आशुतोष मैनेजिंग एडिटर आईबीएन7 आशीष नंदी बड़े विद्वान हैं और उनकी बहुत इज्जत है। चुनावों की समीक्षा करते हुए उन्होंने लिखा कि बीजेपी और दूसरी पार्टियों को उनका दंभ यानी "एरोगेंस" ले डूबा। उनकी तुलना में देश की जनता ने मनमोहन सिंह की "विनयशीलता और सज्जनता" को सराहा और उनके सिर जीत का सेहरा बांधा। नंदी का विश्लेषण दिलचस्प है, और अरुण जेटली की बात से काफी मेल भी खाता है। जेटली का कहना है कि मतदाताओ ने "श्रिलनेस" यानी अनावश्यक बयानबाजी, सतहीपने को नकार दिया, लोगों ने "मॉडरेशन" को पसंद किया न कि जिंगोइजम को। जिंगाइजम और एरोगेंस बड़े शब्द हैं और अगर नंदी और जेटली जैसे लोग इनका इस्तेमाल करते हैं तो फिर अनायास ही सबकी नजर भी उधर ही उठ जाती है। इन जुमलों से चुनावों का खूबसूरत विश्वेषण तो हो जायेगा लेकिन सही तस्वीर सामने आ पाएगी, कहना मुश्किल है। देश मे इस वक्त दो तरह की धाराएं गडमड हो रही हैं। एक, पुराने परंपरागत "प्री-इंडस्ट्रियल" अंदाज में। और दो, आधुनिक "इंडस्ट्रियल स्टाइल" में। "प्री इंडस्ट्रियल" अंदाज की राजनीति के मूल मे