हिंदी के युवा लेखक गौरव सोलंकी को साहित्यिक संस्था भारतीठ ज्ञानपीठ ने पिछले साल 'नवलेखन पुरस्कार' देने की घोषणा की थी. हाल ही में गौरव ने यह पुरस्कार ठुकरा दिया है और अपनी दो किताबों का प्रकाशन अधिकार भी वापस ले लिया है. भारतीय ज्ञानपीठ को लिखा गौरव का वह बेबाक पत्र जिसमें उन्होंने पुरस्कार को सम्मान की बजाय अपमान बताते हुए इसे वापस करने की वजहें बताई हैं अपने पत्र में गौरव ने ज्ञानपीठ से यह आग्रह भी किया है कि वह खुद को कुछ लोगों की संकीर्ण राजनीति का गढ़ न बनने दे और अपनी प्रतिष्ठा बचाए. आदरणीय ...... , भारतीय ज्ञानपीठ खाली स्थान इसलिए कि मैं नहीं जानता कि भारतीय ज्ञानपीठ में इतना ज़िम्मेदार कौन है जिसे पत्र में सम्बोधित किया जा सके और जो जवाब देने की ज़हमत उठाए. पिछले तीन महीनों में मैंने इस खाली स्थान में कई बार निदेशक श्री रवीन्द्र कालिया का नाम भी लिखा और ट्रस्टी श्री आलोक जैन का भी, लेकिन नतीजा वही. ढाक का एक भी पात नहीं. मेरे यहां सन्नाटा और शायद आपके यहां अट्टहास. खैर, कहानी यह जो आपसे बेहतर कौन जानता होगा लेकिन फिर भी दोहरा रहा हूं ताकि सनद रहे.