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Showing posts from May 2, 2012

हिंदी सिनेमा के 100 साल.

भारतीय सिनेमा ने 100 साल का अपना सफर पूरा कर लिया है. इस सफर में इतने पड़ाव, इतने चेहरे, इतनी आवाजें, इतने मोड़, सफलता की इतनी अट्टालिकाएं हैं कि इस पर कोई भी बात करने के लिए कई सौ पन्नों भी नाकाफी साबित होंगे. इस सफर को एक पन्ने में समेटना गागर में सागर भरने से भी कहीं ज्यादा कठिन काम है. सिनेमा के 100 साल के सफर को हमने दशक की बेहतरीन फिल्मों के हिसाब से देखने की कोशिश की है. जाहिर है ऐसी हर कोशिश आखिरकार बहुत कुछ छूट जाने का अहसास दे जायेगी. यहां भी ऐसे कई नाम छूट गये, जिसे बहुत से लोग अपनी पसंदीदा फिल्म मानते हैं. इन सीमाओं के भीतर सदी के सिनेमा का जायजा देने की हमारी कोशिश.. -विनोद अनुपम- भारतीय सिनेमा के 100वें वर्ष पर जितनी जरूरत दादा साहब फाल्के के ‘राजा हरिश्चंद्र’ को याद करने की है, शायद उतनी ही जरूरत परेश मोकाशी की मराठी फिल्म ‘हरिश्चंद्राची फैक्टरी’ को भी. ऑस्कर की दौड़ में यह फिल्म भले ही पिछड़ गयी हो, लेकिन जब भी भारतीय सिनेमा के अतीत की ओर झांकने की जरूरत पड़ेगी, यह फिल्म हमारे दिल के सबसे करीब रहेगी. ‘राजा हरिश्चंद्र’ का महत्व सिर्फ हिंदुस्तान की पहली फिल्म क

डर्टी कार्टून, डर्टी पिक्चर

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने प्रांत में उनके काटरून बनाने वाले को कैद कर लिया, साथ ही अपनी प्रिय जनता से कहा है कि टेलीविजन पर खबरें न देखकर केवल मनोरंजन के कार्यक्रम देखें। दूसरी ओर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने ऐन मौके पर एकता कपूर की ‘द डर्टी पिक्चर’ का प्रसारण नहीं होने दिया। क्या सत्तासीन लोग कैरीकेचर को डर्टी पिक्चर मानते हैं और डर्टी पिक्चर को अपनी आलोचना समझते हैं? आम जनता क्या देखे, क्या न देखे का निर्णय सरकार लेना चाहती है। हम क्या खाएं या उपवास पर रहें, इसका निर्णय भी सरकार ही कर रही है। सरकारें सुचारू प्रशासन चलाना छोड़कर बाकी सब काम करना चाहती हैं। किसी दिन गरीबी को डर्टी पिक्चर कह दें या मनुष्य के जीवन को व्यंग्य चित्र कहकर प्रतिबंधित कर देंगे। गरीबी को मिटाने का दावा करते-करते गरीब को ही मिटा देना उनके लिए सुविधाजनक हो सकता है। गौरतलब यह है कि क्या सत्तासीन लोग जिसमें धनाढ्य वर्ग शामिल है, सचमुच गरीबी को मिटाना चाहते हैं? दरअसल ऐसा वे नहीं चाहते और गरीबी मिटाने का स्वांग करते रहते हैं, क्योंकि उनके निजाम में गरीब की जबर्दस्त आवश्यकता है। गरीब क

सांसद भिड़े, बाबा अड़े: रामदेव के खिलाफ नोटिस

नई दिल्ली.  सांसदों को लेकर आपत्तिजनक बयान देने पर योग गुरु स्वामी रामदेव की मुश्किलें बढ़ती हुई लग रही हैं। समाजवादी पार्टी के लोकसभा सदस्य शैलेंद्र कुमार ने इस मुद्दे पर विशेषाधिकार हनन का नोटिस देते हुए कहा कि सांसदों का संसद के बाहर लगातार अपमानित किया जा रहा है। कभी कोई संत तो कभी कोई सामाजिक कार्यकर्ता सांसदों को चोर, लुटेरा, शैतान, हैवान कह रहा है। बाबा रामदेव को बीजेपी से भी इस मुद्दे पर समर्थन नहीं मिल रहा है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने संसद परिसर में मीडिया से बात करते हुए स्वामी रामदेव की आलोचना की। उन्होंने कहा, 'कोई कितना बड़ा भी संत हो, समाजसेवी हो, उसे सांसदों के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है।'     गौरतलब है कि दुर्ग में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ अपनी यात्रा की शुरुआत करते हुए स्वामी रामदेव ने कहा था, 'संसद में बैठे कुछ लोग रोगी, जाहिल और लुटेरे हैं।' स्वामी रामदेव ने सांसदों को हत्यारा तक करार देते हुए कहा है कि संसद में बैठे लोग इंसान के रूप में शैतान-हैवान हैं। उन्होंने कहा, '543 रोगी हिंदुस्तान चला रहे है