हमे महिला और पुरुष में कोई मतभेद नही करना चाहिए, वे सिर्फ शारीरिक रूप से अलग है. बापूजी कि बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी पहले थी. आज भी हमारे समाज में महिलाए कई तरह के भेदवाव का शिकार होती है. मै बापू के विचारों कों एवं उनके अर्थो कों घटनाओं के रूप में देखता हू . बापू के शब्दों में -" पत्नी, पति की कोई गुलाम नही बल्कि एक साथी और मददगार है. वह पति के सुख दुःख की बराबर कि भागीदार होने के साथ साथ अपने रास्ते खुद चुनने के लिए भी स्वतंत्र है." स्त्री- जीवन के समस्त धार्मिक और पवित्र घरोहर क़ी मुख्य संरक्षिका है. इसका सीधा-सा अर्थ है क़ी औरत इंसानियत गढ़ती है . उसके व्यक्तित्व में प्रेम, समर्पण, आशा और विशवास समाया हुआ है. खासकर यदि हमे एक अहिंसक समाज का निर्माण करना है तो महिलाओं क़ी क्षमता पर भरोसा करना जरूरी है. सबसे पहले तो स्त्री कों अबला कहना अपराध है . यह अन्याय है. यदि शक्ति का मतलब बर्बर शक्ति है, तो अवश्य ही स्त्री पुरुष क़ी अपेक्षा कम बर्बर है. यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है, तो स्त्री पुरुष से कई अधिक श्रेष्ठ है. यदि हमारे अस्तित्व का नियम अंहिसा