देश की आजादी के 62 साल बाद भी एक कडुवा सच बराबर उभर कर ना जाने क्यों देश के सामने आ ही जाता है कि देश के विभाजन का जिम्मेदार क्या केवल मुहम्मद अली जिनाह ही थे, जिन्होंने मुसलमानों को बरग़ला कर देश से अलग एक राष्ट्र बनाने के लिए अहम भूमिका अदा की? दो कौमी नजरिए के बानी कहे जाने वाले अपने-जमाने के दिग्गज कांग्रेसी मुहम्मद अली जिनाह ने किन हालात में पाकिस्तान बनाने की सोंची? और वह कौम जो उनकी वेशभूषा व भाषा से उन्हें कभी भी मुस्लिम लीडर के तौर पर कुबूल नहीं करती थी, आखिर क्या जादू उन्होंने किया कि पूरी कौम उनकी एक आवाज पर अपना घर बार, पूर्वजों की चैखट छोड़कर पलायन करने पर उतारू हो गई? नब्बे के दशक के प्रारम्भ में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो एक शोर सा देश में मचा कि मौलाना आजाद द्वारा लिखित सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’’ के वह पृष्ठ जो उन्होंने अपनी मृत्यु के 50 वर्ष बाद खोलने को कहे थे और जो राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित है खोलकर पढ़े जाएं। पहले कांग्रेसी सरकार इसे टालती रही परन्तु जब सदन तक में यह मामला भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने जोर-शोर से उठाया तो उन पृष्ठों को खोला