महाराष्ट्र के मराठी तालीबान शक्तिसंचय और शक्तिप्रदर्शन मूल तत्व हैं जिसे जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र या प्रांत के आधार पर लोगों के भडकने और गोलबंद होने में हासिल किया जाता है। इस सच्ची बात को कहने में राज ठाकरे ने उस मानसिकता को एकदम सच-सच उजागर किया जिसे हर किस्म के आंतकवाद का दाना-पानी कहा जा सकता है। ठाकरेगिरि के इसमें पुलिस की जिस मानसिकता को जायज ठहराया गया, उसके परिणाम झेलते हुए समूचा नागरिक समाज त्रस्त है। हरियाणा के भिवानी में बगैर कुछ पूछे गोली मार देने की घटना को आप क्या कहेंगे? मूल प्रश्न क्या हैं? जिसे राज ठाकरे कवच की तरह आगे बढाते हैं या जिसे मुंबई पुलिस ने दिखाया या जिसे पटना में राहुल राज की शवयात्रा में शामिल लोगों के तेवर और उछलते नारों के स्वर प्रकट कर रहे थे या जिसे दशकों से मुंबई में बसे गैर-मराठी लोगों समेत हर किस्म के अल्पसंख्यकों के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्क्तिक और आर्थिक अधिकारों से जोडा जाता है? क्या इन सभी प्रश्नों को किसी लोकतांत्रिाक समाज की संरचना के मूल प्रश्न नहीं मानना चाहिए हैं? लेकिन इनकी अलग-अलग विवेचना करने और साथ-साथ स