Skip to main content

Posts

Showing posts from March 14, 2009

संजीव जी की एक और लघुकथा

गाँधी और गाँधीवाद 'बापू आम आदमी के प्रतिनिधि थे. जब तक हर भारतीय को कपडा न मिले, तब तक कपडे न पहनने का संकल्प उनकी महानता का जीवत उदाहरण है. वे हमारे प्रेरणास्रोत हैं' - नेताजी भाषण फटकारकर मंच से उतरकर अपनी मंहगी आयातित कार में बैठने लगे तो पत्रकारों ऐ उनसे कथनी-करनी में अन्तर का कारन पूछा. नेताजी बोले- 'बापू पराधीन भारत के नेता थे. उनका अधनंगापन पराये शासन में देश की दुर्दशा दर्शाता था, हम स्वतंत्र भारत के नेता हैं. अपने देश के जीवनस्तर की समृद्धि तथा सरकार की सफलता दिखाने के लिए हमें यह ऐश्वर्य भरा जीवन जीना होता है. हमारी कोशिश तो यह है की हर जनप्रतिनिधि को अधिक से अधिक सुविधाएं दी जायें.' ' चाहे जन प्रतिनिधियों की सविधाएं जुटाने में देश के जनगण क दीवाला निकल जाए. अभावों की आग में देश का जन सामान्य जलाता रहे मगर नेता नीरो की तरह बांसुरी बजाते ही रहेंगे- वह भी गाँधी जैसे आदर्श नेता की आड़ में.' - एक युवा पत्रकार बोल पड़ा. अगले दिन से उसे सरकारी विज्ञापन मिलना बंद हो गया.

सूअर सबसे निर्लज्ज और बेशर्म जानवर है!

"इस धरती पर सूअर सबसे निर्लज्ज और बेशर्म जानवर है| केवल यही एक ऐसा जानवर है जो अपने साथियों को बुलाता है कि वे आयें और उसकी मादा के साथ यौन इच्छा को पूरी करें| अमेरिका में प्रायः लोग सूअर का माँस खाते है परिणामस्वरुप ऐसा कई बार होता है कि ये लोग डांस पार्टी के बाद आपस में अपनी बीवियों की अदला बदली करते हैं अर्थात एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति से कहता है कि मेरी पत्नी के साथ तुम रात गुज़ारो और मैं तुम्हारी पत्नी के साथ रात गुज़ारुन्गा (फिर वे व्यावहारिक रूप से ऐसा करते है)| अगर आप सूअर का माँस खायेंगे तो सूअर की सी आदतें आपके अन्दर पैदा होंगी | हम भारतवासी अमेरिकियों को बहुत विकसित और साफ़ सुथरा समझते हैं | वे जो कुछ करते हैं हम भारतवासी भी उसे कुछ वर्षों बाद करने लगते हैं| Island पत्रिका में प्रकाशित लेख के अनुसार पत्नियों की अदला बदली की यह प्रथा मुंबई में उच्च और सामान्य वर्ग के लोगों में आम हो चुकी है|" सलीम खान स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़  लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

हाँ, मैं हिन्दू हूँ !!!

