Skip to main content

Posts

Showing posts from April 14, 2009

टिप्पणीकारों से अनुरोध सार्थक बहस हो

संजय जी और तमाम ब्लॉगर मित्रों , मैं लेखन थोथी प्रशंसा पाने के लिए नहीं करता हूँ । मेरे लेखन का उद्देश्य सार्थक मुद्दों पर बहस के जरिये जागरूकता पैदा करना है । मैं कोई व्यावसायिक पत्रकार नहीं बल्कि राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ता हूँ और पत्रकारिता को क्रांति का हथियार मानता हूँ । इतना सब कहने का मतलब कि पोस्ट पर टिप्पणी करते समय कृपा कर सम्बंधित मुद्दे का ध्यान रखें और केवल दिखावटी तारीफ न करें । मसलन , कुछ टिप्पणी जैसे - अच्छा लिखा है, बहुत अच्छा लिखा है, बढ़िया लेखन , शुभकामनाये , आदि । इनसे ऐसा लगता है कि बस बगैर पढ़े कुछ भी लिख दो और चलते बनो । जरा मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे . --

Loksangharsha: चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।

चाँद की चांदनी कब अकेले मिली। चाँद की चांदनी कब अकेले मिली। स्याह रातों के फन सी वो फैली मिली॥ फूल रंगीन ही दे दिया खून तक- फ़िर भी मुस्कान झूठी विषैली मिली॥ यम की आँखों से आंसू निकलने लगे - आदमी बाँटता मौत कैसी मिली॥ लाश का हर कफ़न साफ़ सुथरा मिला- जिंदगी बद से बदतर औ मैली मिली॥ ------------- डॉक्टर यशवीर सिंह चन्देल 'राही'
क्या देश में एक नेहरु खानदान ही नेता जनने की क्षमता रखता हैं ? कल बस में बात-चित के दौरान एक यात्री ने कुछ प्रश्न खड़े किए,उसने जो कुछ कहा हु -बहू नीचे लिख रहा हूँ । " वर्तमान राजनीति के तीन तथाकथित युवा प्रतिनिधि राहुल , प्रियंका और वरुण ,सब के सब गाँधी !कांग्रेस हो या भाजपा गाँधी परिवार हावी है ! क्या देश में एक नेहरु खानदान ही नेता जनने की क्षमता रखता हैं ? कितना बड़ा दुर्भाग्य है हमारा , लोकतान्त्रिक देश में राजवंश की स्थिति बन गई है ! क्या भाजपा में वरुण गाँधी को बढावा देकर वंशवाद को मजबूत नहीं किया जा रहा है ? क्या " party with difference " का नारा देने वाली भाजपा अपने मूल्यों और आदर्शों से भाग नही रही ? सत्ता पाने के लिए देश के लोकतंत्र को नेहरू परिवार के हवाले कर देना क्या उचित है ? पता नही , जनता क्या सोचती है ? न जाने क्यूँ कुछ युवा राहुल और वरुण के पीछे पागल हैं ? जो भी हो कम से कम भाजपा को परिवारवाद और वंशवाद से बचना चाहिए था !" मैंने तो काफी कुछ सोचा । आप भी सोचिये और बताइए क्या इस देश की आने वाली राजनीति में नेहरू परिवार ही एक मात्र विकल्प तो नही ह

क्या-क्या देखें बताएगा संग्रहालय

इं दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में क्या-क्या मौजूद है और पर्यटक अपने पास उपलब्ध समय में क्या- क्या देख सकेंगे यह प्लानिंग पर्यटकों के लिए आसान होगी इंटरप्रिटेशन सेंटर के माध्यम से। सेंटर का निर्माण संग्रहालय के मुख्य द्वार पर कराया जा रहा है। सेंटर प्रारंभ होने के पश्चात पर्यटकों को संग्रहालय घूमने में आसानी होगी। सेंटर में संग्रहालय की विभिन्न वीथिकाओं के मॉडल भी उपलब्ध कराए जाएंगे। सेंटर 2-3 महीने में तैयार हो जाएगा। आने वाले समय में संग्रहालय में और भी कई सुविधाओं में इजाफा किया जाएगा। क्या होगा सेंटर में सेंटर में संग्रहालय में मौजूद सभी स्थलों व वीथिकाओं की जानकारी मौजूद होगी। कौन सी वीथिका कहां है, इसे देखने में कितना समय लगेगा, इसमें क्या खास है, कहां पहले जाना है आदि पर्यटक पहले ही जान सकेंगे। मुख्य द्वार पर बनने वाले इस सेंटर से मिली जानकारी के आधार पर पर्यटक अपने पास उपलब्ध समय के अनुसार तय कर लेंगे कि उन्हें कहां-कहां घूमना है। संग्रहालय से संबंधित सभी मूलभूत जानकारियां इस सेंटर में मिल जाएंगी। ट्रांसपोर्ट की व्यवस्थासंग्रहालय द्वारा भोपाल आने वाली खास ट्रेनों से भोप

