Skip to main content

Posts

Showing posts from May 11, 2009

ख़तरनाक 'सेक्सुअल टेरेरिस्ट' हैं खुशवंत सिंह !

अतुल अग्रवाल अतुल अग्रवाल और खुशवंत सिंह का बहुत गहरा नाता होता जा रहा है,जहा एक जाना जाता है फालतू की बकबास और अश्लीलता के लिए तो दूसरा जाना जाता है उसके विरोध के लिए.जी हाँ हम बात कर रहे है अतुल अग्रवाल जी की जिन्होंने खुशवंत सिंह के गैर सामाजिक लेखों का एक सटीक शैली में विरोध किया था..तो आपके सामने एक बार फिर हाजिर है उसी सटीकता के साथ लिखा गया एक और लेख इस मुद्दे पर आप अपनी राय दे सकते है की क्या सच में खुशवंत सिंह कुछ अच्छा काम कर रहा है या फिर अतुल अग्रवाल का विरोध करना नाजायज है?आकी राय को प्रकाशित किया जायेगा! मशहूर लेखक खुशवंत सिंह सुधर नहीं सकते। अब मुझे इसका यकीन हो चला है। कहते हैं उम्र के आखिरी पड़ाव में इंसान भगवान को याद करता है और पूजा-पाठ तथा ईश-भक्ति कर अपने पापों के लिए क्षमा मांगता है ताकि उसका परलोक सुधर सके। लेकिन यहां तो उल्टी ही गंगा बह रही है। क्षमा मांगने की तो छोड़िए जनाब, पाप पर पाप किए जाने की लत लगातार बदतर होती जा रही है। दिन-ब-दिन वयोवृद्ध लेखक की ठरक नई-नई हदें बनाती और लांघती जा रही है। ऐसा लग रहा है कि 93 साल की इस कंपकंपाती उम्र में खुशवंत सिंह साहब

Loksangharsha: दूरियां घट सके वो मिलन कीजिये...

दूर के श्यामघन कुछ जतन कीजिये । दूरियां घट सके वो मिलन कीजिये ॥ आह मेरी स्वयं में मिला लीजिये । अश्रु के सिन्धु से जीवनी लीजिये । पीर की बांसुरी पर थिरक जाइये - पात तृन डालियों को हिला दीजिये । तय इतना तृप्ति आत्मा में मेरी - शान्ति का सार अभिनव ग्रहण कीजिये ॥ हो गए युग कई तन भिगोते हुए । दौड़ते - दौड़ते कुछ संजोते हुए । तब फुहारों ने मन को छुआ तक नही - प्यासी बदरी से बादर लजाते हुए । घोर गर्जन का संताप मत दीजिये - प्रीत परतीत सुंदर सुमन कीजिये ॥ जग समझता सही आप का मर्म है । दान देना सदा आप का कर्म है । बिज़लियो को संभालना सिखा दीजिये - घोसलों को बचाना बड़ा धर्म है । जग में हर और जीवन सजाते हुए - विश्व के पाप का कुछ गम न कीजिये ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '' राही ''

सईद मलीहाबादी, अभिज्ञात और स्वर्ण ओबराय को कौमी एकता अवार्ड

कोलकाताः आल इंडिया कौमी एकता मंच की ओर से 9 मई शनिवार की देर शाम स्थानीय कला मंदिर सभागार में पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उर्दू दैनिक आज़ाद हिन्द के सम्पादक सईद मलीहाबादी, साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए अभिज्ञात और कैंसर चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में योगदान के लिए इंडियन कैंसर सोसाइटी की चेयरपर्सन स्वर्ण ओबराय को कौमी एकता अवार्ड प्रदान किया गया। हालांकि सईद कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाये। अभिज्ञात को प्रख्यात उर्दू साहित्यकार डॉ.लुत्फुर रहमान और ओबराय को ओएनजीसी-राजामुंदरी के कार्यकारी निदेशक आफताब अहमद खान ने स्मृति फलक, मानपत्र, शाल व गुलदस्ता प्रदान कर सम्मानित किया। स्वतंत्रता सेनानी सुरेश चंद्र मैत्र और गुरुदास गाइन को भी इस समारोह में संवर्ध्दना दी गयी। इस अवसर पर आयोजित अखिल भारतीय मुशायरा और कवि सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आये नामचीन रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से लोगों का मन मोह लिया जिसमें डॉ.कलीम कैसर (बलरामपुर), डॉ.सुरेश (लखनऊ), दिनेश दर्पण (इंदौर), तश्ना आज़मी (आज़मगढ़), सुनील कुमार तंग (सिवान), श्यामा सिंह सबा (रायबरेली), ताकीर ग़ज़ल, शिखा

Loksangharsha: यह युद्घ पूँजीवाद के ख़िलाफ़ है....

''...... हम यह कहना चाहते है की युद्घ छिडा हुआ है और यह युद्घ तब तक चलता रहेगा , जब तक की शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार जमाये रखेंगे । चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति , अंग्रेज शासक या सर्वथा भारतीय ही हो । उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर राखी है । यदि शुद्ध भारतीय पूंजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा तब इस स्तिथि में कोई अन्तर नही पड़ता । यदि आप की सरकार कुछ नेताओं या भारतीय समाज के कुछ मुखियों पर प्रभाव ज़माने में सफल हो जायें ,कुछ सुविधाएं मिल जायें या समझौता हो जायें ,उससे स्तिथि नही बदल सकती। जनता पर इन सब बातो का प्रभाव बहुत कम पड़ता है । इस बात की भी हमे चिंता नही है कि एक बार फिर युवको को धोखा दिया गया है और इस बात का भी भय नही है कि हमारे राजनितिक नेता पथभ्रष्ट हो गए है और वे समझौते कि बात चीत में इन निरपराध ,बेघर और निराश्रित बलिदानियों को भूल गए है जिन्हें क्रन्तिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता है। हमारे राजनीतिक नेता उन्हें अपना शत्रु समझते है ,क्योंकि उनके