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Showing posts from May 12, 2012

ज्ञानपीठ अपमान !

हिंदी के युवा लेखक गौरव सोलंकी को साहित्‍यिक संस्‍था भारतीठ ज्ञानपीठ ने पिछले साल 'नवलेखन पुरस्कार' देने की घोषणा की थी. हाल ही में गौरव ने यह पुरस्कार ठुकरा दिया है और अपनी दो किताबों का प्रकाशन अधिकार भी वापस ले लिया है. भारतीय ज्ञानपीठ को लिखा गौरव का वह बेबाक पत्र जिसमें उन्होंने पुरस्कार को सम्मान की बजाय अपमान बताते हुए इसे वापस करने की वजहें बताई हैं अपने पत्र में गौरव ने ज्ञानपीठ से यह आग्रह भी किया है कि वह खुद को कुछ लोगों की संकीर्ण राजनीति का गढ़ न बनने दे और अपनी प्रतिष्ठा बचाए. आदरणीय ...... , भारतीय ज्ञानपीठ खाली स्थान इसलिए कि मैं नहीं जानता कि भारतीय ज्ञानपीठ में इतना ज़िम्मेदार कौन है जिसे पत्र में सम्बोधित किया जा सके और जो जवाब देने की ज़हमत उठाए. पिछले तीन महीनों में मैंने इस खाली स्थान में कई बार निदेशक श्री रवीन्द्र कालिया का नाम भी लिखा और ट्रस्टी श्री आलोक जैन का भी, लेकिन नतीजा वही. ढाक का एक भी पात नहीं. मेरे यहां सन्नाटा और शायद आपके यहां अट्टहास.  खैर, कहानी यह जो आपसे बेहतर कौन जानता होगा लेकिन फिर भी दोहरा रहा हूं ताकि सनद रहे.

हिंदी सिनेमा- 100 साल :इतिहास रचती यह 13 फ़िल्में।

जरा याद कीजिए ‘पड़ोसन’फिल्म का वह सीन जिसमें गुरू उर्फ किशोर कुमार, सुनील दत्त को गाना सिखाने की कोशिश करते हैं। या, ‘प्यार किए जा’ का वह क्लासिकल सीन जिसमें महमूद, ओमप्रकाश को अपनी फिल्म की कहानी सुनाते हैं। ‘जाने भी दो यारों’ के ओमपुरी हों या गोलमाल के रामप्रसाद-लक्ष्मण प्रसाद। इन बातों को पढ़ते-पढ़ते ही आपके चेहरे पर हंसी खिल आई होंगी। कॉमेडी फिल्मों की तासीर ही कुछ ऐसी होती है। भारतीय सिनेमा के सौ साल के इतिहास में एक से बढ़कर एक फिल्में बनीं। एक्शन, रोमांस, हॉरर या कॉमेडी। लोग कभी सेल्युलॉयड के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाए। पीढ़ी दर पीढ़ी इसका नशा चढ़ता गया। हम हिंदी सिनेमा के इन्हीं विषयों पर एक खास सीरिज़ लेकर आए हैं, जिसकी शुरूआत कर रहे हैं हम कॉमेडी फिल्मों से। हमने एक्सपर्ट्स की राय और सर्वे के आधार पर 13 सबसे बेहतरीन कॉमेडी फिल्में चुनी हैं। इनकी खासियत यह है कि सभी फिल्म अपने जमाने में ट्रेंडसेटर रहीं। हम बिल्कुल यह दावा नहीं करते कि यह सूची अंतिम है। आप अपनी मर्जी से इसमें फिल्में जोड़-घटा सकते हैं। इस बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में लिखकर हमें बताएं।  इन फिल

भाग बोस डी के आमिर खान !

मुझे अब भी बचपन में पढ़े गए अखबारों के बीच के पन्नों पर छपे मेरी स्टोवस  क्लिनिक के वो विज्ञापन याद है जिनमे सुरक्षित गर्भपात के दावे किये जाते थे |मैंने आमिर खान का “सत्यमेव जयते भी देखा है और उनकी “देल्ही बेली भी देखी है |जिसमे हीरो बेशर्मी से “इसने मेरा चूसा है और मैंने इसकी ली है  “जैसे जुमले इस्तेमाल करता नजर आता है |आमिर खान इसी फिल्म में हमारे यहाँ बनारस में दी जाने वाली एक गाली  को  सीधे न कहकर उसे बोस डी के कहकर जनता का मनोरंजन करते हैं ,मनोरंजन उनके इस नए धारावहिक में भी हैं |दरअसल टेलीविजन ने हिन्दुस्तान में आंसुओं  को भी बाजार की चीज बना दिया है |किसी रियल्टी शो में डांस बाहर हो जाने के बाद रो रहे प्रतियोगी के आंसू हो ,चाहे जिंदगी लाइव की एंकर ऋचा अनिरुद्ध के आंसू हो या फिर आमिर खान के आंसू मैं इनमे कोई अंतर नहीं मानता |जितने आंसू ,उतनी टीआरपी ,उतनी बिकवाली |ये वो बाजार है जिसमे थका हार आदमी समय ,समाज और सरोकारों से जुडी बातों के लिए भी नायकों की तलाश करता हैं |भ्रूण हत्या रोकने के लिए आमिर खान ,की |कंडोम पहनने के लिए सनी लियोन की , साबुन के इस्तेमाल को जानने के लिए कर