'हिंदू' शब्द की परिभाषा भारत वर्ष में रह कर अगर हम कहें की हिंदू शब्द की परिभाषा क्या हो सकती है? हिंदू शब्द किस प्रकार से प्रयोग किया जाता है? आख़िर क्या है हिंदू? तो यह एक अजीब सा सवाल होगा लेकिन यह एक सवाल है कि जिस हिन्दू शब्द का इस्तेमाल हम वर्तमान में जिस अर्थ के लिए किया जा रहा है क्या वह सही है ? मैंने हाल ही में पीस टीवी पर डॉ ज़ाकिर नाइक का एक स्पीच देखा, उन्होंने किस तरह से हिंदू शब्द की व्याख्या की मुझे कुछ कुछ समझ में आ गया मगर पुरी संतुष्टि के लिए मैंने अंतरजाल पर कई वेबसाइट पर इस शब्द को खोजा तो पाया हाँ डॉ ज़ाकिर नाइक वाकई सही कह रहे हैं. हिंदू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, कब हुई और किसके द्वारा हुई? इन सवालों के जवाब में ही हिंदू शब्द की परिभाषा निहित है|   यह बहुत ही मजेदार बात होगी अगर आप ये जानेंगे कि हिंदू शब्द न ही द्रविडियन न ही संस्कृत भाषा का शब्द है. इस तरह से यह हिन्दी भाषा का शब्द तो बिल्कुल भी नही हुआ. मैं आप को बता दूँ यह शब्द हमारे भारतवर्ष में 17वीं शताब्दी तक इस्तेमाल में नही था . अगर हम वास्तविक रूप से हिंदू शब्द की परिभाषा करें तो कह सकते है क

पब संस्कृति, कट्टरता संस्कृति और हमारी संस्कृति

पुनः प्रकाशित पिछले  दिनों 26 जनवरी के ठीक एक दिन पहले मंगलूर (कर्नाटक) में श्रीरामसेना के कार्यकर्ताओं ने कानून व्यवस्था की चिंता किए बिना जिस तरह से लड़कियों और औरतों को दौड़ा-दौड़ा के पीटा उससे सभ्यता और शालीनता के मानने वालों को बहुत ठेस पहुँची और दुःख पहुँचा। लड़कियों पर असभ्य हमले की इस घटना पर  प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया आने में 2 दिन लग गए। इसके अलावा पुलिस ने भी अपनी कार्यवाही में बहुत देरी की। कर्नाटक ने चर्चों पर अभी हमलों के ज़्यादा दिन नहीं बीते तब इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार बजरंगदल के प्रति जिस तरह से नरमी बरती गयी थी वह किसी से छिपा नही है। अतीत को देखते हुए इस बार भी श्रीराम सेना पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार की तरफ़ से कोई ठोस क़दम उठाये जायेंगे, कह पाना मुश्किल है। श्रीरामसेना पर पाबन्दी लगाने पर भी राज्य सरकार टालमटोल सा रवैया अपनाए हुए है। सरकार का बयान भी उस वक्त आया जब श्रीरामसेना के प्रमुख प्रमोद मुथलिक जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था, उन्होंने राज्य सरकार की रूलिंग पार्टी को याद दिलाया कि राज्य में जो सरकार बनी है वो बनी ही है हिंदुत्व एजेंडे पर।

मै क्या हू .....?

मै क्या हू .....? मै क्या सोचती हू ? मै क्या चाहती हू ? खुद नहीं जानती ........ क्या पाना ,क्या खोना मेरे लिए सब एक सा है .. क्यूकि इस दिल से उम्मीद .... शब्द ही मिट चुका है| कभी सोचू.........ऐसा करू , कभी सोचू ...मै वैसा करू ऐसे और वैसे के चक्रव्हिहू में , कभी कुछ नहीं किया | कभी सोचू अपने लिए थोडा सा तो जी लू फिर सोचा .....वो क्या कहेगा ये क्या कहेगा . ..सब क्या कहेगे इसी सोच में , अपने लिए जीना ही छोड़ दिया | कभी देश की हालत पे गंभीर हो लेती हू , पर दूसरे ही पल ...सब लोगो संग हस देती हू ये सोच की ...सिर्फ मेरे सोचने भर से क्या होगा , मै क्या बोलू और क्या ना बोलू .. कभी सोचा ही नहीं ..... मै क्या हू .....? (....कृति....अनु ...)

ईश्वर एक है, एक है, एक है !

