किसी ने कहा था की गैंग्स ऑफ वासेपुर-2 में परपेंडीकूलर की कोई जरुरत नहीं थी लेकिन मुझे यह किरदार सबसे ख़ास लगा,मुझे याद नहीं आता जब कोई इतनी मासूमियत से इतना खतरनाक साबित हुआ हो ।जो इतनी मासूमियत बताता हो की उसके बड़े भाई का नाम फैसल खान है वो दूकान लूटने आया है। इसलिए घर आते आते यह किरदार कुछ ख़ास बनकर याद रह गया। नवाजुद्दीन सिद्दीकी,पहले पहल जितने आशिक मिजाज नजर आते है,समय निकलते निकलते उतने ही घातक होते जाते है,और बासेपुर की कहानी जिस तरह से सरदार खान और रामाधीर सिंह की लड़ाई की भूमि ना रहते,ऐसे लोगों की कहानी बन जाती है जो फैज़ल की तरह बासेपुर का सरताज बनना चाहते है । गैंग्स ऑफ वासेपुर-1 और गैंग्स ऑफ वासेपुर-2 दोनों देखते समय मन में यह सवाल जरुर कौंधता रहा की यशपाल शर्मा जैसे अभिनेता के लिए गैंग्स ऑफ वासेपुर में क्या कोई मजबूत रोल नहीं था ? यशपाल जी की महानता मुझे उस रोल में नजर आयी,जहा मेरे हिसाब से उन्हें बिलकुल भी नहीं होना चाहिए था । पीयूष मिश्रा जी के बिना भी काम लिया जा सकता था लेकिन उन्हें फिल्म में खुद के बुजुर्गों की तरह रखा जाना भी जरुरी था क्योंकि अ