: आतंकवाद

दुनिया में वाद की कमी नहीं है - क्षेत्रवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद। इस तरह के बहुत सारे निकृष्ट वाद हैं; लेकिन कुछ उत्तम वाद भी हैं या यूं कहिए कि विचारात्मक वाद हैं जैसे समाजवाद, साम्यवाद, गांधीवाद, पूंजीवाद और फिर इन्हीं वाद के बीच में उत्पन्न हुआ और पनपा आतंकवाद। अपने किसी वाद को दूसरों पर थोपने या मनवाने के लिए जिस हठधर्मी और बल का प्रयोग किया जाता है यही तो है आतंकवाद। आतंक क्या है, अपने सामने वाले को डराना, भय या दहशत में डालना। शब्दकोषों में आतंक की जो परिभाषा दी गई है वह है भय और दहशत। जो हर युग में रही है, अपने-अपने रूप में। आज मैं अपने देश में फैले आतंकवाद पर विचार करने बैठा हूं। अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा किया, उसे गुलाम बनाया और भारत का सब कुछ लूटकर अपने देश पहुंचाया और जब अंग्रेजों के इस लूट का विरोध हुआ तो विरोध करने वालों को ब्रिटिश साम्राज्य ने आतंकवादी और उनके द्वारा किये जा रहे कार्य को आतंक की संज्ञा दिया। हमारे देश की लड़ाई ने साम्राज्यवाद को समाप्त किया लेकिन समाप्त हुए साम्राज्य ने देश को खण्डित आजादी दिया। उसके लिए हम दोषी किसी को भी माने
[संस्‍कृतं- भारतस्‍य जीवनम्] अग्रिम जनगणनार्थं एकं आवश्‍यकनिर्देश: सर्वे भारतीयानां प्रति मम एकं निवेदनं अस्ति । यदि भवन्‍त: स्‍वीकरिष्‍यन्ति चेत् न केवलं संस्‍कृतस्‍य अपितु सम्‍पूर्ण भारतस्‍य, भारतीय संस्‍कृते: च कल्‍याणाय एव भविष्‍यति। आगामी जनगणनायां सर्वे संस्‍कृतज्ञा: कृपया स्‍व मातृभाषास्‍थाने संस्‍कृतम् एव लिखेयु: तथा ये स्‍वकीयं अल्‍पसंस्‍कृतविज्ञ: इति मन्‍यन्‍ते तेषां प्रति मम कथनं अस्ति यत् वयं सर्वे दैनिक जीवने कस्‍याचित् अपि भाषाया: वाचने संस्‍कृत शब्‍दानां प्रयोग: कुर्म: एव । न केवल भारतीय भाषासु अपितु वैदेशिकभाषासु अपि संस्‍कृतस्‍य शब्‍दा न्‍यूनाधिका: गृहीता: एव सन्ति यथा आग्‍लभाषाया: गो शब्‍द:- इत्‍यस्‍य अर्थ: गमनं इति भवति खलु । गो इत्‍यस्‍य संस्‍कृत व्‍युत्‍पत्ति: गच्‍छति इति गो इति अस्ति । अत: यदि वयं संस्‍कृतम् इति अस्‍माकं मातृ अथवा द्वितीय भाषा इति लिखाम: चेत् न कापि हानि: अपितु लाभाय एव । अत्र मम किमपि दुराग्रह: नास्ति अपितु अहं केवलं अस्‍माकं भारतस्‍य, भारतीयसंस्‍कृते: च विषये एव चिन्‍तयन्  एवं निर्दिशामि । मम आशय: केवलं एष: एव यत् यत् सम्‍मानं वयं विदेशी

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं, सादर प्रणाम, आज ब्लोगोत्सव के नौवें दिन अर्थात दिनांक 07 .05.2010 के संपन्न कार्यक्रम का लिंक- ब्लोगोत्सव - २०१० : एक संभावना हो तुम ! http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_2018.html वर्चुअल टेक्नोलोज़ी में जबरदस्त सामर्थ्य है : गौहर रजा http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_3168.html आज ब्लोगजगत को उत्सव परंपरा निभाने की बहुत जरूरत है : अजय कुमार झा http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_4761.html शमा का संस्मरण : शहीद तेरे नाम से ... http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_6146.html यह उत्सव समय का सशक्त इतिहास बनेगा : रश्मि प्रभा http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_07.html रश्मि प्रभा की कविता : हमसफ़र http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_7799.html यह ब्लाग जगत के इतिहास में अवश्य ही मील का पत्थर साबित होगा : ललित शर्मा http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_763.

गीत : भारतीय जो... ---संजीव 'सलिल'

गीत : संजीव 'सलिल' भारतीय जो उसको भारत माता की जय कहना होगा. सर्व धर्म समभाव मानकर, स्नेह सहित मिल रहना होगा... * आरक्षण की राजनीति है त्याज्य करें उन्मूलन मिलकर. कमल योग्यता का प्रमुदित सौन्दर्य सौंदर्य बिखेरे सर में खिलकर. नेह नर्मदा निर्मल रहे प्रवाहित हर भारतवासी में- द्वेष-घृणा के पाषाणों को सिकता बनकर बहना होगा.. * जाति धर्म भू भाषा भूषा, अंतर में अंतर उपजाते. भारतीय भारत माता का दस दिश में जयकार गुंजाते. पूज्य न हो यह भारत जिसको उसे गले से लगा न पाते- गैर न कोई सब अपने हैं, सबको हँसकर सहना होगा... * कंकर-कंकर में शंकर हैं, गद्दारों हित प्रलयंकर हैं. देश हेती हँस शीश कटाएँ, रण में अरि को अभ्यंकर हैं. फूट हुई तो पद्मिनियों को फिर जौहर में दहना होगा... * ******