Skip to main content

Posts

Showing posts from June 20, 2012

सिनेमा के सौ बरस पर बहसतलब, 23-24 को दिल्‍ली पधारें।

ती न साल पहले सिनेमा पर बहसतलब का सिलसिला शुरू हुआ था। फिल्‍म महोत्‍सवों की समृद्ध परंपरा के बीच सिर्फ बातचीत का एक आयोजन करने का विचार इसलिए भी आया था, क्‍योंकि सिनेमा देखना पहले की तुलना में अब बहुत आसान हो गया है। अब कोई भी फिल्‍म ऐसी एक्‍सक्‍लूसिव नहीं रह जाती है, जैसे पहले हुआ करती थी। इसलिए फिल्‍म महोत्‍सवों का पहले जितना क्रेज था, अब उतना नहीं है। कम से कम भारत में तो नहीं है। हमारी समझ थी कि जो सिनेमा बनाते हैं, उन्‍हें अपने सिनेमा और सिनेमा के अलावा अपने समय की दूसरी गतिविधियों के बारे में बातचीत करनी चाहिए। फिल्‍मकारों का  एक तेज-तर्रार समूह बहसतलब को समर्थन देने की मुद्रा में आ गया। अनुराग कश्‍यप, डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी और मनोज बाजपेयी एक तरह से संरक्षक की भूमिका में आ गये और जब भी मौका मिला, अपना कीमती समय बहसतलब के बारे में सोचने और बहसतलब के आयोजनों को संभव बनाने में लगाते रहे। पटना के आयोजन में पैसा जुटाने के लिए मनोज वाजपेयी ने एक जूते की दुकान के फीते काटे, एक होटल में जाकर शाम का खाना खाया और एक टेलीकॉम कंपनी के उपभोक्‍ताओं से एक घंटे तक बातचीत की। डॉक्‍ट साहब