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Showing posts from August 2, 2010
क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥ पहले अब में फर्क बड़ा है॥ अब के सब झूठे है लोग// अपनी झोली भरने से मतलब॥ लगा रहता आशा का लोभ॥ क्या अत्याचार की बढ़ती नदिया॥ एक दम से रुक जायेगी॥ क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥ पहले के संस्कारी होते॥ अब के सब लेते है घूस॥ चाहे महलों वाला हो वह॥ चाहे छाया हो छप्पर फूस॥ ये बेईमानी की लंगड़ी आंधी॥ कब अपना रूप दिखायेगी॥ क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥ बढ़ जाती है अभिलाषाए॥ भर चुका है गागर॥ अब भी पेट न इनका भरता॥ सुखा डाले गे सागर॥ क्या इनके कर्मो की करनी॥ एक दिन इन्हे रुलाएगी॥ क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥

सलाम मुहब्बत...

सलामे मुहब्बत कहते है... बड़े मौज से रहते है॥ ध्यान लगा के पढ़ते है॥ बुरे कर्म से डरते है... लड़की बाज़ी से दूर है रहते॥ गम की छाया नज़दीक न आती॥ न आती है किसी की याद ॥ न बीती बाते हमें रुलाती॥ दिखती उसकी सूरत तब॥ छुप के हम हम निकलते है॥ सलामे मुहब्बत कहते है... बड़े मौज से रहते है॥ न तो किसी का चेहरा ,,आँखों पर मुस्काता है... न तो किसी को दिल दिया ,,न प्रलयकाल रिसियाता है... अपने ही आन मान पे , अपने आप उछलते है॥ सलामे मुहब्बत कहते है... बड़े मौज से रहते है॥ कभी कभी सुन्दरियों की टोली..मुझपे ताना कसती है॥ पता नहीं क्या कह जाती है..बादल जैसे बरसती है॥ मेरे लबो के फूल तो कभी कभी फिसलते है॥ सलामे मुहब्बत कहते है... बड़े मौज से रहते है॥