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Showing posts from June 27, 2009

लो क सं घ र्ष !: मुंद जाते पहुनाई से

परिवर्तन नियम समर्पित , झुककर मिलना फिर जाना। आंखों की बोली मिलती , तो संधि उलझते जाना॥ संध्या तो अपने रंग में, अम्बर को ही रंग देती। ब्रीङा की तेरी लाली, निज में संचित कर लेती॥ अनगिनत प्रश्न करता हूँ, अंतस की परछाई से। निर्लिप्त नयन हंस-हंस कर, मुंद जाते पहुनाई से ॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

लो क सं घ र्ष !: संघी कारसेवको से कांग्रेस को बचाएँ राहुल -2

वास्तव में कांग्रेस में अपना आशियाना बनाकर आगे अपनी पार्टी को शक्ति एवं उर्जा देने की भाजपा की परम्परा रही है। वर्ष 1980 में जब उस ज़माने के कांग्रेसी युवराज संजय गाँधी के अनुभवहीन कंधो की सवारी करके कांग्रेस अपनी वापसी कर रही थी और दोहरी सदाशयता का दंश झेल रहे भाज्पैयो को अपनी डूबती नैय्या के उबरने का कोई रास्ता नही सूझ रहा था तो संजय गाँधी द्वारा बने जा रही युवक कांग्रेस में अपने कार्यकर्ताओ को गुप्त निर्देश भाजपा के थिंक टैंक आर.एस.एस के दिग्गजों द्वारा देकर उन्हें कांग्रेस में दाखिल होने की हरी झंडी दी गई। परिणाम स्वरूप आर.एस.एस के नवयुवक काली टोपी उतार कर सफ़ेद टोपी धारण कर लाखो की संख्या में दाखिल हो गए। कांग्रेस तो अपने पतन से उदय की ओर चल पड़ी , मगर कांग्रेस के अन्दर छुपे आर.एस.एस के कारसेवक अपना काम करते रहे और इन्हे निर्देश इनके आकाओं से बराबर मिलता रहा । यह काम आर.एस.एस ने इतनी चतुराई से किया की राजनीती चतुर खिलाडी और राजनितिक दुदार्शिता की अचूक सुझबुझ रखने वाली तथा अपने शत्रुवो पर सदैव आक्रामक प्रहार करने वाली इंदिरा गाँधी भी अपने घर के अन्दर छुपे इन भितार्घतियो को पहचान न सकी

चलता हूं दोस्त...देख लेना

हर दिन की तरह बुधवार को भी मैं अपने दफ्तर में रन डाउन की बगल की अपनी सीट पर बैठा था। अचानक पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और पीछे से आवाज आई- अच्छा दोस्त चलता हूं, तड़का के दो सेगमेंट निकल गए हैं, बाकि देख लेना। मैं जब तक पीछे मुड़ता तब तक शैलेन्द्र जी हाथ हिलाते हुए न्यूज रूम से बाहर की तरफ चल पड़े थे। तड़का फिल्मी दुनिया पर हमारे चैनल पर चलनेवाला एक शो है जिसे शैलेन्द्र जी प्रोड्यूस करते थे। उस दिन से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि शैलेन्द्र घर जाते वक्त मुझे कहें कि देख लेना। सबकुछ सामान्य ढंग से खत्म हुआ। फाइनल बुलेटिन रोल करने के बाद मैं लगभग एक बजे घर पहुंचा। लगभग ढाई बजे तक रात की पाली के प्रोड्यूसर से सुबह की बुलेटिन की प्लानिंग पर बात होती रही और फिर अखबार आदि पलटने के बाद सो गया। सुबह साढ़े चार बजे के करीब मोबाइल की घंटी बजी और दफ्तर के एक सहयोगी ने सूचना दी कि नोएडा एक्सप्रेस वे पर शैलेन्द्र जी का एक्सीडेंट हो गया है और वो ग्रेटर नोएडा के शारदा अस्पताल में भर्ती हैं। इस सूचना के बाद दफ्तर में फोन मिलाया तो जानकारी मिली कि रात तकरीबन ढाई बजे शैलेन्द्र जी की गाड़ी की टक्कर

लो क सं घ र्ष !: छाया पड़ती हो विधु पर...

खुले अधर थे शांत नयन, तर्जनी टिकी थी चिवु पर। ज्यों प्रेम जलधि में चिन्मय, छाया पड़ती हो विधु पर॥ है रीती निराली इनकी , जाने किस पर आ जाए। है उचित , कहाँ अनुचित है? आँखें न भेद कर पाये॥ अधखुले नयन थे ऐसे, प्रात: नीरज हो जैसे। चितवन के पर उड़ते हो, पर भ्रमर बंधा हो जैसे॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"