हमने तो कभी जाना ही न था खुद को इतने करीब से ! उसकी पारखी नजरो ने न जाने केसा ये कमाल कर दिया ! हमने तो अभी अपनी ज़मी मै न पहचान बनाई थी ! उसने तो हमारी गिनती तारो मै लाकर ही कर दी ! वक़्त जेसे -जेसे अपनी आग़ोश मै भरता चला गया ! हमारी पहचान मै और वो ............ इजाफा करता चला गया ! कितना प्यारा था वो शख्श जो हमे इतना प्यार करता था ! हमे खबर भी न हुई और वो दिल मै उतरता चला गया ! कितने प्यारे बन गये थे ये रिश्ते बिना किसी चाहत के ! और हम एक दुसरे को सम्मान देते ही चले गये ! न जाने ये दोस्ती का सफ़र कब तलक यु ही चलेगा ! न जाने कब वो हमे तारो से ............ फिर सूरज की रौशनी कहेगा ?