हिन्दू, मुसलमानों व अन्य धर्मों के अधिकांश नेता मोलवी, मौलाना, मुफ्ती, पंडित आदि ने अक्सर अपने श्रद्धालुओं का शोषण किया है तथा अपने स्वार्थों व ऐश आराम को वरीयता दी है, अकबर इलाहाबादी का एक सटीक शेर देखिये- पका लें पीस कर दो रोटियां थोड़े से जौ लाना। हमारी क्या है भाई! हम न मुफ्ती हैं न मौलाना। धर्म का दुरूपयोग अगर न होता तो लाखों लोग जिहाद, धर्मयुद्ध और होली वार के नाम पर मौत के घाट न उतारे गये होते। धर्म ही के नाम पर अकसर कुरीतियों अंध विश्वासों ने जन्म लिया, परन्तु यह दोष धर्म का नहीं, धर्म का धन्धा करने वालों का है। मुसलमानों की एक प्रभावशाली संस्था आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से किया गया यह ऐलान स्वागत योग्य है कि बोर्ड अपनी आगामी लखनऊ की बैठक में जो मार्च 2010 के दूसरे पखवारे में आयोजित होगी, इसमें कुछ प्रस्ताव इस बात के पास करेगा कि मुस्लिम समाज कुरीतियों को खत्म करें, महंगी शादियाँ न करें, दहेज का लेन- देन न करे तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप से बचे। मैंने देखा है कि कुछ सुधारवादी हिन्दू संस्थाये सामूहिक विवाह कार्यक्रम आयोजित करती है, इसको भी सभी धर्मावलम्बि