Skip to main content

Posts

Showing posts from October 9, 2009

लो क सं घ र्ष !: अब क्या होगा ?

हमारी न्याय व्यवस्था पर भारतीय जनमानस का अटूट आस्था और विश्वाश था कि यह एक स्वतन्त्र , निष्पक्ष , और भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था है किंतु इस बीच कुछ घटनाएँ प्रकाश में आई है जिससे जनता कि आस्था और विश्वाश को भारी धक्का लगा है । जिसमें प्रमुख रूप से यह है कि अभी कुछ दिन पूर्व उडीसा उच्च न्यायलय के न्यायधीश माननीय ललित कुमार मिश्र को जिला जज कि परीक्षा में कुछ उम्मीदवारों के नम्बर अपने हाथ से बढ़ाने का मामला प्रकाश में आया और उनको हटाने कि सिपरिश उडीसा उच्च न्यायलय के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश आई . ऍम . कुद्दुशी ने हटाने कि सिफारिश कि है माननीय मुख्य न्यायधीश के . जी बालाकृष्णन ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सोमित्र सेन पर महाभियोग चलाने की सिफारिश की है । दिसम्बर 2008 में प्रधान न्यायधीश द्वारा गठित समिति ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति निर्मल यादव । सितम्बर 2009 में सुप्रीम कोर्ट कि कोलेजियम समिति ने कर्णाटक हाई

एक बैंक माँ के दूध का

एक बैंक माँ के दूध का माँ का दूध पिया है तो सामने आ !यह जाना पहचाना सा फ़िल्मी डायलोग माँ के दूध की महत्ता कितनी सादगी से बया कर देता है !बच्चे के जन्म के कुछ ही घंटो में माँ का आंचल दूध से भीगने लगता है !उन बच्चो की किस्मत में कुदरत का यह अनुपम उपहार नही होता जिनकी माये किसी बीमारी या अक्षमता के कारन उन्हें दूध नही पिला पाती! ऐसे ही बच्चो के लिए मुंबई के लोकमान्य तिलक मेडिकल कोलेज की तत्कालीन डीन डॉक्टर अर्मिदा फर्नान्डीज़ ने जनवरी १९९० में अपनी तरह का देश का पहला मानव दूध बैंक खोला ! विनम्रता,सादगी व गरिमा की जीती जगती मिशाल डॉ० अर्मिदा कर्नाटक की निवासी है !उनकी सिक्षा भी वही पूरी हुई !वो कर्नाटक के हुबली कॉलेज से डॉक्टरी की शिक्षा प्राप्त है !डॉ अर्मिदा पढाई के बाद अपने घर धारवाड़ वापस जाना चाहती थी !लेकिन तभी उनकी मुलाकात उनके सहपाठी डॉ फर्नान्डीज़ से हो गयी डॉ फर्नान्डीज़ ने उन्हें अपनी जीवन संगिनी बनने व मिलजुल कर मुंबई के जरूरतमंद लोगो के लिए काम करने के लिए राजी कर लिया !१९९० में उन्होंने देश का पहला व एकमात्र दूध बैंक शुरू किया !उन्हें लोगो को यह समझने में

मत देखो

बाकी है बोतल में अभी भी शराब,महताब मत देखो उसके और खुद के दरमियां का हिसाब मत देखो सफ़र जिंदगी का तय करना है तुमको अकेले ही किस –किस का मिला न साथ,पलट कर मत देखो जहाँ फ़िसलती जा रही है, जीवन से जिंदगी रेत – सी फ़कीरे इश्क की, जात मत देखो बेरहम जमाना जिल्लत के सिवा तुमको दिया ही क्या और तुमसे लिया क्या, इतिहास मत देखो बदलना है तुमको कर्मों से तकदीर अपनी तनहा बैठकर अकेले में, लकीरें हाथ मत देखो आग तो दिल में लिए सभी घूमते हैं, किसने लगाई यह आग, कौन हुआ खाक, मत देखो शामे गम है,कुछ उस निगाहें–नाज की बात, करो ख्वाहिशें होंगी दिल की पूरी, आश मत देखो समीर शाही

माई जब बुद्हाय गयी॥

माई जब बुद्हाय गयी॥ नाकन चना चबवाय दिही॥ गाय भैस बिकवाय दिही॥ खेतन म दाँत गदाय दिही॥ जब देखा लरिकन का डाटे॥ जैसे कटही कुकुर अस लागे॥ हमरेव डंडा लगवान दिही॥ पेड म बन्धवाय दिही॥ एक बगल के काकी आयी॥ दुल्हिन का धमकाय दिही॥ तू दुत्कारत बातू बूढा का॥ इहे उमर तोह्रिव होए॥ फ़िर गाँव गाँव कहत फिरबू॥ हमरव पतोह डंडा चट्काइश॥ तब कहे दुल्हनिया नन्कौना कय॥ बूढा हमरे पगलाय गयी॥ इही खातिर समझाईस तोहका॥ आगे कय कुछ बनाय लिया॥ बूढा का संग मिलाय लिया॥ उनहू कय गोद दबाय दिया॥ खुली आँख जब बुहार कय॥ बूढा का संग मिलाय लिही॥ नाकन चना चबवाय दिही॥ माई जब बुद्हाय गयी॥ नाकन चना चबवाय दिही॥