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Showing posts from March 10, 2010

राय देने में किसी भी प्रकार की कंजूसी न करें......

गूगल और लाइव हिन्दुस्तान द्वारा आयोजित प्रतियोगिता के लिए मेरे द्वारा भेजे गए लेख    ''मनोरंजन की जरुरत और अनछुई हकीकत''    पर विजिट करें  तथा लेख की अच्छाई एवं बुराई को अपनी राय देकर प्रकट करने की कृपा करें.आपकी राय मेरी लिए काफी महत्वपूर्ण होगी...... कृपा कर आपसे अनुरोध है की अपनी राय देने में किसी भी प्रकार की कंजूसी न करें...... लेख पर जाने के लिए यहाँ क्लीक करें:- संजय सेन सागर हिन्दुस्तान का दर्द, आगे पढ़ें के आगे यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

लो क सं घ र्ष !: देश की अस्मिता पर भारी व्यवसायिकता

हाकी के जादूगर मेज़र ध्यान चंद कुंवर दिग्विजय सिंह देश के राष्ट्रीय खेल की वर्तमान में क्या दशा है इसका आंकलन वर्तमान में देश की सरजमीं पर चल रही विश्व कप प्रतियोगिता से भली -भांति लगाया जा सकता है जब उसके सातवें स्थान पर आने की आशा पर हांकी संघ के पदाधिकारी व खिलाड़ी गर्व की अनुभूति प्रदर्शित करते दिखलाई दे रहे हैं। हांकी के लिए हमारी सरकार के दिल में क्या जगह है और इसका क्या सम्मान है इसका एक उदहारण यह है कि दिल्ली में आयोजित विश्व कप प्रतियोगिता के प्रसारण अधिकार टेन स्पोर्ट्स चैनल को बेंच दिया गया है जो बड़े घरों की जीनत है। किसी भी खेल की लोकप्रियता की अलख जगाने के लिए उसके प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण योगदान रहता है और यह गौरव हो और यह पतन की ओर जा रहा हो। जी हाँ हम बात कर रहे हैं अपने राष्ट्रीय खेल हाकी की जिसके स्वर्णिम इतिहास का कीर्तिमान पूरे विश्व में स्थापित करने में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचं

इंसानियत गढती है स्त्री...किन्तु

हमे महिला और पुरुष में कोई मतभेद नही करना चाहिए, वे सिर्फ शारीरिक रूप  से अलग है. बापूजी कि बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी पहले थी. आज भी हमारे समाज में महिलाए कई तरह के भेदवाव का शिकार होती है. मै बापू के विचारों कों एवं उनके अर्थो कों घटनाओं के रूप में देखता हू . बापू के शब्दों में -" पत्नी, पति की कोई  गुलाम नही  बल्कि एक साथी और मददगार है.  वह  पति के सुख दुःख की बराबर कि भागीदार होने के साथ साथ अपने रास्ते खुद चुनने के लिए भी स्वतंत्र है." स्त्री- जीवन के समस्त धार्मिक और पवित्र घरोहर   क़ी मुख्य संरक्षिका है. इसका सीधा-सा अर्थ है क़ी औरत इंसानियत गढ़ती है . उसके व्यक्तित्व में प्रेम, समर्पण, आशा और विशवास समाया हुआ है. खासकर यदि हमे एक अहिंसक समाज का निर्माण करना है तो महिलाओं क़ी क्षमता पर भरोसा करना जरूरी है. सबसे पहले तो स्त्री कों अबला कहना अपराध है . यह अन्याय है. यदि शक्ति का मतलब बर्बर शक्ति है, तो अवश्य ही स्त्री पुरुष क़ी अपेक्षा कम बर्बर है. यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है, तो स्त्री पुरुष से कई अधिक श्रेष्ठ है. यदि हमारे अस्तित्व का नियम अंहिसा