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Showing posts from December 8, 2009

लो क सं घ र्ष !: हड्डियों से यहां कोठियां सजें

कृषक और मजदूर हमारे तरसें दाने-दाने को, दिनभर खून जलाते हैं वो, रोटी, वस्त्र कमाने को, फिर भी भूखों रहते बेचारे, अधनंगे से फिरते हैं, भूपति और पूंजीपतियों की कठिन यातना सहते हैं, भत्ता -वेतन सांसद और मंत्रियों के बढ़ते जाते हैं, हम निर्धन के बालक भूखे ही सो जाते हैं। शव निकल रहा हो और शहनाइयां बजें। दुखियों की हड्डियों से यहां कोठियां सजें।। - मुहम्मद शुऐब एडवोकेट

कुंवर ने बुलंद किया सियासत का झण्डा

अलीगढ़। अस्सलाम वालेअकुम... जैसे ही एएमयू के कैनेडी हाॅल में राहुल आए, उनके मुंह से निकलने वाले यह पहले शब्द थे। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पूरी तैयारी के साथ अलीगढ़ व एटा आए और पूरे उत्साह के साथ लोगों से रूबरू हुए। मीडिया से दूरी बनाते हुए सोची समझी रणनीति के तहत राहुल 2012 के चुनावों की प्रारंभिक तैयारी कर गए। वे यूथ कांग्रेस के सदस्यों के दिमाग की चाभी अभी से टाइट कर गए कि टिकट या पद लेना हो तो जमीनी स्तर पर काम करें, तभी उनकी दावेदारी के बारे में सोचा जाएगा। वह यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपनी रणनीति समझाकर चले गए। राहुल का अलीगढ़ व एटा दौरा सियासी लोगों खलबली मचा गया। लिब्रहान कमेटी की रिपोेर्ट संसद में पेश हो चुकी है। छह दिसंबर को बाबरी एक्शन कमेटी के लोग विवादित ढांचा विध्वंस की बरसी मनाते हैं। वहीं सात दिसंबर से लिब्रहान की रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होनी थी। ऐसे में मुस्लिम नेताओं को मरहम और मुस्लिम वोटों में संेध लगाने के लिए भी राहुल ने एएमयू को चुना। शायद इसीलिए मीडिया को भी दूर ही रखा गया। उन्होंने कार्यकर्ताओं को अभी से जुट जाने और जमीनी स्तर से काम करने की सीख दी। राहुल

हिन्दी , हिन्दुस्तान का यही तो दर्द है, दोहरी चाल ----डा श्याम गुप्त

---अब आप युवा कांग्रेस में भरती होने के इस विज्ञापन के फ़ार्म को देखिये --निर्देश संख्या १ पर है---आवेदन पत्र को केवल अंग्रेज़ी में भरें , और अंत में निर्देश ५ है कि आप हिन्दी भाषा में भी भर सकते है | अब केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी ( जो देश में अधिकतम समय सत्तासीन रही है )के युवा सदस्यता का मापदंड ही दोहरा है | हिन्दी भाषा तो निचले पायदान पर ही है, तो फ़ार्म तो सिर्फ़ अंग्रेज़ी मेंही भरना है क्योंकि ये युवा नेता वास्तव में तो अंग्रेज़ी में ही खाते, पीते, उठते ,बैठते,पढ़ते लिखते हैं , हिन्दी तो बस गाँव की जनता को दिखाने को ही बोलते हैं, हिन्दी का नाम तो बस लीपी-पोती है | क्या आशा-अपेक्षा करे देश व जनता व भविष्य - एसे युवा नेता,एसे युवाओं , युवाओं की पार्टी , मुख्य पार्टी,व सरकार से ?? -----हम सब सोचें , विचारें --क्या होगा हिन्दी का ?????!!!!!