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Showing posts from September 7, 2009

लो क सं घ र्ष !: भारत के विभाजन की सच्चाई से हम कब तक मुँह चुराएँगे?

देश की आजादी के 62 साल बाद भी एक कडुवा सच बराबर उभर कर ना जाने क्यों देश के सामने आ ही जाता है कि देश के विभाजन का जिम्मेदार क्या केवल मुहम्मद अली जिनाह ही थे, जिन्होंने मुसलमानों को बरग़ला कर देश से अलग एक राष्ट्र बनाने के लिए अहम भूमिका अदा की? दो कौमी नजरिए के बानी कहे जाने वाले अपने-जमाने के दिग्गज कांग्रेसी मुहम्मद अली जिनाह ने किन हालात में पाकिस्तान बनाने की सोंची? और वह कौम जो उनकी वेशभूषा व भाषा से उन्हें कभी भी मुस्लिम लीडर के तौर पर कुबूल नहीं करती थी, आखिर क्या जादू उन्होंने किया कि पूरी कौम उनकी एक आवाज पर अपना घर बार, पूर्वजों की चैखट छोड़कर पलायन करने पर उतारू हो गई? नब्बे के दशक के प्रारम्भ में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो एक शोर सा देश में मचा कि मौलाना आजाद द्वारा लिखित सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’’ के वह पृष्ठ जो उन्होंने अपनी मृत्यु के 50 वर्ष बाद खोलने को कहे थे और जो राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित है खोलकर पढ़े जाएं। पहले कांग्रेसी सरकार इसे टालती रही परन्तु जब सदन तक में यह मामला भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने जोर-शोर से उठाया तो उन पृष्ठों को खोला

फूल तो खिल जाने दो,,

अभी तो कलियाँ खिल रही है॥ फूल तो खिल जाने दो॥ फ़िर आके रस चूस लेना॥ अभी ज़रा मुस्काने दो॥ हर अदा पे मुग्ध हुए हो॥ पलकों पे मुझे बिठाओ गे॥ अपनी बाहों में लेकर्के॥ मेरा दिल बहलाओ गे॥ अभी न रोको रास्ता मेरा॥ सीधे घर को जाने दो॥ अभी तो कलियाँ .... तुम्हे देख कर चंचल हो गई॥ भूल गई हर लाज को॥ घर वालो की बाग़ लगाई॥ अर्पित कर दी आप को॥ अभी हवा पुरुवा डोली ॥ मुझे जर इठलाने दो॥ अभी तो कलियाँ खिल रही है॥ फूल तो खिल जाने दो॥

गूगल डाका डाल रहा है, गूगल की डाकेजनी का वि‍रोध करो

गूगल सर्च में जब आप कि‍ताब खोजने जाते हैं तो कि‍ताब की जगह कि‍ताब आधी, अधूरी मि‍लती है। आप कि‍ताब पढ़ते हैं, और अचानक पाते हैं कि उसके कई पन्‍ने गायब हैं। यह वैसे ही है, जैसे पुस्‍तकालय से कि‍सी कि‍ताब से कोई पाठक अपने काम के पन्‍ने फाड़कर ले जाए। फटी कि‍ताब, अधूरी कि‍ताब गूगल के ‘बुक सर्च’ का आम फि‍नोमि‍ना है। हमें समझ में नहीं आता ये गूगल वाले अधूरी कि‍ताब, कटी, फटी कि‍ताब यूजर को क्‍यों देते हैं? गूगल की नेट लाइब्रेरी में अनेक कि‍ताबें ऐसी भी हैं जि‍नका गूगल ने अभी तक कॉपीराइट नहीं लि‍या है। प्रकाशक से कॉपीराइट नहीं लि‍या है। गूगल में सीमि‍त पन्‍नों या आधी अधूरी शक्‍ल में नज़र आने वाली कि‍ताबें अवैध हैं। ये लेखक और प्रकाशक की अनुमति‍ के बि‍ना वेब पर प्रकाशि‍त कर दी गयी हैं। गूगल की इस जालसाज़ी का पर्दाफाश और प्रति‍वाद कि‍या जाना चाहि‍ए। अमेरि‍का के प्रकाशकों और लेखकों ने इस सि‍लसि‍ले में कुछ महत्‍वपूर्ण कदम भी उठाये हैं। ये बातें इसलि‍ए जानना जरूरी हैं क्‍योंकि‍ गूगल वाले हिंदी कि‍ताबों की ओर भी आने वाले हैं। सौदे पटाने की तैयारि‍यां चल रही हैं। यह कॉपीराइट का नये कि‍स्‍म का मसला ह