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Showing posts from June 19, 2010

हम सचमुच सभ्य हैं?

Source: गोपालकृष्ण गांधी | इससे पहले मोहल्‍ला लाइव, यात्रा बुक्‍स और जनतंत्र का आयोजन ऐसी क्यों है जिंदगी चेन्नई में वह टैक्सी मुझे सेंट्रल स्टेशन की ओर लिए जा रही थी। सुबह के पांच बजे थे। बेंगलुरू के लिए मुझे जो शताब्दी गाड़ी लेनी थी, वह साढ़े छह बजे छूटने वाली थी। सड़कों पर ट्रैफिक और भीड़भाड़ बिल्कुल नहीं थी। जैसे ही हम बगल से मंदिर से होकर गुजरे, टैक्सी ड्राइवर ने चुपचाप मन-ही-मन प्रार्थना की और फिर आगे बढ़ गया। सूर्योदय के पहले की उस बेला में मरीना समुद्र तट एक आकर्षक पट्टी की तरह दिख रहा था। हमारी गाड़ी उस तट के किनारे-किनारे से होती गुजरी। यह कहने की जरूरत नहीं कि हम बहुत कम समय में स्टेशन पहुंच गए। ड्राइवर नीचे उतरा, सामान उतारने में मेरी मदद की, अपना किराया लिया और उतना ही चुपचाप शांति से वापस लौट गया, जितना चुपचाप शांति से वह मुझे लेकर आया था। कोई शक नहीं कि लौटते हुए रास्ते में वह हर लाल बत्ती को तोड़कर निकल जाने वाला था क्योंकि अब भी हल्का अंधेरा ही था। एयरकंडीशंड डिब्बे की आरामदायक कुर्सी पर बैठे हुए जब मैंने देखा कि मेरे कोच की बड़ी सीटों वाली कम-से-कम तीन खिड़कियों

पित्र दिवस पर डा श्याम गुप्त के दो दोहे....

शत आचार्य समान है, श्याम' पिता का मान | नित प्रति वंदन कीजिये, मिले धर्म संज्ञान || विद्या दे और जन्म दे , औ संस्कार कराय | अन्न देय, निर्भर करे, पांच पिता कहालायं ||

लो क सं घ र्ष !: अपसंस्कृति

दुनिया की आप़ा धापी में शामिल लोग भूल चुके है अलाव की संस्कृति नहीं रहा अब बुजुर्गों की मर्यादा का ख्याल उलझे धागे की तरह नहीं सुलझाई जाती समस्याएं संस्कृति , संस्कार , परम्पराओं की मिठास को मुंह चिढाने लगी हैं अपसंस्कृति की आधुनिक बालाएं अब वसंत कहाँ ? कहां ग़ुम हो गयीं खुशबू भरी जीवन की मादकता उजड़ते गावं - दरकते शहर के बीच उग आई हैं चौपालों की जगह चट्टियां जहाँ की जाती ही व्यूह रचना थिरकती हैं षड्यंत्रों की बारूद फेकें जाते हैं सियासत के पासे भभक उठती हैं दारू की गंध - और हवाओं में तैरने लगती हैं युवा पीढ़ी गूँज उठती हैं पिस्टल और बम की डरावनी आवाज़ सहमी - सहमी उदासी पसर जाती हैं गावं की गलियों , खलिहानों और खेतों की छाती पर यह अपसंस्कृति का समय हैं | - सुनील दत्ता मोबाइल- 09415370672

