आज एक लेख पर मेरी नजर पड़ी समझ नहीं आया की आखिर समाज इतना आगे निकल चूका है या मैं ही कुछ पीछे चल रहा है हूँ,विज्ञान तो आगे बाधा ही है साथ ही साथ युवाओं की मानसिकता में भी काफी बदलाब आया है..जरा गौर फरमाइए इस लेख पर और बताइए क्या.भारतीय संस्कृति में इस तरह की चीज़ों के लिए कोई जगह है या नहीं? क्या इन चीज़ों के साथ भारतीय संस्कृति फल फूल पाएगी? आपकी राय महत्वपूर्ण है:- बाप बनना बड़ी जिम्मेदारी का काम है। यह जिम्मेदारी निभाने में काफी खर्च भी करना पड़ता है। पर आजकल एक उल्टा चलन चल पड़ा है। कुछ छात्र ‘बाप’ बन कर कमाई कर रहे हैं।महानगरों में यह चलन जोर पकड़ रहा है। छात्र स्पर्म डोनेट कर अपना जेब खर्च निकालते हैं। स्पर्म बैंक उनके स्पर्म जमा करता है और एक बार में एक से दो हजार रुपये तक देता है। बैंक यह स्पर्म आईवीएफ के जरिए बच्चा पैदा करने वाले किसी नि:संतान दंपती को बेचता है। इस तरह छात्र कमाई भी कर लेते हैं और किसी नि:संतान दंपती के बच्चे का ‘बाप’ भी बन जाते हैं। हालांकि ‘बाप’ के रूप में उनके इस दर्जे को कोई कानूनी या सामाजिक मान्यता नहीं होती। सच तो यह है कि उन्हें पता भी