Skip to main content

Posts

Showing posts from January 13, 2011

भूदान आन्दोलन

विनोबा भावे ने १९५० -६०  के दशक में भूदान आन्दोलन चलाया ,उसे सफलता भी मिली . कई लोगो ने अपनी जमीने दान में दी ,पर उसका वितरण बहुत बाद में १९६९ से जाकर शुरू हुआ ,अतः उसका फायदा भूमिहीन कृषकों को नहीं मिल सका .कई जमींदारों और भूमिपतियों की नयी पीढ़ी ने जमीनें देने से इनकार कर दिया .इसका सबसे अभिक नुक्सान भूमिहीन कृषकों को हुआ .एक तो वितरण देरी से हुआ और दुसरे सही लोगों को अर्थात जिनको जरुरत थी उन्हें जमीने नहीं दी  गयी .कुछ जमीने तो एकदम बेकार थी जिसपर खेती नहीं की जा सकती थी .इस प्रकार लापरवाही के कारण एक अच्छे प्रयास का अच्छा परिणाम नहीं आ सका जिसकी उम्मीद थी .वैसे भूदान आन्दोलन को सफलता सबसे अधिक उन क्षेत्रों में मिली जहाँ पर भूमि सुधार आन्दोलन को सफलता नहीं मिल पायी थी .बिहार ,ओड़िसा और आंध्र प्रदेश में इसे सबसे अधिक सफलता मिली थी .यहाँ पर भूमि सुधार कार्यक्रम के सफल न हो पाने के कारण इसका भी कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और फिर बहुत लोग अपनी बातों से मुकर भी गए .अगर  विनोबा भावे के जिन्दा रहते यदि भूमि वितरण का काम किया जाता तो इसे अधिक सफलता मिलती .आज भार

सर्दी का उपहार

सर्दी कि जब बात हो ,               परिवार का भी साथ हो ! नई नवेली दुल्हन कि ,                घर मै जब पुकार हो ! मूंगफली कि आवाज़  हो ,               गुडपट्टी का भी साथ हो ! और एसे मै फिर ..............               लोहड़ी कि ही न बात हो ! इस बार तो फिर ...........        लहलहाती फसलों कि ही सोगात  हो ! हर किसान के चहरे पर                बल्ले -बल्ले कि ही आवाज़ हो ! हर घर के आँगन मै ...........               ढोल - नगाड़ों का ही साथ हो ! तो हो जाये एक बार ...............              सुन्दर  - मुंदरिये हो ........              तेरा कोंन बेचारा रे .............             दूल्हा भट्टी  वाला हो ..............             दुल्हे दी धी व्याही हो .........              सेर शक्कर पाई हो !    आप सबको लोहड़ी  कि शुभकामनायें !