Eन्ने फिल्म निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप इन दिनों चर्चा में हैं। यात्रा बुक्स , मोहल्ला लाइव और जनतंत्र की साझा पेशकश बहसतलब -दो में आने के बाद से उनका घेराव हो रहा है। अनुराग ने फिल्मी दुनिया की एक हक़ीक़त बयां की। बताया कि कैसे फिल्म निर्देशकों के हाथ बंधे हैं। और बंधे हुए हाथों के साथ आंदोलनी फिल्में नहीं बनाई जा सकती। उन्होंने यह भी बताया कि फिल्मों में पैसा लगाने वाले मुनाफा देखते हैं। मुनाफा नहीं मिलने का हल्का सा अहसास भी उन्हें आम आदमी से जुड़ी फिल्मों में पैसा लगाने से रोकता है। बिना पैसे के फिल्में बनती नहीं। कुछ पैसे का इंतजाम करके अगर कोई फिल्म बना भी ले तो रिलीज नहीं होती। यही वजह है कि दर्जनों की संख्या में बेहतरीन फिल्में बन कर तैयार हैं लेकिन उन्हें रिलीज कराने को कोई तैयार नहीं। ये सच वो सभी जानते हैं जो सिनेमा के जरिए क्रांति करने के इरादे से बॉलीवुड पहुंचे और हाशिए पर ढकेल दिए गए। वो भी जिन्होंने खुद को वहां के माहौल में ढाला और अच्छी फिल्में बनाने के लिए स्पेस बढ़ाने की कोशिश की। थोड़ी कामयाबी मिली। थोड़ी और कामयाबी हासिल करने की कोशिश जारी है। फिल्म इंडस्ट्री