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Showing posts from March 23, 2010

नवगीत : घाव कितने?...... --संजीव 'सलिल'

गीत संजीव 'सलिल' * वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * हम समझ ही नहीं पाए कौन क्या है? और तुमने यह न समझा मौन क्या है? साथ रहकर भी रहे क्यों दूर हरदम? कौन जाने हैं अजाने भाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * चाहकर भी तुम न हमको चाह पाए. दाहकर भी हम न तुमको दाह पाए. बाँह में थी बाँह लेकिन राह भूले- छिपे तन-मन में रहे अलगाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * अ-सुर-बेसुर से नहीं, किंचित शिकायत. स-सुर सुर की भुलाई है क्यों रवायत? नफासत से जहालत क्यों जीतती है? बगावत क्यों सह रही अभाव इतने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * खड़े हैं विषधर, चुनें तो क्यों चुनें हम? नींद गायब तो सपन कैसे बुनें हम? बेबसी में शीश निज अपना धुनें हम- भाव नभ पर, धरा पर बेभाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... * साँझ सूरज-चंद्रमा सँग खेलती है. उषा रुसवाई, न कुछ कह झेलती है. हजारों तारे निशा के दिवाने है- 'सलिल' निर्मल पर पड़े प्रभाव कितने? वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?... *************** Acharya

लो क सं घ र्ष !: वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते

शहीद दिवस के अवसर पर विशेष जिस पर अपना सर्वस्व लुटाया, जिसके खातिर प्राण दिए थे। वीर भगत सिंह आज अगर, उस देश की तुम दुर्दशा देखते॥ आँख सजल तुम्हारी होती, प्राणों में कटु विष घुल जाता। पीड़ित जनता की दशा देखकर, ह्रदय विकल व्यथित हो जाता ॥ जहाँ देश के कर्णधार ही, लाशों पर रोटियाँ सेकते। वीर भगत सिंह आज अगर........ तुम जैसे वीर सपूतों ने, निज रक्त से जिसको सींचा था। यह देश तुम्हारे लिए स्वर्ग से सुन्दर एक बगीचा था॥ अपनी आँखों के समक्ष, तुम कैसे जलता इसे देखते । वीर भगत सिंह आज अगर........ जिस स्वाधीन देश का तुमने, देखा था सुन्दर सपना। फांसी के फंदे को चूमा था, करने को साकार कल्पना॥ उसी स्वतन्त्र देश के वासी, आज न्याय की भीख मांगते। वीर भगत सिंह आज अगर........ अपराधी, भ्रष्टों के आगे, असहाय दिख रहा न्यायतंत्र। धनपशु, दबंगों के समक्ष, दम तोड़ रहा है लोकतंत्र। जहाँ देश के रखवालों से, प्राण बचाते लोग घुमते॥ वीर भगत सिंह आज अगर........ साम्राज्यवाद का सिंहासन, भुजबल से तोड़ गिराया था देश के नव युवकों को तुमने, मुक्ति मार्ग दिखाया था॥ जो दीप जलाये थे तुमने, अन्याय की आंधी से बुझते। वी

होशियार ,, सरकार डांका डाल रही है...

जिस प्रकार से सरकार दामो की बढ़ोतरी कर रही है॥ दिन प्रतिदिन दाम बढ़ रहे है। उससे हमारे भारत के गरीबो का क्या होगा। उनके बच्चे कैसे रहेगे । जैसे सरकार दाम बढ़ने शुरू करने की योजना बनती है॥ उससे पहले दूकान दार दाम बढ़ा चुके होते है॥ क्या सरकार ने इतना दाम बढ़ा दिया है॥ कुछ जरुरी चीजे है ॥ केला :५० सेब:१०० माचिस: १.०० दूध: ३६.०० सिगरेट: ४ का एक सिगरेट छोटी गोल्ड ऐसे बहुत से चीजे है। क्या सरकार को यह पावंदी नहीं लगानी चाहिए जितने दाम है उससे ज्यादा लेने कर क्या होगा। लेकिन कैसे होगा। दुनिया चालू है॥ लोग और सरकार दोनों बेईमान है ॥ अब किसान के पास कुछ अधिक हो जाता है तो वह माटी के भाव भी नहीं बिकता है॥ पूर्वी उत्तर प्रदेश के आलू २ रूपये किलो बिक रही है॥ स्टोर में जगह नहीं है॥ अब किसान कितना खर्च किया होगा। कितना किसानो को घाटा आयेगा। य तो किसान मरेगा। य तो पागल हो जाएगा। ऐसे अनेको जगह ख़ास करके दिल्ली में गांजा॥ अफीम चरस खुले बिकते पुलिस को तो हफ्ते मिलते है॥ सरकार मस्त है॥ क्या होगा हमारे देश हे नेताओं य तो तुम देश की राजनीती छोड़ दो ॥ य तो सुधर जाओ नहीं तो॥ हमारा देश तवाह हो जाएगा। गरीब गरीब ही