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Showing posts from February 11, 2010

लो क सं घ र्ष !: ‘‘बहुमत का जुल्म’’

प्रजातंत्र भी आग के समान है जो अत्यंत उपयोगी है और अत्याधिक खतरनाक भी। लोकतंत्र हो, भीडतंत्र हो, सर्वसम्मति हो, या बहुमत हो, ये सभी उस समय व्यक्ति या समाज के लिये घातक बनते हैं जब इस अस्त्र का इस्तेमाल करने वाले मन में खोट होती है या स्वार्थ भावना के अन्तर्गत फैसले किये जाते हैं। आप देखते ही है कि सुरक्षा परिषद में बेटों और आम राय के बहाने पांच स्थायी सदस्य कैसे कैसे खेल खेलते हैं तथा जनरल असेम्बली मूक दर्शक ही बनी रहती है। दिल्ली की संसद हो या यू0पी0 की विधायिका इनमें भी पहले भी स्वार्थवश फैसले लिये गये और अब भी यही हो रहा है जो जनता को कभी पंसद नहीं आता, लेकिन बेचारा आम आदमी कर ही क्या सकता है, मीडिया उसकी आवाज को धार देने की कोशिश करता है लेकिन कुछ ही दिन में वह आवाज भी दब जाती है। फरवरी सन 10 में यू0पी0 की बाते देखिये, पहली यह की वार्षिक बजट पेश किया गया, दूसरी यह कि बजट के केवल चार दिन बाद यानी आठ फरवरी को मुख्यमंत्री महोदया ने मंत्रियों, विधायकों के वेतन एवं भत्तों में लगभग 67 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा कर दी। मंत्री जी को प्रतिमाह 32000 से बढ़कर अब 54000 अर्थात 22000 की बढ़ोत्तरी

पिछली होली की चोट..

पिछली होली बीत गईल ॥ दे गयी सर पर चोट॥ हाँथ पैर सब टूट गया॥ अफसर मांगे नोट॥ अफसर मांगे नोट॥ शराबी की संज्ञा दे डाली॥ घर में कोई छूता नाही॥ सब को मिल गयी गाली॥ थोड़ी से मै पीकर के दारू॥ जो घटना लिख डाली॥ गया पलंग पर सोय ॥ जिसपर सोयी थी मेरी साली॥ बच गया पजामा फटने से॥ जब पहुची प्यारी घर वाली॥ सुन के हुआ आजीज ॥ वही गुस्से में फाड़ दी॥ दादा वाली कमीज॥ घर से पहुचा सड़क पर॥ कर दीन्हा हंगामा॥ सब कहते थे नया शराबी है॥ करता करीसा ड्रामा॥ बुरी मनी होली हमारी॥ लगी बहुत करोच॥ पिछली होली बीत गईल ॥ दे गयी सर पर चोट॥ हाँथ पैर सब टूट गया॥ अफसर मांगे नोट॥

क्यों जाना चाहते हैं राहुल गांधी आजमगढ़?

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी आजमगढ़ की यात्रा पर जाने वाले हैं। उत्तर प्रदेश के प्रभारी और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पार्टी के युवा नेता को आजमगढ़ के कोई 134 साल पुराने नेशनल शिबली कॉलेज ले जाना चाहते हैं। आजमगढ़ देश का ही एक हिस्सा है। अत: वहां की यात्रा करने के लिए हरेक नागरिक स्वतंत्र है। राहुल गांधी अगर वहां जाकर लोगों से बातचीत करना चाहते हैं तो उसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए। पर राहुल गांधी केवल एक नागरिक भर नहीं हैं। उनकी हैसियत थोड़ी अलग और सामान्य नागरिक से ऊपर है। इसलिए मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करके शिव सेना को खुली चुनौती देने के तत्काल बाद आजमगढ़ जाने के प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति देने के उनके फैसले को एक यात्रा भर से अलग पढ़ा जा सकता है। आजमगढ़ में हाल-फिलहाल ऐसा कुछ नहीं हो रहा है कि राहुल गांधी को वहां की यात्रा करनी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली के बाटला हाउस में हुई पुलिस मुठभेड़ के बाद से आजमगढ़ का नाम जिस तरह से हवा में उछला है उससे उस शहर की बदनामी होने के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय की भावनाओं को भी ठेस पहुंची है। लोकसभा चुनावों के