A STUPID COMMON MAN और जूता

बिहार के बक्सर संसदीय क्षेत्र का एक गाँव जहाँ मनमोहन और सुशासन बाबु के दावों की कलई खुलती नज़र आती है । बिजली -पानी-सड़क -शिक्षा-रोजगार जैसी आधारभूत जरूरते अधूरी है । बार-बार वादे ! हर बार नए -नए नारे ! आख़िर वादाखिलाफी से तंग आकर उनका गुस्स्सा फूट पड़ा । लोगों से वोट मांगने पहुंचे बाहुबली ददन पहलवान का स्वागत मतदाताओं ने जूते-चप्पलो से किया । कल तक छाती तान कर वोट मांगने वाले बाहुबली ददन भी विरोध के इस ब्रह्मास्त्र से सहमे नजर आए । जी हाँ ," जूता " आज पुरे विश्व में विरोध का प्रतिक बन गया है । भारत में अरुंधती राय पर "युवा "(yuva) ने चप्पल क्या फेंका , नेताओ को जुतियाने का सिलसिला ही चल पड़ा । चिदंबरम के बाद नवीन जिंदल पर जूता चलते ही सारा चुनावी माहौल जुतामय हो गया । हर रोज कहीं न कहीं नेताओ की चुनावी सभा में जूतों की बारिश हो रही है । 'विरोध' लोकतंत्र के लिए प्राणवायु का काम करता है । विरोध को अगर सम्मान न मिले तो लोकतंत्र को मृत समझा जाना चाहिए । हमारे यहाँ तो सम्मान की यह भावना कब की दम तोड़ चुकी है । विरोध के सारे संस्थानों को हाइजैक किया जा चुका है। पटना

मिलिए एक ब्लागर राष्ट्रपति से

बालेन्दु दाधीच भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश और ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के व्यक्तित्व और विचारों में जमीन आसमान का फर्क हो, उनके बीच एक दिलचस्प समानता है और वह यह कि दोनों ही तकनीक के प्रेमी हैं और दुनिया के लोगों तक सीधे अपनी बात पहुंचाने के लिए अपने निजी ब्लॉग का संचालन करते हैं। बुश तो चूंकि अमेरिका जैसे आधुनिक, तकनीक-समृद्ध और पूंजीवादी राष्ट के प्रमुख हैं इसलिए उनकी ब्लॉगिंग कोई बहुत बड़ी खबर नहीं है। लेकिन महमूद अहमदीनेजाद का ईरान तो सूचनाएं जाहिर करने से ज्यादा उन्हें छिपाकर रखने पर जर देता है। वहां अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया की स्वतंत्रता की तो बात ही छोड़िए, सामान्य नागरिक अधिकार तक सरकारी रहमोकरम पर निर्भर करते हैं। वहां आधुनिकता को 'सांस्कृतिक हमले' और कट्टरपंथ को आदर्श जीवन-मूल्य के रूप में प्रचारित किया जाता है। ऐसे देश के राष्ट्रपति का ब्लॉग जैसे बुनियादी रूप से पारदर्शी, अभिव्यक्तिमूलक और लोकतांत्रिक माध्यम में दिलचस्पी रखना हैरानी की बात है। लेकिन यह सच है। महमूद अहमदीनेजाद आखिरकार एक राजनेता हैं और राजनेता हर उपलब्ध मंच का अपनी जरूरत के अनुसा

आईपीएल फ्लैशबैकः अंतिम ओवर का रोमांच

01 जून 2008 आईपीएल सीजन 1 का 59वां और फाइनल मैच, राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच खेला गया जिसमें राजस्थान ने चेन्नई को तीन विकेट से हरा दिया। यू तो पूरे आईपीएल सीजन में क्रिकेट का जादू सिर चढ़कर बोला, लेकिन टूर्नामेंट के फाइनल ने तो रोमांच की सारी हदें पार कर दीं। मैच के अंतिम ओवर और अंतिम गेंद पर आए नतीजे ने खिलाड़ियों के साथ ही दर्शकों के दिलों की धड़कन भी बढ़ा दी थीं। जब अंतिम ओवर में चाहिए थे 8 रन फाइनल मुकाबला कांटे का था। चेन्नई सुपर किंग्स ने 163 रनों का स्कोर किया। राजस्थान रॉयल्स ने अच्छी शुरुआत की मगर नतीजा अंतिम बॉल पर निकला जब तनवीर ने आखिरी बॉल पर रन चुराकर टीम को आईपीएल सीजन-1 का चैम्पियन बना दिया। बालाजी की एक गलत बॉल ने चेन्नई से मैच छीन लिया। अंतिम ओवर का रोमांच अंतिम ओवर में राजस्थान को जीत के लिए 6 बॉल पर 8 रन चाहिए थे। क्रीज पर थे कप्तान शेन वॉर्न और सोहल तनवीर और गेंद थी तेज रफ्तार गेंदबाज लक्ष्मीपति बालाजी के हाथ... पहली गेंदः तनवीर ने तेजी से एक रन चुराया। अब राजस्थान को जीत के लिए 7 रन चाहिए थे। दूसरी गेंदः स्ट्राइक पर थे शेन वॉर्न। बालाजी की तेज

औरों की तरह मैं भी हलकान रहा.....!!

पता नहीं क्यूँ उसके वादे पर करार रहा वो झूठा था पर उसपे मुझे ऐतबार रहा !! दिन-भर मेहनत ने मुझे दम ना लेने दिया और फिर रात भर दर्द मुझसे बेहाल रहा !! अजीब यह कि जो खेलता था,अमीर था और जो मेहनत-कश था,वो बदहाल रहा !! सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !! कई बार सोचा कि मैं ही अपना मुहं खोलूं और लोगों की तरह मैं भी हलकान रहा !!