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Showing posts from February 22, 2009

सेक्स करने से भी ज्यादा जरूरी काम क्या..

अमेरिका में सेक्सुअली एक्टिव द्वारा एक हजार लोगों पर किए गए सर्वे के दौरान एक नई बात निकल कर सामने आई है। इस सर्वे के मुताबिक कम से कम 80 फीसदी लोग किसी न किसी कारणवश अपने सेक्स पार्टनर को सेक्स कर ने से मना कर देते हैं। उधर दूसरी तरफ ऐसा माना जाता है कि जिन्हें सेक्स ज्यादा पसंद है, वे किसी अन्य काम को भी बहुत अच्छे ढंग से करते हैं। लेकिन इस सर्वे में कुछ अलग बात सामने आई है.. 60 फीसदी पुरुष दिन में कम से कम एक बार सेक्स करने के बारे में जरूर सोच-विचार करते हैं। इस सर्वे में पाया गया कि दिन में महिलाओं के मुकबाले पुरुष सेक्स के विषय में ज्यादा सोचते हैं। पुरुष दिन में चाहे वह ऑफिस में हो या अन्य किसी काम में व्यस्त हो, लेकिन उनके मन में सेक्स के बारे में एक बार तो जरूर उठापटक होता है। जबकि दूसरी तरफ महिलाओं की संख्या सिर्फ 19 फीसदी ही है। सेक्स करने से भी ज्यादा जरूरी काम क्या है.. सेक्स करने से भी ज्यादा जरूरी काम क्या हो सकता है यह एक सोचने लायक बात है। लेकिन कंज्यूमर रिपोर्ट के मुताबिक 53 फीसदी लोग नींद और ज्यादा थकान की वजह से सेक्स करने से मना कर देते हैं। इसके उपरांत तबियत खराब

एक दिन ब्लोगरों का.................!!

दिनांक २२-०२-२००९,स्थान-कश्यप आई मेमोरियल हॉस्पिटल सभागार,रांची (झारखंड)डाक्टर भारती कश्यप,श्री शैलेश भारतवासी,श्री घनश्याम श्रीवास्तव,श्री मनीष कुमार...........तथा अन्य लोगों के सहयोग से पूर्वी क्षेत्र के ब्लोगरों (यानि चिट्ठाकारों)का जमावडा यानि सम्मलेन एक बेहद अनौपचारिक माहौल में हँसी-खुशी भरे होलियाना अंदाज़ में अभी थोडी ही देर पहले संपन्न हुआ....!!स्थानीय पत्र रांची एक्सप्रेस के संपादक श्री बलबीर दत्त जी,दैनिक आज के संपादक श्री दिलीप जी ,स्वयं डॉ. भारती जी ब्लोगिंग की बाबत अपने विचारों से सभी को अवगत कराया.शैलेश जी एवं मनीष जी ब्लोगिंग के तकनीकी पक्षों और इसके सकारात्मक पक्षों पर प्रकाश डाला तथा ब्लोगरों को अनेकानेक चीज़ों की जानकारी प्रदान की. इस जमावडे में संगीता पुरी(बोकारो)गत्यात्मक ज्योतिषी वाली,पारुल जी (चाँद पुखराज का तथा सरगम),रंजना सिंह,टाटा(संवेदना संसार)शिव कुमार मिश्रा,कोलकाता(शिवकुमार मिश्रा और ज्ञानदत्त पांडे का ब्लॉग)श्यामल सुमन (मनोरमा)शैलेश भारतवासी(हिन्दी युग्म)दिल्ली,मनीष कुमार(एक शाम मेरे नाम और मुसाफिर हूँ यारों),प्रभा

हिन्दी ब्लॉग्गिंग किसके लिए hai?

