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Showing posts from January 29, 2009
भविष्य की कृषि खतरे में ..... सभ्यता के आरभ से ही " कृषि " मानव की तीन जीवनदायनी आधारभूत आवश्यकताओं में से एक -भोजन की आपूर्ति के लिए अपरिहार्य बना हुआ है । कृषि के अलावा ज्ञान-विज्ञान , अध्यात्म ,चिकित्सा आदि -इत्यादि मानवीय जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में हर दिन नव चेतना फ़ैल रही है , हर दिन कुछ नई बातें सामने आ रहीं हैं। ऐसा नही की ये सब एक दिन में हो गया बल्कि ऐसा होने में सदियाँ बीत गई । जीवन जीने की जद्दोजहद में पशुवत मांसभक्षण करने वाला मनुष्य कब शाकाहारी हो गया इसका ठीक- ठीक अनुमान लगना मुश्किल है।कालांतर में धीरे-धीरे कंदमूल खाकर भरण -पोषण करने वाला आदिमानव खेती करने लगा । सैकडों -हजारों वर्षों के मेहनत के बाद आज खेती -बड़ी अर्थात कृषि का ये उन्नत रूप हमारे समक्ष है।लेकिन आज के इस वैज्ञानिक -बाजारवादी युग में जब समूची दुनिया को एक बाज़ार बनाने की तयारी रही है , कृषि का भविष्य खतरे में दीखता है । भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहाँ ७० %आबादी खेती के सहारे जीवन गुजरा करती है, वहां सरकारी उदासीनता के कारणआज सार्वजनिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण व्यवस्था कृषि और अन्य असंगठित रोजगारों

एक सेर मक्खन

एक सेर मक्खन एक किसान एक बेकर को रोज़ एक सेर मक्खन बेचा करता था. एक दिन बेकर ने यह परखने के लिए कि एक सेर मक्खन है या नहीं, उसे तौला और पाया कि मक्खन कम था. इस बात से वह गुस्सा हो गया और किसान को अदालत में ले गया. जज ने किसान से पूछा कि उसने तौलने के किए किस बाट का इस्तमाल किया था? किसान ने जवाब दिया "हुज़ूर मैं अज्ञानी हूँ . मेरे पास तौलने कि लिए कोई सही बाट नही है लेकिन मेरे पास एक तराजू है." जज ने पूछा तो तुम मक्खन को कैसे तौलते हो? किसान ने जवाब दिया इसने मक्खन तो मुझसे अब खरीदना शुरू किया है. मैं तो बहुत पहले से इससे एक सेर ब्रेड खरीद रहा हूँ. रोज़ सुबह जब ब्रेड लता हूँ तो ब्रेड को बाट बनाकर बराबर का मक्खन तौल देता हूँ. अगर इसमे किसी का दोष है तो वह है बेकर का "जिंदगी में हमें वही मिलता है जो हम देता दूसरों को देते हैं"

देश का फोजी

नमस्कार सा खम्मा घनी सा , 26 जनुअरी , मुबारक बाद आज में लक्ष्मन सुथार एक कविता लिक रहा हूँ जिसका क्रेडिट हमारे एक दोस्त " जयंत गोस्वामि ' को जाता है हमारे फोजी भाई जो देश के लिए , मात्रभूमि की रक्षा के लिया अपना जी जान लगा देता है ये उनकी करुण गाथा है " साथी घर जाकर मत कहेना , संकेतो में बतला देना , मेरा हाल मेरे बहना पूछे तो , सर उसका सहला देना इतने पर भी न समझे तो , राखी तोड़ देखा देना ! " साथी घर जाकर मत कहेना , संकेतो में बतला देना , मेरा हाल मेरे पत्नी पूछे तो , मस्तक को झुका लेना . इतने पर भी न समजे तो , मांग का सिन्दूर मिटा देना ! " साथी घर जाकर मत कहेना , संकेतो में बतला देना , मेरा हाल मेरी माँ पूछे तो , दो आंसू छलका देना , इतना पर भी न समजे तो जलाता दीप बुझा देना ! " साथी घर जाकर मत कहेना , संकेतो

