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Showing posts from July 18, 2009

समलैंगिकता ईश्वर के क़ानून के खिलाफ़ है (Homosexuality is against God’s Constitution)

बीते गुरुवार (यौमुल खमीस) को दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश एपी शाह और न्यायधीश एस मुरलीधर की पीठ ने यह फ़ैसला सुना दिया कि समलैंगिकता अब अपराध नहीं और आपसी सहमती से इस प्रकार के बनाये गए सम्बन्ध में कोई बात गैर-क़ानूनी नहीं. (कु)तर्क यह था न्यायधीशों का कि "भेदभाव समानता के खिलाफ़ है और यह फ़ैसला समानता को मान्यता देता है जो हर व्यक्ति को एक गरिमा प्रदान करेगा". कोर्ट के इस फ़ैसले पर जिस प्रकार से नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आईं वह लाज़मी थी. वैसे एक बात मुझे पहली बार अच्छी लगी कि भारत की दो बड़ी कौमें हिन्दू व मुसलमानों ने एक जुट हो कर इस फैसले का विरोध किया (मेरा मानना है कि अगर इसी तरह अमेरिका और पश्चिम का अन्धानुकरण को साथ मिलकर नकारा जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि भारत जल्द ही विश्वशक्ति बन जायेगा). भाजपा के एक बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी का बयान काबिले तारीफ रहा, उन्होंने कहा कि न्यायपालिका से बड़ी संसद है अर्थात संसद न्यायपालिका से उपर है. सिर्फ एक या दो न्यायधीश (शायेद वह समलैंगिक ही हों) सब कुछ तय नहीं कर सकते हैं. बाबा रामदेव ने कहा कि इस प्रकार तो कुल ही नष्ट हो जाय

आखिर किसने मारा प्रो. सभरवाल को?

प्रोफेसर सभरवाल प्रकरण राजेश माली Senior Correspondent, Dainik Bhaskar 26 अगस्त 2006, यही वह दिन था जब उज्जैन के माधव कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव कि प्रक्रिया के दौरान उपजी हिंसा की आग में प्रो एचएस सभरवाल को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। उस दिन कॉलेज में क्या हुआ, यह कई लोगों ने देखा। प्रोफेसरों को 'तुम्हें पोंछा लगाना पड़ेगा, परिणाम भुगतना पड़ेगा' जैसी धमकियां कैमरे के सामने देने वाले एबीवीपी के नेताओं का चेहरा टीवी चैनलों के माध्यम से पूरे देश ने देखा, लेकिन फिर भी सभी आरोपी बरी हो गए तो फिर प्रो. सभरवाल को किसने मारा? दरअसल इस प्रकरण के संभावित नतीजे का आभास तभी हो गया था जब 5 फरवरी 2007 को उज्जैन की जिला अदालत में गवाही के दौरान प्रमुख चश्मदीद कोमल सिंह जांच एजेंसी को दिए बयान से मुकर गया था। इसके बाद तो कुछ दूसरे गवाह भी कोमल सिंह की श्रेणी में आ गए जिन्हें अभियोजन पक्ष के आग्रह पर पक्ष विरोधी घोषित किया गया। इनमें तीन पुलिसकर्मी भी शामिल थे। जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामला नागपुर ट्रांसफर हुआ तो जांच एजेंसी और अभियोजन पक्ष को अपनी गलतियां सुधारने का मौका मिला, लेकिन जा