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Showing posts from February 9, 2010

लो क सं घ र्ष !: सब ख़ता वालिद की है, बेटे को पैदा क्यों किया

ऑस्ट्रेलिया में नस्लवाद युवा वेश तो विदेशी आचार - विचार स्टाइल फैशन का क्रेजी होता ही है , हमारे बुजुर्ग जो कभी अंग्रेजी माहौल में पले बढ़े थे अब भी उसी पाश्चात्य संस्कृति के दीवाने नजर आते है , लेकिन हम आखिर कब तक उस खोखली संस्कृति के गुन गाते रहेंगे , हमारे कुछ युवक बड़े अरमान से आस्ट्रेलिया गये थे , शिक्षित होने के लिए तथा अमीर बनने के लिये परन्तु दुखद है कि उन्हे गरीब बनने की घुट्टी पिलाई जा रही है। भारतीय छात्रों पर वहां जो नस्ली हमले काफी समय से हो रहे है , उसमें लगता है कि वहाँ की सरकार , अधिकारी तथा वहाँ की जनता का एक वर्ग पूरे तौर पर शामिल है , अजब हास्यास्पद है यह समाचार कि विक्टोरिया प्रान्त के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी साइमन आवेरलैंड ने छात्रों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी से बचते हुए यह सलाह दे डाली दी उनको हमलों से बचने के लिये अत्यधिक गरीब दिखना चाहिये , इस से ज्यादा आश्चर्यजनक यह बात है कि विक्टोरिया के प्रीमियर जान ब्रम्ब

चीनी कम

अमिताभ बच्चन और तब्बू की फिल्म थी 'चीनी कम'। मैने देखी नहीं। फिल्म देखने का शौक नहीं है सो नहीं देखी। उसकी कहानी भी पता नहीं। किंतु देश में चल रही सरकारी फिल्म 'चीनी कम' से जरूर दो चार हो रहा हूं। लगता है यह फिल्म ज्यादा लम्बी है। खत्म होने का नाम नहीं लेती। ऊपर से इसकी रील भी बढाई जा रही है। निर्माता देश की सरकार है तो निर्देशक हैं कृषि मंत्री शरद पवार। आपको बता दूं कि इस फिल्म के डायलाग गज़ब के हैं। शरद पवार खेमे के एक अखबार 'राष्ट्रवादी' में प्रकाशित हुए हैं- ' चीनी महंगी हो गई है तो चिल्लाते क्यों हो, चीनी कम खाओ, कम चीनी खाने से कोई मरता नहीं है।' है न जबरदस्त डायलाग। भारत की जनता खूब शक्कर खाती है। उसे इससे डायबटिज़ न हो जाये इसके लिये चिंतित है निर्देशक। फिल्म के साथ साथ मानवधर्म भी तो कुछ होता है। सरकार उपाय बताती है। अरहर की दाल महंगी है इसलिये पीली मटर की दाल खाओ। यानी आप दुआ कर सकते हो कि कहीं कपडे और अधिक महंगे न हो जाये वरना सरकार कहेगी नंगा घूमो। शायद इसकी नौबत पर भी सरकार का ध्यान है। वो सोच रही है कि फिल्म में आजकल अंग प्रदर्शन भी होता है,