पटकथा-संवाद लेखक संजय चौहान से पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत संजय चौहान भोपाल से दिल्ली होते हुए मुंबई आये। दिल्ली में जेएनयू की पढ़ाई के दिनों में उनका संपर्क जन नाट्य मंच से हुआ। कैंपस थिएटर के नाम से उन्होंने जेएनयू में थिएटर गतिविधियां आरंभ कीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद आजीविका के लिए कुछ दिनों अध्यापन भी किया। मन नहीं लगा तो पत्रकारिता में लौट आये। लंबे समय तक पत्रकारिता करने के बाद टीवी लेखन से जुड़े। फिर बेहतर मौके की उम्मीद में मुंबई आ गये। सफर इतना आसान नहीं रहा। छोटी-मोटी शुरुआत हुई। एक समय आया कि फिल्मों और टीवी के लिए हर तरह का लेखन किया। कुछ समय के बाद तंग आकर उन्होंने अपनी ही पसंद और प्राथमिकताओं को तिलांजलि दे दी। सोच-समझ कर ढंग का लेखन करने के क्रम में पहले ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ आयी। उसके बाद ‘आई एम कलाम’ से एक पहचान मिली। पिछले साल ‘साहब बीवी और गैंगस्टर’ और ‘पान सिंह तोमर’ से ख्याति मिली। इन फिल्मों के लिए उन्हें विभिन्न पुरस्कार भी मिले। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में प्रतिष्ठा बढ़ी। फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया के साथ संजय चौहान कुछ सालों पहले आपने फै