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Showing posts from August 23, 2009

प्राध्यापक के सर चढ़ा पत्रकारिता

कहा जाता है या एक आम धारणा सी बन गई है कि जिसे कहीं ठौर-ठिकाना नहीं मिलता वह पत्रकार का लबादा पहन लेता है। लेकिन ठीक इसके विपरीत है अनिल कुमार मानिकपुरी, की जिंदगी की चौखट के इर्द-गिर्द घूमती किस्सा गोई का ? अपनी प्राध्यापकी की मखमली लिबास पर पत्रकारिता या पत्रकार होने का पैबंद लगा इस शख्स ने जो कारनामें किये उसे देख यही लगता है, कि मानिकपुरी की हसरतों में बिना कुछ किये ही चांदी की फसलें काटने का शगल अब उनकी लत बन चुकी है। मानिकपुरी ने एक जगह अपने जीवन वृत्तांत में अध्यापन का अनुभव 10 वर्ष और पत्रकारिता का 3 वर्ष... दो दिशाओं में बटे पढ़ाई-लिखाई के घालमेल यही इंगित करता है कि मानिकपुरी ने तो शिक्षा ली और शिक्षा दी। इतना ही नहीं 24 घंटे में मानिकपुरी द्वारा अपने कार्यों या क्रियाकलाप की जो जानकारी दी गई है उसमें इस तथ्य का जिक्र किया गया है कि वे लोक-रंग और समाज सेवा भी करते हैं। यानि एक शख्स के रंग हजार और हजार हाथ से सब बटोरने में भी उन्हें महारथ है। दरअसल साजा के कुछ लोगों की राय मानिकपुरी के कद-काठी की जो मुकम्म

भजन: भोले घर बाजे बधाई -स्व. शांतिदेवी वर्मा

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ भोले घर बाजे बधाई स्व. शांति देवी वर्मा मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ... गौर मैया ने लालन जनमे, गणपति नाम धराई. भोले घर बाजे बधाई ... द्वारे बन्दनवार सजे हैं, कदली खम्ब लगाई. भोले घर बाजे बधाई ... हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें, मोतियन चौक पुराई. भोले घर बाजे बधाई ... स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं, चौमुख दिया जलाई. भोले घर बाजे बधाई ... लक्ष्मी जी पालना झुलावें, झूलें गणेश सुखदायी. भोले घर बाजे बधाई ... ******************

लो क सं घ र्ष !: सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची॥

यह कविता मह्जाल के श्री सुरेश चिपलूनकर साहब को सादर समर्पित असहाय गरीब मरैं भूखे , राशन कै काला बाजारी ॥ औ मौज करें प्रधान माफिया , कोटेदारों अधिकारी ॥ भष्टाचारी अपराधिन से , कइसे ई देश महान बची । सरकारी गुंडन से बंधू , बोलो कैसे जान बची ॥ जब गुंडे , अपराधी , हत्यारे , देश कै नेता बनी जई हैं । भष्टाचारी बेईमान घोटाले बाज विजेता बनी जई हैं ॥ फिर विधान मंडल औ संसद , कै कइसे सम्मान बची । सरकारी गुंडन से बंधू , बोलो कैसे जान बची ॥ अब देश के अन्दर महाराष्ट्र , यूपी - बिहार कै भेदभाव । ई धूर्त स्वार्थी नेता करते , देशवासीयों में दुराव ॥ कैसे फिर देश अखण्ड रही , औ कइसे राष्ट्रीय गान बची । सरकारी गुंडन से बंधू , बोलो कैसे जान बची ॥ रक्षा कै जिन पर भार वही , अब भक्षक औ बटमार भये । का होई देश कै भइया अब , जब चोरै पहरेदार भये ॥ कैसे बची अस्मिता जन की , कइसे आन औ मान बची । सरकारी गुंडन से बंधु , बोलो कैसे जान बची ॥ देश कै न्यायधीशौ शामिल

लो क सं घ र्ष !: यूपी एसटीएफ का एक और कारनामा

‘22-23 जून 07 की रात जलालुद्दीहन उर्फ बाबू भाई के साथ मो0 अली अकबर हुसैन, अजीजुर्रहमान और शेख मुख्तार चारबाग लखनऊ, रेलवे स्टेशन किसी आतंकी वारदात को अजांम देने आए। बाबू भाई तीनों को वहीं रुकने के लिए कह, कहीं चला गया। 23 की सुबह चाय पीने के लिए जब वे तीनों बाहर आए तो टीवी पर चल रहे समाचार कि बाबू भाई गिरफ्तार, की खबर सुनने के बाद वे घबरा गए। इस आपा-धापी में उन लोगों ने रायबरेली जा रही एक जीप से पीजीआई के पास पहुंचे जहां टूटी हुई कोठरी की पिछली दीवार के पास गड्ढा खोद उसमें डेटोनेटर और हैंड गे्रनेड गाड़ दिया।’ थर्ड क्लास की जासूसी फिल्मों से ली गयी इस पुलिसिया पटकथा से पिछले दिनों तब पर्दा हटा जब पता चला कि अजीजुर्रहमान को 22 जून 07 को तिलजला कोलकाता में डकैती करने की साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर अलीपुर न्यायालय में पेश किया गया था। जहां न्यायालय ने उसे 26 जून 07 तक की पुलिस रिमांड में दे दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि जब अजीजुर्रहमान पुलिस की हिरासत में था तो वह कैसे तकरीबन हजार किलो मीटर की दूरी तय करके लखनऊ आ सकता था। कहानी में आए इस नए मोड़ से यूपी एसटीएफ सकते में आ गयी है कि एक बा

लो क सं घ र्ष !: इर्ष्या से अधर सजाये....

यह स्वार्थ सिन्धु का गौरव अति पारावार प्रबल है । सर्वश्व समाहित इसमें , आतप मार्तंड सबल है ॥ मृदु भाषा का मुख मंडल , है अंहकार की दारा । सिंदूर - मोह - मद - चूनर , भुजपाश क्रोध की करा ॥ आश्वाशन आभा मंडित , इर्ष्या से अधर सजाये । पर द्रोही कंचन काया , सुख शान्ति जलाती जाए ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '