अंगप्रदेश की फगुआ में बौराए लोग ११ मार्च ०९ मेरे जीवन की पहली होली जब मैं घर-परिवार , यार-दोस्तों और गाँवसे दूर लक्ष्मीनगर (दिल्ली )के एक कमरे में अकेला हूँ । मन उदास है । कमरे में चुप-चाप चादर ओढे पुरानी यादों की रील अपने दिमाग की वीसीआर में चला रहा हूँ । ऐसा लगता है , मेरी रंगीन जिन्दगी अचानक से ब्लैक &व्हाईट हो गई है । होली के हुर्दंग से बेफिक्र , हर्षोल्लास से परे , यहाँ एक घुटन सी हो रही है । यहाँ सारी भौतिक सुख -सुविधाएं हैं पर वो अपनापन वो मस्ती कहाँ ? अपने अंगप्रदेश की होली को याद कर रहा हूँ । वसंतोत्सव का यह मदमस्त पर्व हमारे अंगजनपद में सदियों से फगुआ के रूप में मनाया जाता है । वसंत पंचमी से शुरू हो कर फाल्गुन पूर्णिमा तक फगुआ में बौराए लोगों के ढोलक के थाप और उनके सामूहिक आवाज में जोगीरा सा रा रा रा की गूंज से माहौल में अलग ही नशा होता है। महीने भर से हर शाम को गाँव के चौपाल अथवा किसी मन्दिर या किसी सार्वजनिक जगह पर फाग गाने वाले लोगों की टोली जमती है । होलिका दहन के साथ ही होली का उन्माद चरम पर पहुँच जाता है । होली से ठीक एक दिन पहले धुरखेली (बोले तो उस दिन रंग अबीर की