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Showing posts from January 19, 2011

aatmshakti par vishvas

जीवन एक ऐसी  पहेली है जिसके बारे में बात करना वे लोग ज्यादा पसंद करते हैं जिन्होंने कदम-कदम पर सफलता पाई हो.उनके पास बताने लायक काफी कुछ होता है. सामान्य व्यक्ति को तो असफलता का ही सामना करना पड़ता है.हम जैसे साधारण मनुष्यों की अनेक आकांक्षाय  होती हैं. हम चाहते हैं क़ि गगन छू लें; पर हमारा भाग्य इसकी इजाजत नहीं देता.हम चाहकर भी अपने हर सपने को पूरा नहीं कर पाते .यदि मन की  हर अभिलाषा पूरी हो जाया करती तो अभिलाषा भी साधारण हो जाती .हम चाहते है क़ि हमें कभी शोक ;दुःख ; भय का सामना न करना पड़े.हमारी इच्छाएं  हमारे अनुसार पूरी होती जाएँ किन्तु ऐसा नहीं होता और हमारी आँख में आंसू  छलक आते है. हम अपने भाग्य को कोसने लगते है.ठीक इसी समय निराशा हमे अपनी गिरफ्त में ले लेती है.इससे बाहर आने का केवल एक रास्ता है ---आत्मशक्ति पर विश्वास;------ राह कितनी भी कुटिल हो ; हमें चलना है . हार भी हो जाये तो भी मुस्कुराना है; ये जो जीवन मिला है प्रभु की  कृपा से; इसे अब यूँ ही तो बिताना है. रोक  लेने है आंसू दबा देना है दिल का दर्द; हादसों के बीच से इस तरह निकल आना है; न मांगना कुछ और न कुछ खो

हर कोई प्रतिभावान

लेखक , कवि व् साहित्यकार   तो पहले भी कई हुए !  अपने - अपने विचारों से   सबने  पन्ने भी हैं भरे ! स्कूल , कालेजों मै ,   हमने भी उन्हें पढ़ा , पर क्या आज तक उनके    कहने पे कोई  चला ? हर किसी ने अपनी ही बात का   अनुसरण  है  किया ! क्युकी हर कोई अपनी दिल कि कहानी लिखता  है ! अपनी ही सोच को ...............  ख़ाली कर .............. आने वाली सोच का स्वागत करता है !  ये उसकी एक छोटी सी..........   कोशिश ही तो  होती है ! यु समझो अपने साथ बीते............ लम्हों कि बात  होती है   !   क्युकी ...... इन्सान के सोच का   तो कोई अंत नहीं ! अगर कोई लिखने लगे तो   दिनकर , प्रेमचंद जी से भी कोई कम नहीं ! हर किसी के पास...............   सोच का एक बड़ा खजाना है ! यु समझो सबने  अपने विचारों से   इतिहास को रचते  जाना है   !

nyay pathbhrasht ho raha hai !

"इंसाफ जालिमों की हिमायत में जायेगा, ये हाल है तो कौन अदालत में जायेगा."    राहत इन्दोरी के ये शब्द और २६ नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट  पर kiya  गया दोषारोपण "कि हाईकोर्ट में सफाई के सख्त कदम उठाने की ज़रुरत है क्योंकि यहाँ कुछ सड़ रहा है."साबित करते हैं कि न्याय भटकने की राह पर चल पड़ा है.इस बात को अब सुप्रीम कोर्ट भी मान रही है कि न्याय के भटकाव ने आम आदमी के विश्वास को हिलाया है वह विश्वास जो सदियों से कायम था कि जीत सच्चाई की होती है पर आज ऐसा नहीं है ,आज जीत दबंगई की है ,दलाली की है .अपराधी     बाईज्ज़त     बरी हो रहे हैं और न्याय का यह सिद्धांत "कि भले ही सौ अपराधी छूट   जाएँ किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए"मिटटी में लोट रहा है .स्थिति आज ये हो गयी है कि आज कातिल खुले आकाश के नीचे घूम रहे हैं और क़त्ल हुए आदमी की आत्मा  तक को कष्ट दे रहे हैं-खालिद जाहिद के शब्दों में- "वो हादसा तो हुआ ही नहीं कहीं, अख़बार की जो शहर में कीमत बढ़ा गया, सच ये है मेरे क़त्ल में वो भी शरीक था, जो शख्स मेरी कब्र पे चादर चढ़