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Showing posts from February 2, 2011
              ''अमर सुहागन''      हे!  शहीद की प्राणप्रिया तू ऐसे शोक क्यूँ करती है? तेरे प्रिय के बलिदानों से हर दुल्हन मांग को भरती है. ****************************************** श्रृंगार नहीं तू कर सकती; नहीं मेहदी हाथ में रच सकती; चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए; कजरा-गजरा भी रूठ गए; ऐसे भावों को मन में भर क्यों हरदम आँहे भरती है; तेरे प्रिय के बलिदानों से हर दीपक में ज्योति जलती है. ********************************************* सब सुहाग की रक्षा हित जब करवा-चोथ  -व्रत करती हैं ये देख के तेरी आँखों से आंसू की धारा बहती है; यूँ आँखों से आंसू न बहा;हर दिल की धड़कन कहती है-------- जिसका प्रिय हुआ शहीद यंहा वो ''अमर सुहागन'' रहती है.