पुनः प्रकाशित ईश्वर है तो देखाई क्यों नहीं देता? ईश्वर कोई हमारे और आप के जैसे नहीं कि जिसे मानव का देख लेना सम्भव हो, वह तो सम्पूर्ण संसार का रचयिता और पालनकर्ता है, उसके सम्बन्ध में कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह देखाई दे बल्कि जो देखाई दे वह तो सीमित हो गया और ईश्वर की महिमा असीमित है। अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन में बताया गया है कि मूसा नामक एक संदेष्टा (ईश्वर की उन पर दया हो) ने जब ईश्वर से प्रार्थना किया कि “हे ईश्वर हमें अपना रूप देखा दीजिए”  तो उत्तर आया कि तुम हमें देख नहीं सकते परन्तु तुम इस पहाड़ पर देखो यदि वह अपने स्थान पर स्थित रहा तो तेरे लिए हमे देखना सम्भव है। जब ईश्वर ने अपना प्रकाश प्रकट किया तो पड़ार टूकड़े टूकड़े हो गया और मूसा बेहोश हो कर गिर पड़े।(सूरः आराफ 143) मानव अपनी सीमित बुद्धि से जब सोचता है तो समझने लगता है कि ईश्वर कोई मानव के समान है जो देखाई देना चाहिए।यह तो एक रहा! फिर संसार में विभिन्न चीज़ें हैं जो देखाई नहीं देतीं पर इंसान को उनके वजूद पर पूरा विश्वास होता है। एक व्यक्ति जब तक बात करता होता है हमें उसके अन्दर आत्मा के वजूद का पूरा विश्वास होता है लेकिन

हां दोस्त हर मुस्लिम ही आतंकवादी और धोखेबाज होता है

आज हिन्दुस्तान जिन हालातों से गुजार रहा है उसके लिए मुस्लिम ही जिम्मेदार है मैं एक भारतीय हूँ और उसके आधार पर मैंने यहाँ जो देखा जो अनुभव किया , उसके आधार पर कह सकता हूँ की हर मुस्लिम धोखेबाज और आतंकवादी ही होता है ! चाहे बह मुस्लिम भारत मे ही क्यों न रहता हो उसका मंसूबा भारत को नुक्सान पहुँचाना ही रहा है ! इतिहास गवाह है की जब जब हिन्दुस्तान मे खून बहा है उसके पीछे '' अलाह के बन्दे '' ही रहे है ! यह महज एक इत्फ़ाक़ नहीं हो सकता दोस्त ! आप चाहे कुरान की जितनी भी बातें बताएँ , वो यह सिद्ध नहीं कर सकती की आपकी कोम पाक है ! नापाकी का जो दाग आप लोगों पर लगा है , बह इस्लाम के जिंदा रहने के आखिरी बिंदु तक जीवित रहेगा ! मैंने आपको काफी पड़ा कुछ अच्छा लगा कुछ अच्छा नहीं लगा लेकिन आज आपने मुझे यहाँ लिखने के लिए मजबूर कर दिया ! मैं आपको बात दूं की प्रशांत जी नफरत नहीं फैला रहे है बल्कि सच कहने की हिम्मत कर रहे है,आप उनपर इस तरह का प्रहा

प्रशांत बाबू ! नफरत ना फैलाईये !! प्लीज़ !!! आईये मिलजुल कर रहें !!!!

आज मैंने प्रशांत बाबू की एक पोस्ट देखी जिसका मज़मून था "तुष्टिकरण की जय हो" जिसमे लिखा था- उपरोक्त पोस्ट पढ़ कर लगता है प्रशांत जी साम्प्रदायिक और संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित व्यक्ति हैं| जो नेताओं की तरह हर बात में चाहे वो देश के हित की बात क्यूँ न हो, अपनी संकीर्ण मानसिकता के चश्में से उसे देखते हैं  और उल्टा अर्थ निकल कर अनर्थ कर डालते हैं | आप ही बताईये कि स्टेज पर रहमान के साथ सुखविंदर का ना होने या गुलज़ार का ना होने में रहमान का क्या दोष !??? लेकिन ये जनाब हर वक़्त मुसलमानों में खोट निकालते रहते हैं| इसके पूर्व भी श्रीलंकाई खिलाडियों पर हुए हमलों पर लिखा, बाकी सब तो ठीक था, मगर उनकी एक पोस्ट मुझे लगा कि उसी बीमारी की हालत में उन्होंने लिख डाली थी |  वो पोस्ट थी - और जिसके प्रयुत्तर में मुझे यह पोस्ट लिखनी पड़ी-  आप पाठकों से अनुरोध है कि आप उपरोक्त सभी पोस्ट ज़रूर पढें (सारी पोस्टें इसी ब्लॉग पर हैं)   ख़ैर ! अब मैं प्रशांत जी के हाल ही के पोस्ट "तुष्टिकरण की जय हो" का जवाब बिन्दुवार दूंगा, सार्थक, शालीनता से और देश हित को ध्यान में रखते हुए |   सबसे पहला न

