सलीम अख्तर सिद्दीक़ी अब तक तो खाने पीने के सामान में मिलावट, सब्जियों में एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन लगाकर उन्हें रातों रात बढ़ाने, असली घी में चर्बी की मिलावट, सिंथेटिक दूध, सिंथेटिक मावा तथा नकली दवाईयां बनाने की खबरे आती थीं, लेकिन अब इससे भी आगे का काम हो रहा है। स्लाटर हाउसों में मरे हुए जानवरों को काट कर उनका मीट बाजार में बेचा जा रहा है। पैसों के लिए ईमान बेचने वालों ने आम आदमी का ईमान भी खराब करने की ठान ली है। हैरत की बात यह है कि पैसों के लिए ईमान बेचने वाले नास्तिक नहीं हैं, बल्कि धर्म कर्म में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले लोग हैं। खबर मेरठ की है। यहां का स्लाटर हाउस, जिसे आम बोल की भाषा में कमेला कहा जाता है, कई सालों से सुर्खियों में है। मेरठ भाजपा की राजनीति केवल कमेले तक सिमट कर रह गयी है। इसी मुद्दे पर जून के महीने में मेरठ तीन दिन का कर्फ्यू भी झेल चुका है। चौबीस सितम्बर को कमेले से सटी आशियाना कालोनी के लोग यह देखकर तब दंग रह गए, जब उन्होंने देखा कि एक अहाते में मरी हुई भैंसों को काटकर उनका मीट मैटाडोर में भरकर भेजा जा रहा है। कालोनी के हाजी इमरा