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Showing posts from June 25, 2009

मै हिन्दू हूँ

मै हिन्दू हूँ , मुझे गर्व है आदि सनातन धर्म का अनुयाई होने पर , मुझे गर्व है की मै विश्व की सबसे उदार , सहनशील और मात्रत्व भावः से विश्व बंधुत्व और हर प्राणी के हित की बात करने वाली इस महान सभ्यता का निवासी हूँ , और इस पर गर्व करते वक्त मुझे बिलकुल भी भय नहीं है कोई मुझे साम्प्रेदायिक कहै या संकुचित . मै हिन्दू हूँ , ताजुब होता है ना ,जब कोई इस धर्म को हिन्दू , सनातन , वैदिक या और किसी नाम से पुकारता है , यही से इसकी खूबसूरती चालु होती है , किसी भी धार्मिक पुस्तक मे हिन्दू शब्द भी नहीं है , फिर भी ये धर्म हिन्दू के नाम से जाना जाता है , कभी सिन्धु के पार रहने वालो को हिन्दू कहा जाता था और कभी क्या , कुछ सालो पहले तक हर भारतवासी को हिन्दू के नाम से ही जाना जाता था , ये वो परंपरा है जिस का नामकरण इस भूभाग से हुआ है , ये वो धर्म है जहाँ धर्म का अर्थ कर्त्तव्य पालन से है . मै जानता और मानता भी हूँ की मेरे धर्म मे काफी बूराइया भी प्रवेश कर गई है , फिर भी मै गर्व करता हूँ की मै हिन्दू हूँ , मेरा धर्म अपनी बुराइयों पर चर्चा करने उन पर प्रश्न उठाने और उन्हे दूर करने का प्रयास करने की भी इजाजत

लो क सं घ र्ष !: बढती महंगाई और घटी दर ,यह देखो सरकारों का खेल

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पेड़ की पुकार,

पेड़ की पुकार, रो रो कर पुकार रहा हूँ । हमें जमी से मत उखाडो ॥ रक्त श्रावसे भीग गया हूँ॥ हमें कुल्हाडी अब मत मारो॥ आसमा के बादल से पूछो कैसे मुझको पाला है, हर मौसम ने सींचा मुझको मिटटी करकट झाडा है, उस मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है, कोमल हाथो से पाने थपकी दे के सुलाया है, अब तुम लोगो भी प्रेम बढ़ा कर पेड़ का आँगन कूद सजा लो॥ इस धरा की सुंदर छाया हम पदों से बनी हुयी है,, प्यारी मंद हवाए अमृत बन कर चली हुयी है॥ हामी से नाता है जन जन का जो इस धरा पर आयेगे॥ हामी से रिश्ता है पग पग पर जो यहाँ से जायेगे॥ शाखाए आंधी तूफानों के टूटी ठूठ आग में मत डालो रो रो कर पुकार रहा हूँ............... हामी कराते सब प्राणी को अम्बर रस का पान॥ हामी से बनती कितनी औषधि नई पिन्हाती जान॥ कितने फल फूल है देते फ़िर भी तुम अनजान बने हो,, लिए कुल्हाडी टाक रहे हो उत्तर दो क्यो बेजान खड़े हो॥ हामी से सुंदर मौसम बँटा बुरी नज़र हमपे मत डालो॥ रो रो कर पुकार रहा हूँ................

