कहा जाता है या एक आम धारणा सी बन गई है कि जिसे कहीं ठौर-ठिकाना नहीं मिलता वह पत्रकार का लबादा पहन लेता है। लेकिन ठीक इसके विपरीत है अनिल कुमार मानिकपुरी, की जिंदगी की चौखट के इर्द-गिर्द घूमती किस्सा गोई का ? अपनी प्राध्यापकी की मखमली लिबास पर पत्रकारिता या पत्रकार होने का पैबंद लगा इस शख्स ने जो कारनामें किये उसे देख यही लगता है, कि मानिकपुरी की हसरतों में बिना कुछ किये ही चांदी की फसलें काटने का शगल अब उनकी लत बन चुकी है। मानिकपुरी ने एक जगह अपने जीवन वृत्तांत में अध्यापन का अनुभव 10 वर्ष और पत्रकारिता का 3 वर्ष... दो दिशाओं में बटे पढ़ाई-लिखाई के घालमेल यही इंगित करता है कि मानिकपुरी ने तो शिक्षा ली और शिक्षा दी। इतना ही नहीं 24 घंटे में मानिकपुरी द्वारा अपने कार्यों या क्रियाकलाप की जो जानकारी दी गई है उसमें इस तथ्य का जिक्र किया गया है कि वे लोक-रंग और समाज सेवा भी करते हैं। यानि एक शख्स के रंग हजार और हजार हाथ से सब बटोरने में भी उन्हें महारथ है। दरअसल साजा के कुछ लोगों की राय मानिकपुरी के कद-काठी की जो मुकम्म