प्रीतीश नंदी हर आदमी धीरे-धीरे इसीलिए अकेला होता जा रहा है, क्योंकि उसने अब अपने आसपास के लोगों पर भरोसा करना छोड़ दिया है। यह सच है कि अब दुनिया उतनी सरल नहीं रही, जैसी वह कभी हुआ करती थी। लेकिन जैसे ही हम भरोसा करना छोड़ देते हैं, वैसे ही हम खुद को भीतर से बंद कर लेते हैं और अकेलेपन की कंदरा में खो जाते हैं। हम प्यार कम करते हैं और डरते ज्यादा हैं। हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो भरोसा करना भूलती जा रही है। इससे भी बुरा यह कि हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां भरोसे की इसी खाई के इर्द-गिर्द नए उद्योग पनप रहे हैं। वे हमें मजबूर करते हैं कि हम कम से कम भरोसा करें और भय की भावना से ज्यादा से ज्यादा ग्रस्त हों। सुरक्षा के नाम पर होने वाला समूचा कारोबार जाने-पहचाने खतरों से हमारी रक्षा नहीं करता। इसके उलट वह तो भय का ऐसा माहौल बना रहा है, जहां हम किसी भी अनजानी चीज से खुद को डरा हुआ महसूस करते हैं। मेडिकल ट्रीटमेंट भी इसी राह चल रहे हैं। पहले हमें बीमारियों का डर रहा करता था। आज हम बीमारियों के अंदेशे तक से डरे हुए रहते हैं। लिहाजा हम बार-बार अपनी जांच करवाते हैं, पैथोलॉजी टेस्ट करव