पेड़ की पुकार,

पेड़ की पुकार, रो रो कर पुकार रहा हूँ । हमें जमी से मत उखाडो ॥ रक्त श्रावसे भीग गया हूँ॥ हमें कुल्हाडी अब मत मारो॥ आसमा के बादल से पूछो कैसे मुझको पाला है, हर मौसम ने सींचा मुझको मिटटी करकट झाडा है, उस मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है, कोमल हाथो से पाने थपकी दे के सुलाया है, अब तुम लोगो भी प्रेम बढ़ा कर पेड़ का आँगन कूद सजा लो॥ इस धरा की सुंदर छाया हम पदों से बनी हुयी है,, प्यारी मंद हवाए अमृत बन कर चली हुयी है॥ हामी से नाता है जन जन का जो इस धरा पर आयेगे॥ हामी से रिश्ता है पग पग पर जो यहाँ से जायेगे॥ शाखाए आंधी तूफानों के टूटी ठूठ आग में मत डालो रो रो कर पुकार रहा हूँ............... हामी कराते सब प्राणी को अम्बर रस का पान॥ हामी से बनती कितनी औषधि नई पिन्हाती जान॥ कितने फल फूल है देते फ़िर भी तुम अनजान बने हो,, लिए कुल्हाडी टाक रहे हो उत्तर दो क्यो बेजान खड़े हो॥ हामी से सुंदर मौसम बँटा बुरी नज़र हमपे मत डालो॥ रो रो कर पुकार रहा हूँ................

पेड़ की पुकार,

पेड़ की पुकार, रो रो कर पुकार रहा हूँ । हमें जमी से मत उखाडो ॥ रक्त श्रावसे भीग गया हूँ॥ हमें कुल्हाडी अब मत मारो॥ आसमा के बादल से पूछो कैसे मुझको पाला है, हर मौसम ने सींचा मुझको मिटटी करकट झाडा है, उस मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है, कोमल हाथो से पाने थपकी दे के सुलाया है, अब तुम लोगो भी प्रेम बढ़ा कर पेड़ का आँगन कूद सजा लो॥ इस धरा की सुंदर छाया हम पदों से बनी हुयी है,, प्यारी मंद हवाए अमृत बन कर चली हुयी है॥ हामी से नाता है जन जन का जो इस धरा पर आयेगे॥ हामी से रिश्ता है पग पग पर जो यहाँ से जायेगे॥ शाखाए आंधी तूफानों के टूटी ठूठ आग में मत डालो रो रो कर पुकार रहा हूँ............... हामी कराते सब प्राणी को अम्बर रस का पान॥ हामी से बनती कितनी औषधि नई पिन्हाती जान॥ कितने फल फूल है देते फ़िर भी तुम अनजान बने हो,, लिए कुल्हाडी टाक रहे हो उत्तर दो क्यो बेजान खड़े हो॥ हामी से सुंदर मौसम बँटा बुरी नज़र हमपे मत डालो॥ रो रो कर पुकार रहा हूँ................

पेड़ की पुकार,

रो रो कर पुकार रहा हूँ । हमें जमी से मत उखाडो ॥ रक्त श्रावसे भीग गया हूँ॥ हमें कुल्हाडी अब मत मारो॥ आसमा के बादल से पूछो कैसे मुझको पाला है, हर मौसम ने सींचा मुझको मिटटी करकट झाडा है, उस मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है, कोमल हाथो से पाने थपकी दे के सुलाया है, अब तुम लोगो भी प्रेम बढ़ा कर पेड़ का आँगन कूद सजा लो॥ इस धरा की सुंदर छाया हम पदों से बनी हुयी है,, प्यारी मंद हवाए अमृत बन कर चली हुयी है॥ हामी से नाता है जन जन का जो इस धरा पर आयेगे॥ हामी से रिश्ता है पग पग पर जो यहाँ से जायेगे॥ शाखाए आंधी तूफानों के टूटी ठूठ आग में मत डालो रो रो कर पुकार रहा हूँ............... हामी कराते सब प्राणी को अम्बर रस का पान॥ हामी से बनती कितनी औषधि नई पिन्हाती जान॥ कितने फल फूल है देते फ़िर भी तुम अनजान बने हो,, लिए कुल्हाडी टाक रहे हो उत्तर दो क्यो बेजान खड़े हो॥ हामी से सुंदर मौसम बँटा बुरी नज़र हमपे मत डालो॥ रो रो कर पुकार रहा हूँ................

लड़कियों की खरीद-फरोख्त की मंडी बना मेरठ

सलीम अख्तर सिद्दीकी सरकार और मीडिया महिला सशक्तिकरण की बहुत बातें करते हैं। नामचीन महिलाओं का उदाहरण देकर कहा जाता है कि महिला अब पुरूषों से कमतर नहीं हैं। लेकिन जब किसी गरीब, लाचार और बेबस लड़की के बिकने की दास्तान सामने आती है तो महिला सशक्तिकरण की धज्जियां उड़ जाती हैं। 24 जून को पष्चिम बंगाल की 25 साल की मौसमी को पष्चिम बंगाल से खरीदकर लाया गया। उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। मौसमी को अपने बेचे जाने की भनक लगी तो वह किसी तरह वहषियों के चंगुल से निकल भागी। कुछ लोगों ने उसे मेरठ के नौचंदी थाना पहुंचाया। लड़की केवल बंगला में ही बाते कर रही थी। 'संकल्प' संस्था की निदेषक श्रीमती अतुल षर्मा तथा उनकी सहयोगी कादम्बरी कौषिक ने थाने पहुंचकर कलकत्ता स्थित अपने एक कार्यकर्ता से मौसमी की बात करायी। कार्यकर्ता ने हिन्दी में मौसमी की व्यथा को बयान किया। इससे पहले भी मेरठ में लड़कियां के बिकने की खबरें आती रही हैं। संकल्प की अतुल षर्मा बताती हैं कि मेरठ लड़कियों की खरीद-फरोख्त की मंडी बन चुका है। श्रीमती अतुल बताती हैं कि वे अब तक 131 लड़कियों को बिकने से बचा चुकी हैं। लड़कियों को दिल्ली के

नौटंकी की जगह अश्लील नाच गाने

जब दुनिया बदल रही हो तब लोकपरंपराएँ और लोककलाएँ इससे परिवर्तन से अछूता कैसे रखा जा सकता है. इसी परिवर्तन का एक उदाहरण है पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों और कस्बों में परंपरागत नौटंकी में आई तब्दीलियाँ. कभी नौटंकी को गाँवों और कस्बों में रहने वाली जनता को देश दुनिया की जानकरी प्रदान करने, समाजिक विसंगतियों एवं कुरीतियों से परिचित कराने और सस्ता-स्वस्थ मनोरंजन का साधन माना जाता था. लेकिन अब संदेश और जानकारी की बात को दूर की बात अब तो नौटंकी सिर्फ़ मनोरंजन का साधन रह गई है और वह भी बेहद अश्लील मनोरंजन का. पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग सभी शहरों वाराणसी, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्ज़ापुर, गोरखपुर, बलिया के ग्रामीण इलाकों में इस प्रकार की दर्जनों नौटंकी और थियेटर कम्पनियाँ हैं. पूर्वी ऊत्तर प्रदेश के मेलों में से कुछ को लक्खी मेला कहा जाता है. इसका मतलब यह है कि एक लाख से ज़्यादा भीड़ वाले मेले. नौटंकी इन मेलों की अभिन्न अंग होती है. इसके अलावा साप्ताहिक बाज़ारों में नौटंकी होती है. बाबतपुर, सारनाथ और बलिया के प्रसिद्ध ददरी मेलों से लेकर कस्बों मे लगने वाले साप्ताहिक बाजार तक नौटंकी देखा

लो क सं घ र्ष !: अब चेतन सी लहराए...

शशि मुख लहराती लट भी, कुछ ऐसा दृश्य दिखाए। माद्क सुगन्धि भर रजनी, अब चेतन सी लहराए॥ मन को उव्देलित करता, तेरे माथे का चन्दन। तिल-तिल जलना बतलाता तेरे अधरों का कम्पन ॥ पूनम चंदा मुख मंडल, अम्बर गंगा सी चुनर। विद्रुम अधरों पर अलकें, रजनी में चपला चादर॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'