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Showing posts from February 15, 2010

लो क सं घ र्ष !: लब डूबा हुआ साग़र में है

कुछ दिन पहले एक दैनिक अखबार में अलग-अलग पृष्ठों पर शराब के सम्बन्ध में तीन खबरे छापी गई पहली यह कि शराबी पिता की हरकतों से तंग बेटे ने उसे खुरपी से काट डाला, पिता की लड़के की पत्नी पर गंदी नजर थी वह रोज गांव व घर में झगड़ा करता था तथा जवान पुत्रियों को गाली देता था। दूसरी यह कि एक बैंक के सहायक प्रबन्धंक की बारात समस्तीपुर जिले में गई थी, प्रबन्धक जी नशे में धुत थे अतः दुल्हन ने शादी से इनकार कर दिया और बारात बैरंग वापस हो गई, अब तीसरी खबर विचारणीय है कि शराब पर सरकारी नीति को लेकर एक याचिका की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह ने पूछा कि क्या गाँधी जी के देश में सरकार द्वारा लोगों को शराब पीने के लिये मजबूर करने का हक है, क्योंकि आबकारी अधिनियम में ठेकेदारों पर यह बाध्यता है कि कम शराब उठाने पर वे अधिक टैक्स दें। प्रबुद्ध वर्ग जानता है कि शराब उठाने के लक्ष्य निर्धारित होते हैं, दुकानों की संख्या भी बढ़ाई जाती है और मार्च के महीने में दुकानों की नीलामी की बोलियाँ लगवाकर टैक्स में बढ़ोत्तरी के प्रयास किये जाते हैं, यह विरोधाभास भी देखिये कि सरका

आग क्यों नहीं धधकती इन सीनों में?

जलजले कहकर नहीं आते। लेकिन, पुणे में तो जलजला पूरी घोषणा के साथ आया। तीन राज्य सरकारों के पास कागज थे। दो केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के पास खबर थी। पुलिस तो वैसे भी चाहे तो सब पता लगा लेती है। लेकिन, कानून के इन रखवालों का नकारापन कई जानें लील गया। क्यों नहीं रुकते हमले? क्या आतंक हमारे लिए अंतहीन अभिशाप बन चुका है? ऐसा बिल्कुल नहीं है। सब कुछ नेतृत्व पर निर्भर है। यदि नेतृत्व के सीने में आग धधकती हो, तो हरकत-हूजी-हिजबुल-बुलबुल कोई नाम हो, जल कर खाक ही होगा। क्योंकि ये आग मानवता के लिए होगी। ..लेकिन हम भी जलेंगे वो फरवरी का ही महीना था जब अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने दुनिया को सकते में डाल दिया था। उन्होंने—ठीक दो साल पहले—यह खुलकर स्वीकार किया था कि 9/11 के आतंकियों की जांच के दौरान ‘वॉटरबोर्डिंग’ जैसी यंत्रणा दी गई थी। इसके तहत अभियुक्तों को निर्वस्त्र कर, मुंह कपड़े से ढक कर इतना तेज और इतना ज्यादा पानी डाला गया, जिससे उन्हें डूबने का अहसास हो। वो छटपटाए, तड़पे-किंतु मरे नहीं। ऐसी अमानुषिक यातना समूचे विश्व में प्रतिबंधित है। लेकिन बुश इस के बदले बदनामी का कलंक झेलने को तैयार थे।