आरक्षण ने कर दिया, नष्ट स्नेह-सद्भाव। राजनीति विष-वल्लरी, फैलाती अलगाव।। प्रतिभाएं कुंठित हुईं, बिन अवसर बेचैन। सूरदास ज्यों फोड़ते, मृगनयनी के नैन॥ आरक्षण धृतराष्ट्र को, पांडव को वनवास। जब मिलता तब देश का , होता सत्यानास॥ जातिवाद के नाग का, दंश बन गया मौत। सती योग्यता को हुई, जाट तवायफ सौत॥ हीरा पड़ा बजार में, कांच हुआ अनमोल। जन-सेवा वृत्त-तप गया, सत्ता-सुख-लाख दोल। ***********