क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥ पहले अब में फर्क बड़ा है॥ अब के सब झूठे है लोग// अपनी झोली भरने से मतलब॥ लगा रहता आशा का लोभ॥ क्या अत्याचार की बढ़ती नदिया॥ एक दम से रुक जायेगी॥ क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥ पहले के संस्कारी होते॥ अब के सब लेते है घूस॥ चाहे महलों वाला हो वह॥ चाहे छाया हो छप्पर फूस॥ ये बेईमानी की लंगड़ी आंधी॥ कब अपना रूप दिखायेगी॥ क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥ बढ़ जाती है अभिलाषाए॥ भर चुका है गागर॥ अब भी पेट न इनका भरता॥ सुखा डाले गे सागर॥ क्या इनके कर्मो की करनी॥ एक दिन इन्हे रुलाएगी॥ क्या अमृत रस फिर बरसेगा॥ क्या फिर से खुशिया आयेगी॥ क्या मेरे आँगन में फिर से॥ सोन चिरैया गायेगी॥