गीत संजीव 'सलिल' * वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * हम समझ ही नहीं पाए कौन क्या है? और तुमने यह न समझा मौन क्या है? साथ रहकर भी रहे क्यों दूर हरदम? कौन जाने हैं अजाने भाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * चाहकर भी तुम न हमको चाह पाए. दाहकर भी हम न तुमको दाह पाए. बाँह में थी बाँह लेकिन राह भूले- छिपे तन-मन में रहे अलगाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * अ-सुर-बेसुर से नहीं, किंचित शिकायत. स-सुर सुर की भुलाई है क्यों रवायत? नफासत से जहालत क्यों जीतती है? बगावत क्यों सह रही अभाव इतने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * खड़े हैं विषधर, चुनें तो क्यों चुनें हम? नींद गायब तो सपन कैसे बुनें हम? बेबसी में शीश निज अपना धुनें हम- भाव नभ पर, धरा पर बेभाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * साँझ सूरज-चंद्रमा सँग खेलती है. उषा रुसवाई, न कुछ कह झेलती है. हजारों तारे निशा के दिवाने है- 'सलिल' निर्मल पर पड़े प्रभाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... *************** Acharya