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Showing posts from September 18, 2009

नवगीत: लोकतंत्र के शहंशाह की जय... आचार्य संजीव 'सलिल'

नवगीत: लोकतंत्र के शहंशाह की जय... * राजे-प्यादे कभी हुए थे. निज सुख में नित लीन मुए थे. करवट बदले समय मिटे सब- तनिक नहीं संशय. कोपतंत्र के शहंशाह की जय.... * महाकाल ने करवट बदली. गायब असली, आये नकली. सिक्के खरे नहीं हैं बाकि- खोटे हैं निर्भय. लोभतंत्र के शहंशाह की जय... * जन-मत कुचल माँगते जन-मत. मन-मथ,तन-मथ नाचें मन्मथ. लोभ, हवस, स्वार्थ-सुख हावी करुनाकर निर्दय. शोकतंत्र के शहंशाह की जय.... ******