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Showing posts from December 4, 2010

अच्छी परवरिश या सिर्फ पैसा

 आज मनुष्ये के जीवन संरचना मै इतनी तेज़ी से बदलाव आ रहा है की वो अपने जीवन मै होने वाले उथल पुथल की तरफ भी ध्यान ही  नहीं दे पा रहा है  ! वह तो बस एक रेस मै दोड़ते हुए घोड़े की तरह खुले मैदान मै बस भागता ही चला जा रहा है और वो इस बात से बिलकुल बेखबर है या ये कहो की वो इसकी खबर रखना भी नहीं चाहता की वो इस अंधी  दोड़ मै कितने अपनों का साथ गंवाता चला जा रहा है इसका पता उसे तब चलता है जब वो उन सबसे बहुत दूर चला जाता है और वक़्त उनके हाथ से निकल चुका होता है उनके एहसास उन्हें तब झकझोरते हैं जब वो अपनेआप से थक चुके होते हैं और उन्हें उन एहसासों की जरुरत पड़ती है तब वो चाह कर भी उन पलों को वापस नहीं ला पाते ! क्युकी की कहते हैं न बीते पल कभी लोट  कर नहीं आते बस यादे ही रह जाती हैं.................. बिलकुल इसी तरह पर काश इसका एहसास  उन्हें पहले से हो जाये !                                                                     हम इस मुद्दे को ही ले लेते हैं ! आज हमारे समाज मै पति - पत्नी दोनों पैसा कमाने मै इस कदर डूब गये हैं की उन्हें अपने बच्चों  तक की खबर नहीं है की वो किस दिशा मै आगे बढ रहे

पंचम...

पंचम यानी राहुल देव वर्मन ने सत्तर के दशक में भारतीय फिल्म संगीत को एक नया आयाम दिया .इस दौर में गानों में और अधिक ताजगी आ गयी .प्रयोगधर्मी पंचम को मेहमूद ने अपनी पहली फिल्म ‘छोटे नवाब’ में अवसर दिया और पहले गीत ‘घर आजा घिर आए बदरा’ के लिए लता से प्रार्थना की. अपनी प्रयोगधर्मिता के कारण ही पंचम को टेक्नोलॉजी के प्रति गहरा लगाव था। पंचम ने सचिन देव बर्मन के सहायक के रूप में काम किया और उनकी फिल्मों में कुछ रचनाएं भी की थीं, मसलन, फिल्म ‘प्यासा’ की ‘सिर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए’ और ‘आराधना’ का ‘रूप तेरा मस्ताना’ इत्यादि. उन्हें पार्श्व संगीत के लिए प्रयोग करना पसंद था, जैसे खाली बोतल में फूंक मारने की ध्वनि ‘शोले’ में इस्तेमाल की है, तो रात भर जागकर बरसते पानी की ध्वनि को रिकॉर्ड किया है.