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Showing posts from November 9, 2010

घमंड किस बात का

हम किसका गुमान करते हैं ? गोर से देखे तो यहाँ कुच्छ भी अपना नहीं  रूह भी तो खुदा की बख्शी नेमत है  जिस्म है की मिटटी की अमानत है  क्यु न एक जुट होके रहते हम  एसी क्या चीज़ है जिसपे गर्व करते हम  दोलत से क्या कुच्छ खरीद पाएंगे  क्या इसीके बलबूते पर दूर तलख जायेंगे  इसका तो आज यहाँ कल कही और ठिकाना है   ये मत भूलो,  इसे तो हर घर मै  जाना है  इसे तो पकड़ के न रख पाएंगे हम     फिर इंसा होके इंसा को ठुड़ते नज़र आयेंगे  तो फिर आज ही से ये वादा खुद से करते हैं   इंसा  हैं तो इंसा की तरह ही रहते हैं  कभी गुमान के फेरे मै न ही पड़ते हैं !

माँ का दुलारा

माँ माँ के इस क्रंदन ने , हर माँ को आज जगाया है ! मत रो माँ के दुलारे तू , तेरे सर पे तो हर माँ का साया है ! तू क्यु इस कदर बैचेन हो जाता है , ये तो सब उसका ही नियम बनाया है ! जो इस धरती  पर आता है , उसको तो इक दिन जाना है ! माँ शब्द ही एसा निराला है , जो सबके मन को भाता है ! फिर तुम इससे केसे बचते , और अपनी बात न फिर कहते ! माँ ने तो अपना फ़र्ज़ अदा किया , तेरे हाथो मै देश को सोंप दिया ! अब तुने फ़र्ज़ निभाना है , उसका बेटा बन दिखलाना है ! फिर उसकी ही गोदी मै बैठकर , अपना ये दर्द मिटाना है ! और हर माँ की दुवाओ को  , अपनी ताक़त फिर से बनाना है ! You might also like: कॉमनवेल्थ माँ जीवन एक कला LinkWithin