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Showing posts from August 21, 2010

साहित्य में खत्म होते गांव

विश्वनाथ त्रिपाठी  इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ग्रामीण जन-जीवन और किसानों की समस्या पर आजकल हमारे साहित्यकारों और पत्रकारों का कम ही ध्यान जाता है। बड़ी तेजी से हो रहे शहरीकरण के बावजूद भारत की अधिकांश जनता अब भी गांवों में ही रह रही है और खेती-बाड़ी एवं पशुपालन ही उसकी रोजी-रोटी का मुख्य जरिया है।   हमारे देश में वातावरण, मौसम, जमीन, अनाज, खेती-बाड़ी के तौर-तरीके आदि में इतनी विविधता (जो हमारी कृषि संस्कृति का निर्माण करते हैं) है कि यदि हम यहां कृषि को उद्योग बनाना चाहें, तो हमारा देश संसार के सवरेत्तम देशों में एक होगा। बहुत प्रयासों के बाद और तमाम गुण-दोषों के बावजूद हमने खाद्यान्न के मामले में स्वावलंबन पा लिया था, लेकिन गलत सरकारी नीतियों के कारण देश में फिर से खाद्यान्न संकट और महंगाई पैदा हो रही है।   इसका मूल कारण यह है कि हमारे देश में विकास और वृद्धि के अंतर को ठीक से समझा नहीं जा रहा है। वृद्धि को विकास नहीं कहा जा सकता। देश में जीडीपी के ग्रोथ और अरबपतियों के बढ़ने का मतलब यह नहीं कि यहां विकास हो रहा है, बल्कि इन सबके कारण गरीब और अमीर के बीच खाई बढ़ रह रही है। वृद्

एक आवश्‍यक सुचना संस्‍कृतप्रशिक्षणकक्ष्‍या के प्रशिक्षार्थियों के लिये ।

आप सभी प्रशिक्षु मित्रों को सूचित कर देना चाहता हूँ कि संस्‍कृतप्रशिक्षणकक्ष्‍या का दसवाँ संस्‍करण संस्‍कृतप्रशिक्षणकक्ष्‍या - दशमो अभ्‍यास: । प्रस्‍तुत कर दिया गया है ।   इस पाठ्यक्रम में सप्‍तमी विभक्ति का पाठन किया गया जो कि विभक्ति की दृष्टि से अंतिम विभक्ति होती है अत: संस्‍कृतप्रशिक्षणकक्ष्‍या का पहला सत्र समाप्‍त हो चुका है । इस सत्र में हमने संस्‍कृत भाषा का एक विहंगम पठन और अभ्‍यास किया । पाठ्यक्रम की सरलता को बनाये रखने के लिये अबतक इसमें हमने कोई भी विभिन्‍न्‍ता नहीं रखी थी । किन्‍तु अब हम प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्‍त कर चुके हैं, अत: अब हम थोडा सा पाठ्यक्रम का स्‍तर और बढाएंगे । इसमें आपको सभी लिंगों, सभी वचनों, तथा सभी कारक व विभक्तियों का सम्‍यक पाठन कराया जाएगा । ये हमारा दूसरा सत्र होगा और इसका नाम संस्‍कृतलेखनप्रशिक्षण कक्ष्‍या होगी । ये अबतक की कक्ष्‍या से विशिष्‍ट पाठ्यक्रम वाला होगा । इसमें प्राय: हम अपने लेखन का विकास और शुद्धि करेंगे । अगर इस पाठ्यक्रम को ध्‍यान से पढा गया तो हमारी लेखन सम्‍बन्‍धी बहुत सी समस्‍याएँ निराकरित हो जाएँगी । इस पाठ्यक्रम के सम्‍यक
FRIDAY, AUGUST 21, 2010 छिनाल का जन्म ...छिन्न का आमतौर पर इस्तेमाल छिन्न-भिन्न के अर्थ में होता है। ... हि न्दी में कुलटा, दुश्चरित्रा, व्यभिचारिणी या वेश्या के लिए एक शब्द है छिनाल । आमतौर पर हिन्दी की सभी बोलियों में यह शब्द है और इसी अर्थ में इस्तेमाल होता है और इसे गाली समझा जाता है। अलबत्ता पूरबी की कुछ शैलियों में इसके लिए छिनार शब्द भी है। छिनाल शब्द बना है संस्कृत के छिन्न से जिसका मतलब विभक्त , कटा हुआ, फाड़ा हुआ, खंडित , टूटा हुआ , नष्ट किया हुआ आदि है। गौर करें चरित्र के संदर्भ में इस शब्द के अर्थ पर । जिसका चरित्र खंडित हो, नष्ट हो चुका हो अर्थात चरित्रहीन हो तो उसे क्या कहेंगे ? जाहिर है बात कुछ यूं पैदा हुई होगी- छिन्न + नार> छिन्नार> छिनार> छिनाल । जॉन प्लैट्स के हिन्दुस्तानी-इंग्लिश-उर्दू कोश में इसका विकासक्रम कुछ यूं बताया है- छिन्ना + नारी > छिन्नाली> छिनाल । इसी तरह हिन्दी शब्दसागर में -छिन्ना+नारी से उसकी व्युत्पत्ति बताते हुए इसके प्राकृत रूप छिणणालिआ> छिणणाली > छिनारि के क्रम में इसका विकासक्रम छिनाल बताया गया है। परस्त्रीगामी और लम्पट के

मै खुद ख़ुशी कर लूगा..

मै खुद ख़ुशी कर लूगा॥ नौकरी छूटी..बीबी रूठी॥ किस्मत भी फूटी॥ लय भी टूटी॥ मै जान दे दूगा... मै खुद ख़ुशी कर लूगा॥ गम लगे सताने सब लगे डराने... अगल बगल के मारे ताने॥ मै जहर पी लूगा... क्या कहूगा कहा पाऊगा॥ बच्चो को कपडे॥ कैसे लूगा॥ मै प्राण दे दूगा...