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Showing posts from June 14, 2009

कांग्रेस की फैक्ट्री से निकला नया प्रोडक्ट-राहुल

आशुतोष मैनेजिंग एडिटर आईबीएन7 आशीष नंदी बड़े विद्वान हैं और उनकी बहुत इज्जत है। चुनावों की समीक्षा करते हुए उन्होंने लिखा कि बीजेपी और दूसरी पार्टियों को उनका दंभ यानी "एरोगेंस" ले डूबा। उनकी तुलना में देश की जनता ने मनमोहन सिंह की "विनयशीलता और सज्जनता" को सराहा और उनके सिर जीत का सेहरा बांधा। नंदी का विश्लेषण दिलचस्प है, और अरुण जेटली की बात से काफी मेल भी खाता है। जेटली का कहना है कि मतदाताओ ने "श्रिलनेस" यानी अनावश्यक बयानबाजी, सतहीपने को नकार दिया, लोगों ने "मॉडरेशन" को पसंद किया न कि जिंगोइजम को। जिंगाइजम और एरोगेंस बड़े शब्द हैं और अगर नंदी और जेटली जैसे लोग इनका इस्तेमाल करते हैं तो फिर अनायास ही सबकी नजर भी उधर ही उठ जाती है। इन जुमलों से चुनावों का खूबसूरत विश्वेषण तो हो जायेगा लेकिन सही तस्वीर सामने आ पाएगी, कहना मुश्किल है। देश मे इस वक्त दो तरह की धाराएं गडमड हो रही हैं। एक, पुराने परंपरागत "प्री-इंडस्ट्रियल" अंदाज में। और दो, आधुनिक "इंडस्ट्रियल स्टाइल" में। "प्री इंडस्ट्रियल" अंदाज की राजनीति के मूल मे

अपना कह दूँ मैं किसको...

मिलकर भी मिल न सका जो , मन खोज रहा है उसको। सव विश्व खलित धाराएं अपना कह दूँ मैं किसको ॥ याचक नयनो का पानी अवगुण्ठन में मुसकाता । ''कल्याण -रूप , चिर-सुंदर- तुम सत्य'' यही कह जाता॥ पृथ्वी का आँचल भीगा तरुनी -लहर ममता में। निर्दयता की गाथायें अम्बर -पट की समता में॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

कुछ डूबी सी उतराए...

जो है अप्राप्य इस जग में , वह अभिलाषा है मन की। मन-मख,विरहाग्नि जलाकर आहुति दे रहा स्वयं की॥ अपने से स्वयं पराजित , होकर भी मैं जीता हूँ । अभिशाप समझ कर के भी मैं स्मृति - मदिरा पीता हूँ ॥ दुर्दिन की घाटी भी अब विश्वाश भरी लहराए। उस संधि -पत्र की नौका कुछ डूबी सी उतराए॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई

चंडीगढ़. इन बच्चों को उस ख़ता की सजा मिल रही है जो इन्होंने कभी की ही नहीं। जून की शुरुआत के साथ ही पंजाब में लोगों के ज़ेहन में बुरे दिनों की यादें कुलबुलाने लगती हैं। 1984 से 88 के बीच की घटनाओं की यादें। लेकिन सूबे में आतंकवाद के दौर की यादें इससे कहीं ज्यादा कड़वी हैं। नवें दशक में मारे गए ऐसे तमाम लोगों की अगली पीढ़ी के बच्चे अब जवान हो गए हैं। समाज आज भी उन्हें अतीत से ही जोड़कर देखता है। ग्रुरु ट्रस्ट में रह रहे ऐसे ही बच्चों की आपबीती, उन्हीं की ज़बानी। गुरजीत कौर अब 22 बरस की हो गई हैं। पिछले चार साल से मोहाली के गुरु आसरा ट्रस्ट में आश्रय ले रखा है। सिल्वर ओक्स अस्पताल से जीएनएम का कोर्स करने के बाद अब फोर्टिस अस्पताल में नर्स हैं। अपना काम उन्हें पसंद नहीं। वह टीचर बनना चाहती हैं। लेकिन कैसे, इस सवाल का जवाब अभी उन्हें तलाशना है। गुरजीत बताती हैं, ‘मेरे पिता हरजिंदर सिंह, बाबा ठाकर सिंह के साथ रहते थे। यही उनका दोष था। 1992 में बटाला चौक (अमृतसर) में पुलिस ने उन्हें मार दिया। तब मैं पांच साल की थी। नहीं जानती कि इतना बड़ा क्या कसूर था, लेकिन मैं अकेली संतान और उस पर गांव में ब