♦ अजित कुमार अजित न तो पत्रकार हैं, न साहित्यकार। शुद्ध नौकरी-पेशा आदमी हैं। सत्यमेव जयते के बाद जब इस साइट के मॉडरेटर ने अपनी एफबी वॉल पर यह टिप्पणी की कि सत्यमेव जयते देखते हुए आंसू नहीं, आज आंखों में खून उतर आया, तो अजित ने वहां कुछ टिप्पणियां की। हमने उनसे अनुरोध किया कि आप अपने अनुभव विस्तार से लिखें। उन्होंने इस बात की परवाह किये बिना हामी भर दी कि उनके लिखने से उनकी पेशागत जिंदगी पर असर पड़ सकता है। हमने उन्हें अतिरिक्त सावधानी के लिए किसी और नाम के इस्तेमाल की सलाह भी दी, लेकिन उन्होंने कहा कि नाम जाने दीजिए। सच के साथ खड़ा होना ज्यादा मायने रखता है। आप पढ़िए कि अजित अपने अनुभव की गठरी से स्वास्थ्य सेवाओं के कितने भयावह पहलू सामने रख रहे हैं : मॉडरेटर … मे डिकल रिप्रेजेंटेटिव … बचपन में ये नाम सुनते ही एक ऐसे व्यक्ति की तस्वीर आंखों के सामने आती थी जो कि प्रेस किये हुए कपड़े, चमकते जूते और गले में टाई लगाता है, हाथों में चमड़े का लाल रंग का अटैचीनुमा बैग लेकर डॉक्टरों से मिलने जाता है। अंग्रेजी में बातें करता है और डॉक्टरों को नवीनतम औषधियों की खोज और व