लघु कथा-- आचार्य संजीव 'सलिल'

लघु कथा-- आचार्य संजीव 'सलिल' स्वर्ग-नर्क एक देश में शहीदों और सत्याग्रहियों ने मिलकर स्वतंत्रता प्राप्तकर लोकतंत्र का पौधारोपण किया. उनके साथियों और बच्चों को पौधे के चारों ओर लगी हरी घास, वंदे मातरम गाती हवा, कलकल बहती सलिल-धार बहुत अच्छी लगी. पौधे के पेड़ बनते ही हाथ के पंजे का उपयोग कर एक बच्चे ने एक डाल पर झूला डालकर कब्जा कर लिया. हँसिया-हथोडा लिए दूसरे बच्चे ने एक अन्य मोटी डाल देखकर आसन जमा लिया. तीसरी शाखा पर कमल का फूल लेकर आए लडके ने अपना झंडा फहरा दिया. कुछ और बच्चे चक्र, हल, किसान, हाथी आदि ले आए. आपाधापी और धमाचौकडी बढ़ने पर जनगण की दोशाले जैसी हरी घास बेरहमी से कुचली जाकर सिसकने लगी. झूलों में आसमान से होड़ लेती पेंगें भरते बच्चे जमीन से रिश्ता भूलने लगे. लोकतंत्र का फलता-फूलता पेड़ अपनी हर डाल को क्षत-विक्षत पाकर आर्तनाद करने लगा. अपने पेड़ बेटे के दर्द स

राजनीति में मोक्ष प्रधानमंत्री बनने से मिलता है

आडवानी जी की जय हो आडवानी जी होली के इस रंग-बिरंगे पर्व पर आपको    व् आपके परिवार के समस्त सदस्यों को हार्दिक बधाई ........ लेकिन जो विज्ञापन मै इंटरनेट  में देखता हू उसे देखा कर तो ऐसा  ही  लगता है   कि आप प्रधानमंत्री बनाने के लिए इतने लालायित है  कि आपने खुद ही अपना नाम प्रस्तवित किया  है  और  आप खुद ही अपने नाम  का  विज्ञापन कर रहे है तो मै आपसे ये जानना चाहता हू कि आप प्रधानमन्त्री देश के लिए बनना चाहते है   की अपने लिए . क्यों कि आपके रंग बी रंगे विज्ञापन देखा कर तो यही लगता है कि आपकी प्रधानमन्त्री बनने की लालसा आप पर   इस कदर हावी हो चुकी है की आपने अपने अलावा  भाजपा के किसी व्यक्ति या पदाधिकारी का   भी कही कोई   नमो निशान नहीं रखा   सभी को नगण्य कर दिया और खुद को खुद से ही प्रोजेक्ट करते हुए भारत के प्रधानमन्त्री का  दावेदार बना दिया  इतनी महत्वकान्क्षा    ठीक नहीं  ,  हो सकता है  ये सही भी हो लेकिन क्या आपने कभी ऐसा देखा है की खुद ही खुद का प्रस्ताव रखता है मंच में भी हमें हार   पहनने और सम्मानित होने के लिए कोई और ही हमें प्रस्तावित करता है    और अखबारों में लगने वाले