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Showing posts from July 1, 2010

लो क सं घ र्ष !: तुम क़त्ल भी करते हो तो चर्चा नहीं होता

महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बाते की जाती है, दिवस मनाये जाते हैं, अधिकार एवँ आरक्षण हेतु सेमिनार होते हैं, चुनाव होने से पूर्व नेता मंचों पर हुंकार भरते हैं, राजनैतिक दल घोषणा-पत्रों में वादे करते हैं- परन्तु ये सभी बाते फ़र्जी ही लगती हैं। अधिकतर हनन के मामले में समाज में वह जहाँ पर थी वहीं हैं- वह अब भी ज़ुल्म का शिकार बनती है- पैदाइश से पूर्व कोख सें ही इस की शुरूआत होती है। एम0टी0पी0 एक्ट हो या पी0एन0डी0टी एक्ट सभी का उलंघन होता है। दुखद पहलू यह है कि कन्या भ्रूण हत्या में स्वंय उसकी माँ संलिप्त होती है। इससे आगे देखिये ‘आनर किलिंग‘ का वार भी अधिकतर इन्ही को झेलना पड़ता है। धनीवर्ग में अब एक नई बात सामने आई है- शादी से पहले एच0आई0वी0 रिर्पोट कन्या पक्ष से ली जाती है- बात अच्छी ज़रूर है- आगामी जीवन साथी की एड्स ग्रसित होने की जानकारी लेना कोई बुरी बात नहीं है- सभी जानते हैं कि संक्रमित खून से संर्पक तथा किसी ऐसे से असुरक्षित यौनाचार से इस मर्ज़ के लग जाने की संभावना होती है, जो पहले से इस रोग से ग्रसित हो। देखा गया है कि एच0आई0वी0 की रिर्पोट वर पक्ष वाले कन्या पक्ष से मांगते हैं। कह

सवा लाख करोड़ रुपए का चौकीदार चाहिए

विजय विद्रोही स्टार न्यूज के कार्यकारी संपादक हैं।विजय जी से vijay.vidrohi@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है मनमोहन सिंह सरकार आम आदमी के लिए जिन योजनाओं को शुरू कर रही है, उन पर हर साल करीब सवा लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं। मनरेगा पर इस साल करीब चालीस हजार करोड़ खर्च किए जाने हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून पर पचास से साठ हजार करोड़ रुपए हर साल खर्च होंगे। भले ही यूपीए सरकार इस बहाने अपने वोट बैंक को मजबूत कर रही हो, लेकिन इन योजनाओं के लिए रखे गए पैसे का लाभ वास्तव में गरीब जनता तक पहुंचे, इसे सुनिश्चित किस तरह किया जा रहा है, यह जानने का हक पूरे देश को है। देश जानना चाहता है कि कांग्रेस सरकार ने सवा लाख करोड़ रुपए की चौकीदारी की क्या व्यवस्था की है। ऐसा होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि मनरेगा या भोजन का अधिकार या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जैसी योजनाएं बार-बार आने वाली नहीं हैं। हो सकता है कि 2014 में नई सरकार सत्ता में आए और योजनाओं का स्वरूप ही बदल डाले। देश इसलिए भी पाई-पाई का हिसाब जानना चाहता है। गरीबी दूर करने की इतने बड़े पैमाने पर जब पहल हुई ही है, तो यह पहल अं

सदस्यता समाप्त प्रक्रिया १५ जुलाई २०१० से

हम हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों की सूची जारी कर रहे है इस सूची जारी करने का तात्पर्य है की इस सूची में से जो लेखक हिन्दुस्तान का दर्द पर सक्रिय नहीं रह पा रहे है उनकी सदस्यता समाप्त की जा रही है,सदस्यता समाप्त करने  की प्रक्रिया १५ जुलाई २०१० से प्रारंभ होगी,इसलिए निवेदन है की जो लेखक अपनी सदयस्ता को बरक़रार रखना चाहते है,वो जल्दी से जल्दी   mr.sanjaysagar@gmail.com पर संपर्क करें  -संजय सेन सागर    MANVANTER आस्था सलीम ख़ान A SHRIVASTAVA TARUN GOEL डा०आशुतोष शुक्ल YATENDRA VASHISTHA आवेश डॉ.अभिज्ञात MANOJKUMARSINGH ALOK RANJAN संदीप तिवारी ROSHAN JASWAL VIKSHIPT SONIA KAPOOR AKHTAR KHAN AKELA सुशान्त सिंहल KUMAR GYANENDRA SUMAN AMAN 'BAS AMAN' AKSHAT SAXENA ABHISHEK.BJP अंकित माथुर रेखा श्रीवास्तव DR. SHYAM GUPTA MANJU DAGAR NITIN THAKUR साहिबा कुरैशी ASHOK KALPNA JOSHI शोभना चौरे अखिलेश सिंह PRIYANK FIRE AND ONLY FIRE ЅΑΗנΑУ ЅЄΗ ЅΑGΑЯ MARK RAI SHAMIKH FARAZ RAJIV MAHESHWARI FAKEER MOHAMMAD GHOSEE खुर्शीद अहमद अशोक मधुप SALMAN मोहन वश

