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Showing posts from July 3, 2010

लो क सं घ र्ष !: नये विचारों की रोशनी में

संघर्ष देखा है मैंने तुम्हें ताने सुनते / जीवन पर रोते देखा है मैंने तुम्हे सांसों - सांसों पर घिसटते नये रूप / नये अंदाज में देखा है मैंने तुम्हें पल - पल संघर्ष में उतरते मानो कह रही हो तुम बस - बस - बस अब बहुत हो चुका ? न सहेंगे अत्याचार , न सुनेंगे ताने हर जुर्म का करेंगे प्रतिकार नये विचारों की रोशनी में। -सुनील दत्ता

मै दिल्ली का रहने वाला..

मै दिल्ली का रहने वाला॥ दिल्ली की अलख जगाऊगा॥ दिल्ली मुझको दिल से प्यारी॥ दिल्ली की बात बताऊगा॥ चारो और हरियाली चाई॥ कोयल गीत सुनती है॥ हर क्यारी में खुशबू बहती॥ मन को बहुत महकाती है॥ दिल्ली मुझको दिल से प्यारी॥ दिल्ली की तिलक लगाऊगा॥ चारो तरफ सुविधा रहती है॥ मित्रो रेस लगाती है॥ दिल्ली है दिलवालों की ॥ ये बोली मुझको भाती है॥ नहीं जाऊगा बाम्बे पूना॥ दिल्ली में दीप जलाऊगा॥ जान माल का यहाँ न ख़तरा॥ सुविधा से लैस सुरक्षा है॥ कोई यहाँ विरोध नहीं है॥ दिल्ली देती दीक्षा है॥ बेईमानो की बेईमानी को॥ दिल्ली से दूर भागाऊगा॥

नयी नवेली..

मै मतवाला तू मतवाली॥ आज तो बादल बरसेगा॥ हस के गले तुम मिलो सनम॥ मेरा दिल भी हर्षेगा॥ चले वयारिया दूर डगरिया॥ साड़ी खुसिया पर्सेगा॥ मै मतवाला तू मतवाली॥ आज तो बादल बरसेगा॥ उड़े चुनरिया दिन दुपहरिया॥ गगन से मेघा गरजेगा॥ मै मतवाला तू मतवाली॥ आज तो बादल बरसेगा॥ तू नयी नवेली न सखी सहेली॥ मेरा दिल भी तडपेगा॥ मै मतवाला तू मतवाली॥ आज तो बादल बरसेगा॥

एक पेड़ की कथा..

दिल्ली के दील्काश बाग़ में गली नंबर सात और कोठी नंबर १७ एक आलीशान शान कोठी थी उस कोठी के अन्दर वैसे तो बहुत छोटे मोटे पेड़ थे लेकिन एक पेड़ उसमे श्रमजिव्नी का था जिसकी कुछ बात ही निराली थी लेकिन वह अपनी दशा देख कर ग्लानी करता था॥ वह पेड़ मुख्या फाटक से दस कदम की दूरी पर था॥ कोठी का मालिक व्यवसाइक था वह अपने व्यवसाय में बाहर ज्यादा ही रहता वह कभी ५ या ७ महीने में एक दो दिन के लिए आते थे। उस कोठी में दो सुरक्षा कर्मी अपनी द्युति बजा रहे थे। उसमे से एक बहुत क्रूर और चालाक था दुआसरा शांत मन था॥ दुसरे की द्युति शाम को रहती थी चालाक जो था उसकी दिन में रहती थी। शाम के समय शांत मन वाला सुरख्षा कर्मी पौधों की हालात देख कर पानी देने लगा क्यों की कोठी में कोई माली नहीं था पानी देते देते वह श्रमजिवानी पेड़ को बढ़िया से धुलाई किया और पानी से खूब सीच दिया इसी दिशा में वह पेड़ के सात चक्कर भी लगा लिया उसके बाद जब वह कुर्सी लेके पेड़ नीचे बैठा उर कुछ सोचने लगा सोचते सोचते उसे लगा की जैसे कुर्शी के साथ उसे कोई झुला रहा हो। और वह सो गया सुबह प्रात: काल ४ बजे जब वह जागा तो भी देखा की उसकी कुर्सी को झुला र