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Showing posts from July 8, 2009

आई रे बरखा बहार-----

झर झर झर, जल बरसावें मेघ; टप टप बूंद गिरें, भीजै रे अंगनवा , हो.... आई रे बरखा बहार,हो....। धडक धडक धड, धडके हियरवा ,हो॥ आये न सजना हमार.. हो ...; आई रे बरखा बहार॥ कैसे सखि झूला सोहै, कज़री के बोल भावें; अंखियन नींद नहिं, ज़ियरा न चैन आवै। कैसे सोहैंसोलह श्रिन्गार ॥हो... आये न सजना हमार॥ आये परदेशी घन, धरती मगन मन; हरियावे तन,पाय- पिय का सन्देसवा। गूंजे नभ मेघ-मल्हा.. हो .... आये न सजना हमार॥ घन जब जाओ तुमि, जल भरने को पुनि; गरजि गरजि दीजो, पिय को संदेसवा। कैसे जिये धनि ये तोहार...हो.... आये न सजना हमार॥ हाँ