Skip to main content

Posts

Showing posts from September 3, 2009

लो क सं घ र्ष !: या सुंदर केवल आशा...

आशा का सम्बल सुंदर , या सुंदर केवल आशा । विभ्रमित विश्व में पल - पल , लघु जीवन की प्रत्याशा ॥ रंग मंच का मर्म कर्म है , कहीं यवनिका पतन नही । अभिनय है सीमा रेखा , कहीं विमोहित नयन नही ॥ सत् भी विश्व असत भी है , पाप पुण्य ही हेतु बना । कर्म मुक्ति पाथेय यहाँ , स्वर्ग नर्क का सेतु बना ॥ डॉक्टर यश वीर सिंह चंदेल ' राही '

एक दिन ऐसा आयेगा॥

एक दिन ऐसा आयेगा॥ नदिया नहलाएगी..मुझको॥ पवन हिलोरे देकर्के॥ आँचल में सुलायेगी ..मुझको॥ ख़ुद आकरके पुष्प पवन लता से॥ हार पिन्हाई गे मुझको॥ नभ से बादल हस करके॥ अमृत पिलायेगे मुझको॥ नई नवेली दुल्हन अर्थी॥ फ़िर अपनायेगी मुझको॥ एक दिन ऐसा आयेगा॥ नदिया नहलाएगी..मुझको॥

गीतिका: शब्द-शब्द से छंद बना तू। --आचार्य संजीव 'सलिल'

शब्द-शब्द से छंद बना तू। श्वास-श्वास आनंद बना तू॥ सूर्य प्रखर बन जल जाएगा, पगले! शीतल चंद बना तू॥ कृष्ण बाद में पैदा होंगे, पहले जसुदा-नन्द बना तू॥ खुलना अपनों में, गैरों में ख़ुद को दुर्गम बंद बना तू॥ 'सलिल' ठग रहे हैं अपने ही, मन को मूरख मंद बना तू॥ ********************