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Showing posts from September 5, 2010

मुक्तिका: किस चरण का अनुकरण --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका: किस चरण का अनुकरण संजीव 'सलिल' * किस चरण का अनुकरण जन-जन करे. हर चरण के आचरण हैं जब बुरे.. गले मिलते मुस्कुराते मीत कह पीठ पीछे हाथ में थामे छुरे.. हैं बुरे, बनते भले जो आजकल. हैं भले जो आजकल लगते बुरे.. मायके में गुजर कब किसकी हुई? खोज प्रियतम को चलो अब सासरे.. सच कहो तो मानते सब गैर हैं. कहें मनचाही वही हैं खास रे.. बढ़ी है सुविधाएँ, वैभव, कीर्ति, धन. पर आधार से गुम गया है हास रे.. साँस तेरा साथ चाहे छोड़ दे. 'सलिल' जीते जी न तजना आस रे.. ************************** दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

दी हुई नींद: ख़्वाब देखे कोई और

दी हुई नींद: ख़्वाब देखे कोई और : "मेरे साथ ही ख़त्म नहीं हो जायेगा सबका संसार मेरी यात्राओं से ख़त्म नहीं हो जाना है सबका सफ़र अगर अधूरी है मेरी कामनाएं तो हो सकता है तुममें..." सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

दी हुई नींद: उम्र

दी हुई नींद: उम्र : "अर्जित की जाती है कंजूस बनिए सी ख़र्च सूद में से टूट जाती है आईने की तरह अचानक कच्च से फूलहा परातों सी होती है उम्र रखे-रखे ही पड़ जाती ..." सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

दी हुई नींद: रिश्ता

दी हुई नींद: रिश्ता : "किसी भी समय दिख जाता है वह अलस्सुबह, दोपहर, सांझ या रात में उसके कंधे पर लदी होती है कुर्सियां, सिर पर मेज़, हाथ में छोटा स्टूल पीली मिट्टी ..." सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