आदरणीय जैन ब्लोगर मित्रो ! सादर जय जिनेन्द्र ! मैंने लेखन का वह दोर भी देखा है तब कलम को स्याही के दवात में डुबोकर लेखक लिखता था, और उस दोर के पाठक साहित्य को सफ़ेद या मटिया रंग से उस पर कवर चढाकर संजो के रखते थे और पढ़ते थे. युग बदला... यंत्र बदले. लिखने और पढनेका का तरीका बदला. जैसे -जैसे नई-नई तकनीके, प्रोधोगिकी का विकास हो रहा है यंत्रो का विकास हो रहा है. कम्प्यूटर युग में हमारी लेखकी भी और पाठक भी यांत्रिक हो गए है. इसमे कोई विवाद नही है. बल्कि विकास के नये दरवाजे खुले है सहज शुलभता बढ़ी है. आजकल ई लेखन की बड़ी धूम है. ना किताबे खरीदने की चिंता ना उसके रखरखाव का बडन! इस कम्प्यूटर युग की क्रान्ति ने तो लेखन एवं लेखको का चेहरा ही बदल दिया है. मुझे लेखन का जो रूप सबसे अधिक पसंद आया वो है ब्लोगिग. ब्लोगिग एक उत्तम माध्यम बन पड़ा है विचारों के सम्प्रेष्ण के लिए. बिना खर्चे के ही आप अपने विचारों को पाठको तक पहुचाने में सक्षम है. वो भी सचित्र! अति उत्तम ! ब्लोगिग का दुसरा स्वरूप भी मुझे व्यवहारिक जीवन के लिए उत्तम लगा. ब्लोगिग ने तो सोसल- नेटवर्किग के सारे रिकोर्ड धवस्त कर दीए....पाठ