मोहल्‍ला लाइव, यात्रा बुक्‍स और जनतंत्र का आयोजन

मोहल्‍ला लाइव, जनतंत्र और यात्रा बुक्‍स के आयोजन बहसतलब-२ का सफलता पूर्वक समापन हुआ..ज्ञातव्य है की  मोहल्ला लाइव के संपादक अविनाश जी आम जनता से जुड़े मुद्दों पर इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन करते रहते है.. हिन्दुस्तान का दर्द- मोहल्‍ला लाइव, जनतंत्र और यात्रा बुक्‍स के आयोजन बहसतलब-२ के सफल आयोजन पर हार्दिक बधाई प्रेषित करता है.   बहसतलब ‘दो’ में अचानक पहुंचे अनुराग, सवालों से घिरे मोहल्‍ला लाइव , जनतंत्र और यात्रा बुक्‍स के आयोजन बहसतलब दो अचानक पहुंच कर फिल्‍म निर्देशक अनुराग कश्‍यप ने सबको चौंका दिया। बात उन्‍हीं से शुरू हुई। अनुराग ने कहा कि सिनेमा एक खर्चीला माध्‍यम है, इसलिए ये बाजार की कैद में है। जिस सिनेमा में आम आदमी की चिंता की जाती है, वह हॉल तक पहुंच ही नहीं पाता। समांतर सिनेमा को सरकार का सपोर्ट था। एनएफडीसी को फिर से खड़ा करने की बात चल रही है, उसके बाद कुछ फिल्‍मों में आम आदमी दिख सकता है। लेकिन अगर इस बार भी दर्शकों ने परदे पर आम आदमी को खारिज कर दिया, तो सिनेमा जैसे माध्‍यमों में आम आदमी की बात बेमानी हो जाएगी। अनुराग से कई  लोगों ने सवाल किये और ज्‍यादातर सवाल ये
एकं इतोपि ददातु कलह: जायमान: अस्ति । एकदा एक: युवक: एकस्मिन् विपणीं (दुकान में) गत: । स: विक्रेतां (दुकानदार) प्रति एकचसक (ग्‍लास) सूप: (जूस) दातुम् उक्‍तवान् । यदा क्रेता तं एकचसक सूप: दत्‍तवान् तदा स: सूपं पीत्‍वा 'एकं इतोपि ददातु कलह: जायमान: (झगडा होने वाला) अस्ति' इति उक्‍तवान । एकं इतोपि पीत्‍वा स: तथैव पुन: उक्‍तवान यत् एकं इतोपि ददातु कलह: जायमान: अस्ति । एतत् श्रुत्‍वा क्रोधेन क्रेता उक्‍तवान यत् कदा केन वा सह कलह: जायमान: अस्ति । स: उत्‍तरं दत्‍तवान यत् भवता सह भविष्‍यति यदा भवान धनस्‍य कृते वदिष्‍यति तर्हि । । हाहा हाहा
एहि हसाम: ।। एकदा चत्वार: जना: कुत्रचित् एकं लघुआयोजनं (पार्टी) कर्तुं गतवन्‍त: ।  ते आपणत: (दुकान) चत्वार: त्रिकोणपिष्‍टकं (समोसा) स्‍वीकृतवन्‍त: ।  यदा ते आनन्‍दायोजनं कर्तुम् उद्युक्‍ता: आसन् तेषां स्‍मरणम् आगतम् यत् ते इदानीं पर्यन्‍तं शीतपेयं (पेप्‍सी इत्‍यादि) न स्‍वीकृतवन्‍त: । ते विचारितवन्‍त: यत् तेषु कश्चित् पुन: विपणीं (बाजार) गत्‍वा शीतलपेयं स्‍वीकुर्यात् । तेषु एक: गन्‍तुं स्‍वीकृति: दत्तवान  ।  किन्‍तु यदा पर्यन्‍तम् अहं न आगच्‍छानि तदा पर्यन्‍तं कोपि एकमपि पिष्‍टकं न भुंजेत (खाये) इति स: अवदत् । सर्वे अंगीकृतवन्‍त: (स्‍वीकार किया) स: गत: ।  एक: दिवस: गत:, स: न आगतवान ।  द्वितीय: दिवस: गत:,   पुनरपि स: न आगतवान । सर्वे विचारितवन्‍त: यत् सम्‍भवत:  स: विस्‍मृतवान शीतलपेयं आनेतुम् अत: इदानीं वयं स्‍व-स्‍व पिष्‍टकं भुंजेयम  (खायें) । अत: तृतीये दिवसे ते पिष्‍टकं भोक्‍तुम्  उद्यता: अभवन ।  यदैव जैसे ही ते पिष्‍टकं हस्‍ते स्‍वीकृतवन्‍त: चतुर्थ: वृक्षस्‍य पृष्‍ठत: (पेड के पीछे से) बहि: आगत: उक्‍त: च  यदि भवन्‍त: पिष्‍टकं खादिस्‍यन्ति

मेरे पिता जी महान है॥

परम पिता परमेश्वर से॥ मेरे पिता जी महान है॥ वही मेरे जन्म दाता॥ वे ही भगवान है॥ दुःख नहीं आने देते ॥ करते मेरी सेवा॥ मांगू छोहारे ॥ खिलाते है मेवा॥ मेरी जिंदगी के॥ वे ही आधार है॥ वही मेरे जन्म दाता॥ वे ही भगवान है॥ मुझे दुःख आये तो॥ आंसू बहाते॥ मुझे खुसी देते॥ खुद गम में नहाते॥ तुम्ही मेरी इज्जत ॥ तुम्ही मेरी मान ... वही मेरे जन्म दाता॥ वे ही भगवान है॥ मुझे गर्भ होता जब बेटा कहाता॥ मिलाती है शान्ति॥ गोता लगाता॥ तेरी करू सेवा मै॥ हम भी इंसान है॥ वही मेरे जन्म दाता॥ वे ही भगवान है॥

लो क सं घ र्ष !: अमेरिकी साम्राज्यवाद का रूप व एशिया - (अंतिम भाग)

वास्तव में इन सबके पीछे अमेरिका की वह रणनीति है जिसके अन्तर्गत वह ईरान जैसे कई देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है ताकि वह विश्व में स्वयं को सिरमौर बना सके। ‘‘जिस तरह यह तथ्य सभी जानते हैं कि सारी दुनिया के ज्ञात प्राकृतिक तेल भण्डारों का 60 प्रतिशत पश्चिम एशिया में मौजूद हैं, अकेले सऊदी अरब में 20 प्रतिशत, बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में मिलाकर 20 प्रतिशत और इराक व ईरान में 10-10 प्रतिशत तेल भण्डार हैं। ईरान के पास दुनिया की प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा भण्डार है, उसी तरह लगभग सारी दुनिया में अमेरिका के कारनामों से परिचित लोग इसे एक तथ्य की तरह स्वीकारते हैं कि अमेरिका की दिलचस्पी न लोकतंत्र में है, न आतंकवाद खत्म करने में, न दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरों से बचाने में, बल्कि उसकी दिलचस्पी तेल पर कब्जा करने और इसके जरिये बाकी दुनिया पर अपना वर्चस्व बढ़ाने में है। अमेरिका की फौजी मौजूदगी ने उसे दुनिया के करीब 50 फीसदी प्राकृतिक तेल के स्रोतों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कब्जा दिला दिया है और अब उसकी निगाह ईरान के 10 प्रतिशत पर काबिज ह