आज से ३ आगे पहले नटखट बच्चे आगे पढ़े पोस्ट लिखी थी की " हिन्दी ब्लॉग्गिंग लौंडो -लापाडो के लिए नही है" उसको १५ कमेन्ट मिले उनसे लोगो ने जवाब माँगा था की आप बता दे किसके लिए हैं लेकिन उसने जवाब नही दिया । मैंने यह पोस्ट कल देखी थी तो सोचा के यह गहन विचार विमर्श का मसला है , क्यूंकि मैंने कई ब्लोग्स पर उम्र मे बडो लोगो को छोटो की खिचाई करते पाया , किसी कम उम्र के व्यक्ति के लिए ऐसा पढ़ कर थोड़ा बुरा लगता है ....... इसीलिए सोचा क्योँ न इस विषय पर विचार किया जाए , लोग कहते है की अक्ल उम्र और तजुर्बे के साथ आती है लेकिन अब यह सब बदल चुका है पहले इंसान की उम्र ९० - १०० साल हुआ करती थी इसीलिए उसका दिमाग एक वक्त के बाद अच्छा चलता था ..... लेकिन अब इंसान की उम्र बहुत कम हो गई तो उसका दिमाग काफ़ी तेज़ी से काम करता है , आज कल के बच्चे के सामने आप कोई काम कर दीजिये वो फ़ौरन उसको दौराहेगा और एक - दो कोशिशों मे ही उसे ठीक स

डायन का अंत

चेगलेई जनजाति में एक गरीब परिवार रहता था। उनके घर में दो छोटे-छोटे बच्चे थे। पत्नी का नाम रूपा था। पति का नाम था कलियौंग। कलियौंग जी तोड़ मेहनत करता ताकि परिवार का पेट पाल सके। मजदूरी के चक्कर में उसे कई बार घर से बाहर भी रहना पड़ता था। ऐसे समय में पत्नी रूपा बहुत होशियारी से घर का ध्यान रखती। उन दिनों शांगबी डायन ने गाँव भर में आ तंक मचा रखा था। गाँव के जिस घर में पुरुष नहीं होते थे, वह वहाँ घुसकर स्त्रियों व बच्चों को खा जाती। उसके दोनों हाथ बहुत लंबे थे। दरवाजे बंद होने पर भी वह दीवारों की फाँकों से बच्चे उठा ले जाती। कलियौंग को तीन-चार दिन के लिए घर से बाहर जाना पड़ा। रूपा ने आश्वासन दिया-‘आप बेफिक्र होकर जाएँ। मैं घर और बच्चों का पूरा ध्यान रखूँगी। मुझे शांगबी से डर नहीं लगता।’ कलियौंग ने सूरज निकलते ही गठरी उठाई और चल दिया। रूपा मन ही मन भयभीत थी किंतु उसने बच्चों पर अपना भय प्रकट नहीं होने दिया।सूरज ढलते ही गाँववाले, शांगबी के कारण अपने-अपने घरों में घुस गए। रूपा ने भी बच्चों को खिलाया-पिलाया और सुला दिया। वह स्वयं लेटने ही लगी थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया,‘क्या कलियौंग घर पर ह

अनुराधा गुगनानी की सम्मानित कविता-माँ का मंथन

''कलम का सिपाही''कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत अब हम जो कविता प्रकाशित करने जा रहे है उसे अपने हुनर से रचा है ''अनुराधा गुगनानी जी'' ने ! इनके बारे में और अधिक जानकारी के लिए हम इनका जीवन परि चय प्रकाशित कर रहे है ! और हम आपको याद दिला दे की शीर्ष पाँच में से यह चौथे स्थान की कविता है आशा है आपको पसंद आएगी !!हम अनुराधा जी को बहुत बहुत बधाई देते है और इनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ! अनुराधा जी कुछ अल्फाजों में - मै अंजू चौधरी ॥उम्र ४१ ...गृहणी हूँ मै बी।ए तक पड़ी हुई हूँ और अनुराधा गुगनानी मेरा बचपन का नाम है ॥मै इसी नाम से अपने लेख लिखती हू पहली बार किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है मेरा कोई भी लेख अभी तक कही नहीं प्रकाशित नहीं हुआ है बहुत वक़्त से लिख रही हूँ कभी मौका नहीं मिला .....कि अपना लिखा प्रकाशित करवा सकूं ......यहाँ कलम के सिपाही ने मुझे ये मोका दिया मै बहुत आभारी हूँ ....संजय सेन सागर जी कि जो उन्होंने मुझे ये मोका दिया मैंने कभी अपने को लेखक नहीं माना ॥बस जब कॉपी और पेन हाथ मे में आता है अपने आप कुछ लिखा जाता है! एक माँ कि पीडा ...जो