जप में बहुत बड़ी शक्ति

विनय बिहारी सिंह रामकृष्ण परमहंस से एक व्यक्ति ने पूछा था- हम संसारी लोगों का ध्यान ज्यादा देर तक नहीं लगता। आंख बंद करते हैं तो एक मिनट तक तो ध्यान कर पाते हैं लेकिन उसके बाद मन भटकने लगता है। तब क्या हम लोगों को जप करना चाहिए? तब रामकृष्ण परमहंस ने कहा- हां। जप में बहुत शक्ति है। जैसे- कोई नाव रस्सी से बंधी है तो अगर कोई रस्सी पकड़ ले तो नाव ( भगवान) तक पहुंच सकता है। जप वही रस्सी है। एकाग्र होकर जप करना चाहिए। किस देवता पर एकाग्रचित्त हों? इसका जवाब है- जो आपको पसंद हो। कहां ध्यान करें? इसका जवाब रामकृष्ण परमहंस ने दिया था- या तो हृदय में या दोनों भृकुटियों के बीच में। दोनों भृकुटियों के बीच को ही गीता में नासिकाग्र कहा गया है। नासिकाग्र पर ध्यान करना चाहिए। मान लीजिए यह भी संभव नहीं है। तो किसी भी देवता का ध्यान कर जाप कीजिए। कुछ नहीं तो सिर्फ- राम, राम, राम का हीजाप कीजिए। कुछ संतों ने कहा है कि सांस लीजिए तो मन ही मन रा.... कहिए औऱ सांस छोड़ते वक्त म..... कहिए। यह भी अजपा जाप है। इससे आपका मन शांत होगा। रामकृष्ण परमहंस ने कहा था- ईश्वर में भक्ति हो और मनुष्य जाप करता रहे तो उसका

मुझे अब भी तेरी याद आती है।

मुझे अब भी तेरी याद आती है। कभी हंसाती तो कभी रुलाती है। तन्हाई में चुपके से आकर अक्सर सताती है। मुझे अब भी तेरी याद आती है वो तेरा मुस्कुराना अपनी पलकों से बताना, तेरी हर एक अदा मूझको कितना लुभाती है। पर क्या मुझे अब भी तेरी याद आती है। तुम्हे तो वो याद ही होगा, तुम्हारी पलके भीग जाती थी। मुझे लगता था शायद तुमको मेरी याद आती थी। अब पता चला है, मुझको तुझे न मेरी याद आती थी, न ही अब मेरी याद आती है पर मैं सच बताऊँ तुमको मुझे अब भी तेरी याद आती है। आगे यहाँ माना हमने की आप भुला चुके हो हमें तो फिर अब क्यों रुलाते हों नहीं रह सकते हो आप पास हमारे, तो अपनी यादें क्यों छोड़ जाते हो। तेरी ये यादें दिलबर हमको, हर बक्त रुलाती है। कभी हवा का झोखा बनकर, कभी बारिश की की बूंदे बनकर, दिल में समाती है। माना कि ये आखिरी सांस है हमारी पर क्या क्या करुँ मुझे अब भी तेरी याद आती है।

रात,खो गया मेरा दिल....!!

रात,खो गया मेरा दिल....!! कल रात ही मेरा दिल चोरी चला गया, और मुझे कुछ पता भी ना चला, वो तो सुबह को जब नहाने लगा, तब लगा,सीने में कुछ कमी-सी है, टटोला,तो पाया,हाय दिल ही नहीं !! धक्क से रह गया सीना दिल के बगैर, रात रजाई ओड़ कर सोया था, मगर रजाई की किसी भी सिलवट में, मेरा खोया दिल ना मिला, टेबल के ऊपर,कुर्सी के नीचे, गद्दे के भीतर,पलंग के अन्दर, किसी खाली मर्तबान में, या बाहर बियाबान में, गुलदस्ते के भीतर, या किताब की किसी तह में, और आईने में नहीं मिला मुझे मेरा दिल !! दिल के बगैर मैं क्या करता, घर से बाहर कैसे निकलता, मैं वहीं बैठकर रोने लगा, मुझे रोता हुआ देखकर, अचानक बेखटके की आवाज़-सी हुई, और जब आँखे खोली, तो किसी को अपने आंसू पोंछते हुए पाया देखा तो, सामने अपने ही दिल को मंद-मंद मुस्कुराते पाया, दिल से लिपट गया मैं और पूछा उसे, रात भर कहाँ थे, बोला,रात को पढ़ी थी ना आपने, गुलज़ार साहब की भीगी हुई-सी नज़्म, मैं उसी में उतर गया था, और रात भर उनकी नज्मों से बहुत सारा रस पीकर मैं आपके पास वापस आ गया हूँ.....!!