विश्वनाथ त्रिपाठी इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ग्रामीण जन-जीवन और किसानों की समस्या पर आजकल हमारे साहित्यकारों और पत्रकारों का कम ही ध्यान जाता है। बड़ी तेजी से हो रहे शहरीकरण के बावजूद भारत की अधिकांश जनता अब भी गांवों में ही रह रही है और खेती-बाड़ी एवं पशुपालन ही उसकी रोजी-रोटी का मुख्य जरिया है। हमारे देश में वातावरण, मौसम, जमीन, अनाज, खेती-बाड़ी के तौर-तरीके आदि में इतनी विविधता (जो हमारी कृषि संस्कृति का निर्माण करते हैं) है कि यदि हम यहां कृषि को उद्योग बनाना चाहें, तो हमारा देश संसार के सवरेत्तम देशों में एक होगा। बहुत प्रयासों के बाद और तमाम गुण-दोषों के बावजूद हमने खाद्यान्न के मामले में स्वावलंबन पा लिया था, लेकिन गलत सरकारी नीतियों के कारण देश में फिर से खाद्यान्न संकट और महंगाई पैदा हो रही है। इसका मूल कारण यह है कि हमारे देश में विकास और वृद्धि के अंतर को ठीक से समझा नहीं जा रहा है। वृद्धि को विकास नहीं कहा जा सकता। देश में जीडीपी के ग्रोथ और अरबपतियों के बढ़ने का मतलब यह नहीं कि यहां विकास हो रहा है, बल्कि इन सबके कारण गरीब और अमीर के बीच खाई बढ़ रह रही है। वृद्