क्या सरकार इन लोगो पर कभी ध्यान दिया?

हमारा भारत गावो में बसा है। गाँव के अन्दर भिन्न भिन्न प्रकार की जाती के लोग निवास करते है॥ उनकी रहन सहन बोली भाषा में भी अंतर पाया जाता है॥ उसी गाँव के अंदर जिसकी संख्या अधिक होती है, और उंच जाती के है जैसे जमीदार, मिश्रा जी और भी अनेक बड़े लोग या फिर हम यह कह सकते है जिस गाँव में जिस जाती की संख्या ज्यादा होती है ॥ उसी जाती का अधिक बोल बाला होता॥ वे उसरी जातियों को तंग करते है । जैसे ॥ नाई..तेली ,कुम्हार..लोहार.बढ़ाई , धोबी और भी अनेक जाती के लोगो को ये जातिया तंग करती है॥ जिनकी जन्ख्या अधिक होती है॥ जैसे हमारे उत्तर प्रदेश में पहले नाई लोग ठाकुर ब्राम्हण के बर्तन धोते थे॥ पत्तल उठाते थे। शादी ब्याह में बहुत हां हुजूरी करते थे॥ अब उनके बच्चे पढ़ लिख रहे है ॥ वे गाँव में ये सब काम नहीं करना चाहते है॥ जो अब वहा के लोग उन्हें तंग करना चालू कर दिए है। कहते है की हमारे पुर्बजो ने जो जमीन तुम्हारे पूर्वजों को दे राखी है । उसे हम ले लेगे अगर तुम हमारी गुलामी नहीं करो गे । तो उनके घरो में आग लगा दी जाती उन्हें धमकाया जाता है । वे लोग थाणे में शिकायत करने नहीं जाते है॥ दर के मारे ॥ अंत उनके साथ

आवारा कुत्ता

मै तो गलियों का आवारा कुत्ता हूँ॥ इधर उधर भौ भौ कर भूकता हूँ॥ हर एक दरवाजे पर जाता हूँ॥ रोटी के लिए हाजरी लगाता हूँ॥ कोई खीच कर लट्ठ मारता है॥ मै चिल्लाते हुए दम हिलाते चल देता हूँ॥ खाता हूँ तो सुरक्षा की गारंटी देता हूँ॥ शांत माहौल में पैर की आहट सुन॥ काल से भी सामना करता हूँ॥ लेकिन मौक़ा देख मुझपर वार कर देता है॥ जहा मै जीभ से चाट नहीं सकता हूँ॥ और हमारे शारीर में कीड़े पद जाते है॥ जिधर जाता हूँ लोग दर दर कर भगाते है॥ मै भागता हूँ एकांत ढूढता हूँ॥ फिर मै अपने प्राणों को त्याग देता हूँ॥ मेरी लाश पर बच्चे थूकते है ॥ कहते है कितनी बदबू आ रही है॥ मेरी सदी लाश को कोई गंगा में विसर्जित नहीं करता॥ क्यों की मै एक आवारा कुत्ता हूँ॥

दिशा भटके लोग..

धुल भरी आंधी का झोका॥ आँखों में भर दिया धुल॥ मै पछताया अपनी गलती पर॥ बना समय क्यों इतना क्रूर॥ आँखों में सूजन चढ़ी॥ कुछ भी नहीं दिखाता॥ जो जाता इस रास्ते से॥ मुझे धक्के लगाता॥ साल नाटक कर रहा है॥ बीच रास्ते में मर रहा है॥ को तो ताव दिखाता ॥ लातो से मार कर॥ फिर गड्ढे में गिराते है॥ मै रोता अपने कर्म पर॥ रीति और विपरीत की ॥ दिशा भटक गए लोग है॥