सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ पब से बहार किया तो तुमने चड्डी उतारी, गर कल पब जाने से रोक देंगे तो चड्डी पहनना ..... पिछले एक सप्ताह से ज्यादा समय से चिट्ठाजगत इस पिंक चड्डी में समां गया लगता है। मुझे ज्यादा तो नही कहना, पर क्या करूं, लिखने को विवस हो गया। पहली बार मुझे लिखते हुए लेखनी और पत्रकारिता को पेशे के रूप में चुनने का अफ़सोस हो रहा है, बेहतर होता मैं अभियांत्रिकी में ही विकल्प तलाशता।पहले तो हमें यह समझना चाहिए की हमारा कोई भी कदम , हमारी स्वयं की सोच, अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता का घोतक है ऐसा मानकर हम मनुष्य कहलाने के अपनी निम्नतम निकृष्टता को छू लेते हैं। अआप आज जहाँ भी है, उसके पीछे आपके समाज , परिवार और पूर्वजों का कितना योगदान रहा है इसे नकार नही सकते। अगर koi इस अथ्य को नज़रंदाज़ karta हैं तो आपसे यह उम्मीद करना ग़लत नही होगा कि वो कल अपने बहन से शादी न कर ले। क्यों कि उसके लिए नैतिकता का क्या अर्थ ? उसे तो सिर्फ़ अधिकार और इक्षा कि भाषा समझ में आती है और वो बाजारवादी ,कल यह तर्क आराम से रख सकता है कि "जब अच्छी गुणवता और "ओके टेस्टेड माल " अपने गोदाम में है